Gujiya how it reach Vrindavan from Türkiye and how it became Favorite Dishes of Lord Krishna

Holi 2025: होली का त्योहार रंगों और खुशियों की बहार लाता है. होली (Holi) के त्योहार को उत्साह के साथ हिंदू धर्म में मनाया जाता है. यह त्योहार वैदिक पंचांग अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा (Purnima) तिथि को मनाया जाता है. इस साल पूरे देशभर में 14 मार्च को होली का पर्व मनाया जाएगा. इस दिन विशेष रुप से सभी के घरों में खुशबूदार, मीठी और टेस्टी गुजिया (Gujiya) बनती हैं. लोग बढ़ें चाव से गुजिया बनाते भी हैं और खाते भी हैं. पर क्या आपने कभी सोचा है की आखिर गुजिया बनाने की परंपरा कहां से आई? 

क्या गुजिया भारतीय मिठाई है?

भारत में सदियों से गुजिया बनाने की परंपरा चली आ रही है. इसका अपना धार्मिक महत्व है, होली पर इसका भोग लगाते हैं. होली के मौके पर आने वालों के सामने इसे परोसा जाता है. आपको यह जानकर हैरानी होगी यह मिठाई भारतीय नहीं है बल्कि यह तो तुर्की यानि तुर्किये (Türkiye) से भारत आई है. इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार तुर्की (Turkish) की फेमस मिठाई बकलावा (Baklava) को देखकर ही भारतीयों ने गुजिया बनाने की परंपरा शुरू की थी. बकलावा को बनाने के लिए मैदे की कई परतें बनाई जाती हैं और फिर इनके बीच में ड्राई फ्रूट्स, चीनी और शहद की फिलिंग की जाती है. इसी प्रकार हमारे भारत में होली के त्योहार पर गुजिया बनाई जाती है. इतिहासकारों के मुताबिक तुर्की में बकलावा को सिर्फ शाही परिवारों में ही बनाया जाता था. 

पहली बार कहां बनी थी गुजिया?

अगर हम इतिहास के पन्नों के खंगाल कर देखें और इतिहासकारों के द्वारा किए गए दावों के बारे में जानें तो हमें पता चलता है कि गुजिया पहली बार 16 वीं शताब्दी में बनाई गई थी. गुजिया को सबसे पहले उत्तर प्रदेश राज्य के बुंदेलखंड शहर में बनाया गया था, जिसके बाद यह राजस्थान, बिहार और मध्य प्रदेश होते हुए देश के कई राज्यों तक प्रसिद्ध हो गई. कहा जाता है कि बुंदेलखंड में पहली बार मैदे की परत बनाकर उसमें खोया भरते हुए पहली गुजिया बनाई गई थी.

होली के दिन क्यों खाते हैं गुजिया?

मान्यताओं के अनुसार होली के अवसर पर गुजिया बनाने की परंपरा वृंदावन के राधा रमण मंदिर से शुरू हुई थी. इस मंदिर का निर्माण सन् 1542 में हुआ था और यह देश का सबसे पुराना मंदिर है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को बुंदेलखंड के निवासियों ने भगवान कृष्ण को आटे की लोई में चाशनी डालकर इसका भोग लगाया था. इसके बाद से ही होली के अवसर पर गुजिया (Gujiya) बनाने की परंपरा शुरु हुई. ऐसा भी माना जाता है कि भगवान कृष्ण को गुजिया बेहद पसंद थी, जिसके चलते मथुरा और वृंदावन के लोग भगवान कृष्ण को इसका भोग लगाते थे. 

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