सुष्मिता देव ने परिवार से सीखा राजनीतिक दांव पेंच, सैनिटरी नैप्किन को 100 फीसदी टैक्स फ्री करने की चला चुकी हैं मुहिम

नई दिल्ली। भारतीय राजनीति में सुष्मिता देव एक जाना-माना नाम है, जो अक्सर सरकार के कई नीतियों के खिलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद करती नज़र आई हैं। सुष्मिता देव ने अपने राजनीतिक करियर में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम कर चुकी हैं।  वर्तमान समय में पश्चिम बंगाल से अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की सुष्मिता देव राज्यसभा सदस्य हैं। इससे पहले कांग्रेस के टिकट पर 2014 के आम चुनाव में असम सिलचर की लोकसभा सीट  से सांसद चुनी गईं थीं।

पढ़ें :- UP NEWS : प्रयागराज में गिरी आसमानी बिजली, एक झटके में पूरा परिवार खत्म , पति-पत्नी समेत दो बेटियां जिंदा जलीं

सुष्मिता देव का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

सुष्मिता का जन्म 1972 में असम के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पिता संतोष मोहन देव और कांग्रेस विधायक मां बिथिका देव के घर हुआ था। उनके दादा सतीन्द्र मोहन देव भी स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका उत्तर पूर्व भारत में एक राजनीतिक प्रभाव था। सुष्मिता ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मिरांडा हाउस, दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राप्त की, जहां उन्होंने पॉलिटिकल साइंस में स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने इंस ऑफ कोर्ट्स लॉ स्कूल, लंदन (Inns of Court School of Law) और किंग्स कॉलेज, लंदन विश्वविद्यालय, यूके में अध्ययन किया और एलएलबी (कॉर्पोरेट और वाणिज्यिक कानून) में अपनी पढ़ाई पूरी की। उनकी शिक्षा ने उन्हें राजनीति और कानून के क्षेत्र में एक मजबूत आधार प्रदान किया, जिससे वे अपने राजनीतिक करियर में और अधिक प्रभावी ढंग से योगदान दे सकीं।

परिवारिक पृष्ठभूमि और राजनीति से गहरा जुड़ाव

सुष्मिता देव ने भारतीय राजनीति में अपनी एक विशेष पहचान बनाई है। उनके परिवार का इतिहास भी कई अन्य राजनेताओं की तरह राजनीति से जुड़ा हुआ है। उनके पिता संतोष मोहन देव एक प्रमुख राजनीतिक व्यक्ति थे। वे कांग्रेस की टिकट पर 6 बार सांसद चुने गए और इस्पात मंत्री के पद पर भी कार्यरत रहे। देव के दादा सतीन्द्र मोहन देव एक स्वतंत्रता सेनानी थे और बाद में असम के स्वास्थ्य मंत्री बने। वे लंबे समय तक सिलचर म्यूनिसिपैलिटी बोर्ड के चेयरमैन भी रहे। इस परिवार की राजनीतिक यात्रा सुष्मिता के दादा और उत्तर पूर्व के प्रसिद्ध बंगाली स्वतंत्रता सेनानी सतीन्द्र मोहन देव के साथ शुरु हुई थी। उनके परिवार का कोई ना कोई सदस्य 1952 के बाद से नगरपालिका विधानसभा या लोकसभा के चुनाव जीतता आ रहा है।

पढ़ें :- Air India Plane Crash : म्यांमार के जैन बनिया परिवार में हुआ था विजय रूपाणी का जन्म, दो बार बने थे गुजरात के सीएम

सिलचर लोकसभा सीट से 2014 में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की

2014 के चुनाव में अपने पिता की जगह सुष्मिता देव ने सिलचर से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उन्होंने 2014 से 2019 तक का अपना कार्यकाल पूरा करके दोबारा 2019 में सिलचर से चुनाव लड़ा, पर 2019 में भारतीय जनता (बीजेपी) के राजदीप रॉय को जीत हासिल हुई और उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वे अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। पर 2021 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का हाथ थाम लिया था। कांग्रेस छोड़ने के लिए सोनिया गांधी को लिखे पत्र में उन्होंने सार्वजनिक सेवा में एक नया अध्याय शुरू करने की इच्छा व्यक्त की और कहा कि कांग्रेस के साथ अपने तीन दशक लंबे जुड़ाव को वे संजोकर रखती हैं।

सुष्मिता देव का राजनीतिक सफर

सुष्मिता देव को 2009 में असम के सिलचर म्युनिसिपल बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था और वह 2014 तक इस पद पर रहीं। देव 2011 में असम विधानसभा की सदस्य चुनी गईं। 2014 में उन्होंने सिलचर निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की। 9 सितंबर 2017 से 16 अगस्त 2021 तक उन्होंने अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। उन्हें 4 अक्टूबर 2021 को अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस के समर्थन से पश्चिम बंगाल से राज्यसभा सदस्य भी नियुक्त किया गया था। इससे पहले 2014 में, वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समर्थन से आम चुनावों में लोकसभा सदस्य के रूप में भी चुनी गई थीं । अप्रैल 2018 में, उन्हें राष्ट्रीय कैडेट फसलों के लिए केंद्रीय सलाहकार प्रतिबद्धता के सदस्य के रूप में नामित किया गया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में, सुष्मिता देव को असम से भाजपा उम्मीदवार डॉ. आरजेदीप रॉय ने 81596 मतों के अंतर से हराया था, जिसके परिणामस्वरूप सुष्मिता देव 2019 का लोकसभा चुनाव हार गईं, जिसके कारण देव ने 2019 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस छोड़ दी और 2021 में अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गईं।

सैनिटरी नैप्किन को 100 फीसदी टैक्स फ्री करने की चलाई थी मुहिम 

पढ़ें :- CM योगी ने शुभम द्विवेदी के घर पहुंचकर दी श्रद्धांजलि, बोले- धर्म पूछकर बहन-बेटियों का सिंदूर को उजाड़ा जाना कतई स्वीकार्य नहीं

अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने महिलाओं के मुद्दों पर विशेष रूप से काम किया। साल 2017 में उन्होंने सैनिटरी नैप्किन को 100 फीसदी टैक्स फ्री करने की मुहिम चलाई थी ताकि वित्त मंत्री अरुण जेटली इसपर ध्यान दें। उनका कहना था कि देश में बहुत कम ऐसी महिलाएं हैं जो सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। इसके बदले बहुत सी महिलाएं कपड़ा इस्तेमाल करती हैं, क्योंकि सैनिटरी पैड खरीदना उनके लिए महंगा है। कपड़ा इस्तेमाल करने से उन महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ता है।

वहीं महिलाओं के लिए मेन्स्ट्रल स्वास्थ्य जैसे अहम मुद्दे को उठाने वाली सुष्मिता खुद मुस्लिम महिलाओं के लिए बने तीन तलाक़ कानून का विरोध करते हुए पाई गयीं। उनका कहना था कि ये कानून मुस्लिम महिलाओं के हक में कम है। सुष्मिता ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लेकर भी बीजेपी को घेरे में लेते हुए कहा कि सीएए एक अत्यधिक इस्तेमाल किया जाने वाला राजनीतिक यंत्र है जिसे बीजेपी चुनाव में अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती रहती है।

 

Read More at hindi.pardaphash.com