Paush Ravivar Vrat 2025: पौष का रविवार व्रत मिटाता है गरीबी! इस दिन सूर्य पूजन का महत्व जानें

Paush Ravivar Vrat 2025: पौष सूर्य देव का महीना माना गया है, और सूर्य की उपासना के लिए रविवार का दिन श्रेष्ठ होता है. यही वजह है कि पौष माह के रविवार को व्रत करने का विधान है.पुराणों के अनुसार सूर्य देवता की उपासना से रोग और उदासीनता दूर रहती है. सूर्य की किरणों का स्वास्थ्य और मन को स्फूर्तिवान बनाता है. सूर्य को नियमित अर्घ्य देने से नेतृत्व क्षमता बढ़ती है. आइए जानें पौष रविवार व्रत की विधि, महत्व, कथा.

पौष माह रविवार 2025 डेट

  • 14 दिसंबर 
  • 21 दिसंबर
  • 28 दिसंबर 

पौष में सूर्य के भग स्वरूप की पूजा

धर्मग्रंथों के अनुसार, पौष मास में भग नामक सूर्य की उपासना करनी चाहिए. शास्त्रों में ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य को ही भग कहा गया है और इनसे युक्त को ही भगवान माना गया है. मान्यता है कि पौष मास में भगवान भास्कर ग्यारह हजार रश्मियों के साथ तपकर सर्दी से राहत देते हैं, इनकी कृपा से रोगों से मुक्ति और राजयोग प्राप्त होता है.

रविवार व्रत विधि

रविवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें. इसके बाद तांबे के लोटे में जल लेकर, सूर्य देव को अर्घ्य दें. मंत्रों का जाप करें. धूप, अक्षत, दूध, लाल फूल और जल अर्पित करें. उसी स्थान पर खड़े होकर तीन परिक्रमा लगाएं.

फिर पूजा स्थल पर लाल चटाई या कोई भी लाल वस्त्र बिछाकर बैठें और भगवान सूर्य की पूजा आरंभ करें. रविवार व्रत की कथा और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें.

रविवार व्रत में तेल, नमक नहीं खाना चाहिए, साथ ही एक समय भोजन करें.

रविवार व्रत कथा

एक समय की बात है. एक नगर में वृद्ध महिला रहती थी, वह हर माह रविवार का व्रत रखती थी और विधि विधान से सूर्य देव की पूजा करती थी. वह उपवास के दौरान एक समय ही मीठा भोजन करती थी. सूर्य देव की कृपा से उसके दुखों का अंत हो गया था और उसके घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी. जब भी वह रविवार का व्रत रखती थी, तो उस दिन घर की साफ सफाई करती थी और गाय के गोबर से घर को लीपकर साफ सुथरा रखती थी.

इस व्रत के पुण्य प्रभाव से वह सुखी थी. रविवार व्रत के दिन वह अपनी पड़ोसन के घर से गाय का गोबर लेकर आती थी. जलनवश रविवार को उसकी पड़ोसन ने गाय को घर के अंदर बांध दिया, जिससे उस बुढ़िया को गाय का गोबर नहीं मिला. बुढ़िया ने व्रत रखा लेकिन आंगन लीप नहीं पाई. उसके कारण सूर्य देव को भोग भी नहीं लगाया. खुद भी बिना कुछ खाए सो गई.

अगले दिन सुबह बुढ़िया के आंगन में एक गाय बछड़े के साथ बंधी थी. य​​ह देख वह खुश हो गई. उसके उसे चारा खिलाया तो गाय ने सोने का गोबर किया. य​​ह देखकर पड़ोसन आश्चर्य में पड़ गई. उसने उस गोबर को उठाकर अपने घर ले गई.

सोने के गोबर के बारे में बुढ़िया को पता नहीं था. एक दिन सूर्य देव ने तेज आंधी चलाई, जिससे बुढ़िया ने गाय को घर के अंदर बांध दिया. गाय ने वहीं पर सोने का गोबर कर दिया तो वृद्धा आश्चर्यचकित हो गई. तब से वह गाय को घर में ही बांधने लगी. कुछ दिनों में ​ही वृद्धा धनवान हो गई.

पड़ोसन को ये बात रास नहीं आई. उसने सोने का गोबर करने वाली गाय के बारे में नगर के राजा को बता दिया. राजा भी आश्चर्य में पड़ गया. उसने वृद्धा के घर से उस गाय को अपने पास मंगा लिया. उधर दुखी बुढ़िया ने सूर्य देव से प्रार्थना की कि वह गाय उसे वापस मिल जाए.

उस रात सूर्य देव उस राजा के सपने में आए और आदेश दिया कि वह गाय और बछड़ा वृद्धा को वापस कर दो, नहीं तो तुम्हारा सब कुछ नष्ट हो जाएगा. राजा डर गया और उसने अगली सुबह गाय- बछड़ा वृद्धा को लौटा दिए.  इसके साथ ही पड़ोसन को बुलाकर उचित दंड भी दिया. उस दिन राजा ने नगर वासियों को आदेश दिया कि अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए रविवार का व्रत रखा करें. 

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