
Circuit limit changes: बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) ने 1 दिसंबर 2025 से 31 कंपनियों के शेयरों पर रिवाइज्ड प्राइस बैंड यानी सर्किट लिमिट लागू करने का फैसला किया है। इसका मकसद असामान्य ट्रेडिंग गतिविधियों पर नियंत्रण रखना और निवेशकों को संभावित जोखिम से बचाना है।
BSE समय-समय पर ऐसे स्टॉक्स की पहचान करता है जिनमें कीमत या वॉल्यूम में अचानक तेज उतार-चढ़ाव दिखता है और अपनी सर्विलांस प्रक्रिया के तहत जरूरी एक्शन लेता है। इसी प्रक्रिया में कुछ शेयरों का प्राइस बैंड 2%, 5% या 10% तक घटाया जा सकता है।
BSE कैसे लेता है सर्विलांस एक्शन
बीएसई सिर्फ प्राइस बैंड बदलने तक सीमित नहीं है। जरूरत पड़ने पर किसी शेयर को ट्रेड-टु-ट्रेड सेगमेंट में भेजना, स्पेशल मार्जिन लगाना या किसी शेयर/मेंबर को सस्पेंड करना भी सर्विलांस उपायों का हिस्सा है।
हर स्टॉक के लिए तय प्राइस बैंड इसीलिए होता है कि कीमत में अचानक और तेज उछाल या गिरावट रोककर इसे नियंत्रित दायरे में रखा जा सके। अगर किसी शेयर में असामान्य वोलैटिलिटी आती है, तो उस पर तुरंत कड़ा प्राइस बैंड लागू किया जाता है।
स्पेशल मार्जिन कब लागू होता है
जब किसी शेयर की कीमत या ट्रेडिंग वॉल्यूम में अचानक तेज तेजी देखी जाती है, तब BSE उस पर स्पेशल मार्जिन लागू करता है। यह मार्जिन 25%, 50% या 75% तक हो सकता है। इसका लक्ष्य अफवाहों, अटकलों या सट्टा ट्रेडिंग के चलते होने वाले संभावित नुकसान से निवेशकों को बचाना है।
रिवाइज्ड प्राइस बैंड वाली कंपनियों की लिस्ट
निवेशकों के लिए इसका क्या मतलब
BSE के ये सर्विलांस उपाय बाजार में पारदर्शिता बनाए रखने, स्टॉक प्राइस में संभावित हेरफेर रोकने और निवेशकों के हितों की सुरक्षा के लिए जरूरी हैं। जब भी किसी स्टॉक में असामान्य तेजी या गिरावट दिखती है, एक्सचेंज तुरंत हस्तक्षेप कर बाजार को स्थिर रखने की कोशिश करता है।
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