ए आर रहमान ने क्यों अपनाया ‘सूफीवाद’? म्यूजिशियन ने किया खुलासा, बोले- ‘धर्म के नाम पर हत्या…’


एआर रहमान भारत के बेहद पॉपुलर कंपोजर हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ए आर रहमान का जन्म वास्तव में मद्रास में दिलीप कुमार राजगोपाला के रूप में हुआ था. हालांकि इस आइकॉनिक म्यूजिशियन ने सूफीवाद अपना लिया था. एक हिंदू ज्योतिषी के सुझाव पर उन्होंने ‘रहमान’ नाम रखा था. हाल ही में एक इंटरव्यू में, उन्होंने खुलासा किया कि उन्होंने सूफीवाद को क्यों अपनाया. साथ ही ए आर रहमान ने ये भी बताया कि कैसे उन्होंने सभी धर्मों के बारे में स्टडी की है और वे सभी धर्मों का सम्मान करते हैं.  

‘धर्म के नाम पर दूसरों की हत्या से समस्या है’
दरअसल निखिल कामथ के पॉडकास्ट पर ए आर रहमान ने कहा, “मैं सभी धर्मों का फैन हूं और मैंने इस्लाम, हिंदू धर्म और ईसाई धर्म की स्टडी की है. मेरी एक प्रॉब्लम धर्म के नाम पर दूसरों की हत्या या उन्हें नुकसान पहुंचाना है. मुझे एंटरटेन करना बहुत पसंद है, और जब मैं परफॉर्म करता हूँ, तो मुझे ऐसा लगता है जैसे यह कोई तीर्थस्थल हो, और हम सब यूनिटी को एंजॉय कर रहे हों अलग-अलग धर्मों के लोग, अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले, सब वहां एक साथ आते हैं.”

सूफीवाद की ओर अपने अट्रैक्शन का कारण बताते हुए, रहमान ने कहा, “सूफीवाद मरने से पहले मरने जैसा है. कुछ परदे होते हैं जो आपको आत्मचिंतन करने पर मजबूर करते हैं, और उन परदों को हटाने के लिए आपको नष्ट होना पड़ता है. वासना, लालच, ईर्ष्या या निंदा, इन सभी को मरना होता है. आपका अहंकार चला जाता है, और फिर आप ईश्वर की तरह पारदर्शी हो जाते हैं.” उन्होंने कहा कि उन्हें यह बात बहुत पसंद है कि ये धर्म अलग-अलग तो हैं, लेकिन उनमें एक समानता भी है.

आस्था की समानता है पसंद
उन्होंने कहा, “आस्था की समानता ही मुझे अच्छी लगती है. हम भले ही अलग-अलग धर्मों का पालन करते हों, लेकिन आस्था की ईमानदारी ही मापी जाती है. यही हमें अच्छे काम करने के लिए इंस्पायर करती है. इससे मानवता को फायदा होता है. हम सभी को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध होना चाहिए, क्योंकि जब आध्यात्मिक समृद्धि आती है, तो भौतिक समृद्धि भी उसके साथ आती है.”

ए आर रहमान ने क्यों अपनाया सूफीवाद?
उन्होंने कहा, “सूफीवाद के रास्ते पर किसी को भी धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नहीं किया जाता है. आप केवल तभी इसे फॉलो करते हैं जब यह आपके दिल से आता है… सूफी मार्ग ने आध्यात्मिक रूप से मेरी मां और मुझे दोनों को ऊपर उठाया और हमें लगा कि यह हमारे लिए सबसे अच्छा रास्ता है, इसलिए हमने सूफी इस्लाम अपना लिया. हमारे आसपास किसी को भी धर्म परिवर्तन की परवाह नहीं थी. हम म्यूजिशयन थे और इससे हमें ज्यादा सोशल इंडीपेंडेंस मिली.”

 

 

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