बांग्लादेश में ICT ने शेख हसीना को सुनाई सजा-ए-मौत, भारत में रह रहीं पूर्व PM के पास अब क्या हैं विकल्प?


ढाका की अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को 2024 के छात्र आंदोलन में हुई हत्याओं के लिए मौत की सजा सुनाई है. कोर्ट का कहना है कि हसीना ने हिंसा भड़काई और मारने के आदेश दिए. इसी केस में पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान को भी फांसी की सजा मिली, जबकि पूर्व IGP अब्दुल्ला अल-ममून को 5 साल जेल दी गई. कोर्ट ने हसीना और खान की संपत्ति जब्त करने का आदेश भी दिया है.

दोनों नेता फिलहाल 15 महीने से भारत में हैं. हसीना ने फैसले को राजनीतिक और पक्षपाती बताया है. यह फैसला ऐसे समय आया है जब हसीना पिछले एक साल से भारत में निर्वासन में हैं. अब बड़ा सवाल यह है कि उनके पास आगे के लिए क्या रास्ते बचे हैं?

मामला क्या है?
एक लंबे ट्रायल के बाद बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया कि 2024 के छात्र-नेतृत्व वाले आंदोलन के दौरान हुई हिंसा में शेख हसीना की सीधी जिम्मेदारी थी. अदालत ने माना कि उन्होंने सुरक्षा बलों को ‘कड़े और घातक बल’ का इस्तेमाल करने का आदेश दिया था. यह फैसला उनकी अनुपस्थिति में सुनाया गया क्योंकि वे अगस्त 2024 से भारत में रह रही हैं.

हिंसा का पैमाना कितना बड़ा था?
2024 में हुए छात्र विरोध प्रदर्शनों में हालात काफी खराब हुए थे. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, 15 जुलाई से 5 अगस्त, 2024 के बीच हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान 1,400 लोगों के मारे जाने और हजारों लोगों के घायल होने की आशंका जताई गई. यह हिंसा 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद बांग्लादेश की सबसे भीषण अशांति बताई जाती है.

हसीना का निर्वासन
यह विरोध तब शुरू हुआ जब छात्र संगठनों ने पहले नौकरी कोटे की व्यवस्था में सुधार और बाद में हसीना के इस्तीफे की मांग तेज कर दी. हिंसा तेजी से बढ़ने लगी और 5 अगस्त 2024 को प्रदर्शनकारी पीएम आवास की ओर बढ़ने लगे, जिसके कुछ घंटे पहले ही हसीना भारत चली गईं. उनके जाने के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद युनुस की अगुवाई में एक अंतरिम सरकार का गठन हुआ, जिसे व्यवस्था बहाल करने और चुनाव कराने का दायित्व दिया गया, लेकिन बड़े राजनीतिक सुधारों की प्रक्रिया धीमी रही है और चुनाव फरवरी में कराए जाने की योजना है.

अवामी लीग पर रोक और तनावग्रस्त माहौल
हसीना की पार्टी अवामी लीग को आगामी चुनावों में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं दी गई है. विश्लेषकों का मानना है कि मौत की सजा का फैसला देश में नई अशांति को जन्म दे सकता है, खासकर तब जब चुनाव नजदीक हैं. हाल के दिनों में देश के अलग-अलग हिस्सों में कच्चे बम फेंके जाने और गाड़ियों को जलाने जैसी घटनाएं सामने आई हैं.

ट्रायल में क्या हुआ?
अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया कि उन्हें सबूत मिले हैं जिससे साबित होता है कि हसीना ने आंदोलन दबाने के लिए सीधे तौर पर घातक बल का इस्तेमाल करने का आदेश दिया. अदालत ने हसीना के लिए सरकारी वकील नियुक्त किया था, जिन्होंने अदालत में कहा कि यह आरोप झूठे हैं और उन्हें बरी किया जाना चाहिए. फैसले से पहले हसीना खुद यह कह चुकी थीं कि यह पूरी प्रक्रिया “निष्पक्ष नहीं” है और फैसला पहले से तय है.

अब शेख हसीना के पास क्या विकल्प हैं?
सुप्रीम कोर्ट में अपील करना
इस फैसले के खिलाफ बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है. अगर अपील स्वीकार हुई, तो सजा को पलटने या कम करने का रास्ता खुल सकता है.

राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाना
हसीना लगातार यह दावा कर रही हैं कि मामला राजनीतिक प्रतिशोध से प्रेरित है. वे अंतरराष्ट्रीय संगठनों, मानवाधिकार समूहों और सहयोगी देशों से समर्थन हासिल करने की कोशिश कर सकती हैं.

निर्वासन से ही राजनीतिक दबाव बनाना
भारत में रहने के कारण उन्हें तुरंत गिरफ्तारी का खतरा नहीं है. निर्वासन में रहकर भी वे अपनी पार्टी और समर्थकों को संगठित कर सकती हैं.

नए राजनीतिक समीकरण का इंतजार
हसीना के बेटे सजीब वाजेद ने कहा है कि वे अपील तभी करेंगे जब एक लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार बने और अवामी लीग को राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल होने की अनुमति दी जाए.

प्रत्यर्पण का मुकाबला करना
अगर बांग्लादेश सरकार उनका प्रत्यर्पण मांगती है, तो भारत में वे कानूनी और राजनीतिक आधार पर उसका विरोध कर सकती हैं. यह प्रक्रिया लंबी और जटिल हो सकती है.

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