Motivational Quotes: बेटी का जन्म अभिशाप नहीं, वरदान है.. घर में बेटी के जन्म पर जानिए रामभद्राचार्य के विचार

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Swami Ram Bhadracharya: जगतगुरु रामभद्राचार्य जी कहते हैं कि बेटी का जन्म कभी शाप नहीं, बल्कि सबसे बड़ा सौभाग्य है. इसलिए बेटी को स्वीकार करो, सम्मान दो और उसके अस्तित्व को ईश्वर के आशीर्वाद के रूप में समझो.

रामभद्राचार्य जी का उपदेश

जगतगुरु रामभद्राचार्य कहते हैं कि बेटी का जन्म कभी बुरा नहीं होता, बल्कि यह तो ईश्वर का दिया हुआ सौभाग्य और साक्षात आशीर्वाद होता है. समाज में यह धारणा गहरी बैठ गई है कि बेटा श्रेष्ठ है और बेटी बोझ. वे इस सोच को बदलने का आह्वान करते हैं. वे समझाते हैं कि अब समय आ गया है कि हम यह मानना छोड़ दें कि केवल बेटा ही वंश को आगे बढ़ाएगा.

वे बताते हैं कि बेटी कुल का गौरव बढ़ाती है और जहां वह जन्म लेती है, वहां स्वयं देवी लक्ष्मी का निवास माना जाता है. अतीत में कुछ स्थानों पर कन्याओं को सम्मान नहीं मिला, लेकिन आज का समय बदल चुका है और अब बेटी को दुख का कारण नहीं, बल्कि घर का शुभ भविष्य समझना चाहिए.

ममता और त्याग की प्रतीक है बेटी

जगतगुरु रामभद्राचार्य जी बेटी के प्रेम और उसके त्याग पर कहते हैं कि इतिहास गवाह है. हजारों बेटे माता-पिता को दुख दे देते हैं, पर क्या कभी किसी बेटी को ऐसा करते देखा गया है. वे बताते हैं कि बेटा कभी-कभी अपने स्वार्थ में माता-पिता से दूर हो जाता है, लेकिन बेटी अपने त्याग, समर्पण और निस्वार्थ प्रेम से हमेशा घर का मान-सम्मान बढ़ाती है.

बेटी अपनी मर्यादा और आचरण से माता-पिता के गौरव को ऊंचा करती है और कभी उनके अपमान को सहन नहीं करती है. इसी भाव को समझाने के लिए वे तुलसीदास जी का उदाहरण देते हैं, जिन्होंने अपने पिता का नहीं बल्कि अपनी मां का नाम लिखा, जो मां-बेटी के पवित्र और गहरे संबंध का प्रतीक है.

रामभद्राचार्य मानते हैं कि बेटी केवल घर की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि वह पूरे घर की आत्मा और ऊर्जा होती है, जो परिवार को प्रेम, शांति और एकता से जोड़कर रखती है.

मोक्ष का मार्ग है नारी:

जगतगुरु रामभद्राचार्य जी कहते हैं कि नारी का सम्मान केवल परिवार की आवश्यकता नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की पहचान है. दुनिया में केवल भारत ही भारत माता के नाम से जाना जाता है, क्योंकि हमारे देश की परंपरा मातृत्व और नारी-सम्मान पर टिकी हुई है.

वे समझाते हैं कि नारी को कभी भी कमजोरी या पाप का कारण नहीं समझना चाहिए, क्योंकि वह नरक का द्वार नहीं, बल्कि मोक्ष का मार्ग है. वे याद दिलाते हैं कि रामानंद संप्रदाय की पहली आचार्या भी एक महिला जानकी जी थीं, जो यह सिद्ध करती हैं कि नारी सदैव से ज्ञान, शक्ति और नेतृत्व की धुरी रही है. इसी कारण आज आवश्यक है कि हर बेटी को समान सम्मान, अच्छी शिक्षा और अपनी क्षमता के अनुसार आगे बढ़ने का अवसर मिले.

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