Premanand Maharaja Ji: आलस्य और मोबाइल से मुक्ति, जानें प्रेमानंद जी महाराज का उपदेश

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Premanand Maharaja Ji: प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि “आलस्य कोई रोग नहीं. यह अभ्यास का दोष है.” वे समझाते हैं कि जिस प्रकार कोई मनुष्य अपने भोजन, नींद और बोलने की मात्रा को घटा-बढ़ा सकता है. वैसे ही आलस्य को भी नियंत्रित किया जा सकता है.

इसका प्रमाण यह है कि जो साधक पहले 35 रोटियाँ खा सकता था. वही साधना के अभ्यास से डेढ़ रोटी पर भी संतुष्ट रह सकता है. क्योंकि अभ्यास सब कुछ बदल देता है. इसी प्रकार नींद भी नियंत्रित की जा सकती है. जो व्यक्ति 7 घंटे सोता है. वह अभ्यास के बल पर 3 घंटे में भी पूर्ण विश्राम पा सकता है.

कम बोलो, कम खाओ, कम सोओ 

आलस्य पर विजय पाने का सीधा सूत्र देते हुए महाराज जी कहते हैं — “कम बोलो. कम खाओ. कम सोओ और भजन करो — तब आलस्य भागेगा.” जब साधक का मन भजन में रमने लगता है. तब मोबाइल और मनोरंजन का बाहरी आकर्षण अपने आप समाप्त हो जाता है.

वे स्पष्ट करते हैं कि “मोबाइल में क्या है. झूठी बातें. व्यर्थ की तस्वीरें. समय का अपव्यय.” यदि मोबाइल का प्रयोग करना ही है. तो केवल सत्संग सुनने, ग्रंथ पढ़ने और नाम-जप की प्रेरणा लेने के लिए करो. महाराज जी कहते हैं कि अच्छा ग्रहण करो, बुरा त्याग दो, यही विवेक है.

दिनचर्या को अनुशासन में रखें 

इस आलस्य को त्यागने के लिए महाराज जी सिखाते हैं कि अलार्म नहीं, संकल्प जगाता है. यदि साधक दृढ़ निश्चय कर ले कि उसे सुबह 3:30 बजे उठना है, तो ईश्वर स्वयं उसकी आंख खोल देंगे. उनका सीधा उपाय यह है कि रजाई में पड़े रहना ही आलस्य है. इसलिए”पहला काम रजाई फेंको और उठ बैठो.”

उठने के बाद तुरंत मुंह धोकर नाम-जप में लग जाओ. अगर नाम-जप के दौरान नींद आने लगे. तो थोड़ा टहल लो, जल पी लो और फिर से ध्यान में लगो. इस निरंतर अभ्यास से शरीर और मन दोनों हल्के हो जाते हैं.

मोबाइल का विवेकपूर्ण प्रयोग 

प्रेमानंद जी कहते हैं कि “मोबाइल बहुत अच्छी चीज़ है पर विवेक चाहिए.” इसका उपयोग केवल ज्ञान, सेवा और सत्संग के लिए करना चाहिए. वे असावधानी के खतरों से आगाह करते हुए कहते हैं कि वाहन चलाते समय मोबाइल का प्रयोग न करें. क्योंकि एक पल का असावधान क्षण जीवन संकट में डाल सकता है. साधक के लिए छह घंटे की नींद पर्याप्त है और सुबह पाँच बजे उठना शुभ माना गया है. जीवन की शुरुआत हमेशा भगवान के नाम से करो और दिन भर कर्म करते हुए भी मन में नाम का स्मरण रखो.

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