Bhagavad Gita Teachings: श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो. गीता का यह संदेश उन लोगों के लिए खास तौर पर प्रेरणादायक है, जो अक्सर क्रोध में अपना धैर्य खो देते हैं.
क्रोध न केवल मन की शांति छीन लेता है, बल्कि रिश्तों में दरार भी डाल देता है. ऐसे में गीता सिखाती है कि धैर्य, संयम और संभाव बनाए रखना ही सच्ची सफलता और सुख का मार्ग है. श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शक भी है.
जब मनुष्य जीवन की कठिनाइयों, असफलताओं और उलझनों से घिर जाता है, तब गीता उसे आत्मविश्वास और स्थिरता देती है. गीता का संदेश आज भी प्रासंगिक है. यह ग्रंथ हमें धैर्य, विवेक और आत्मनियंत्रण सिखाता है. जब भी जीवन में अंधकार छा जाए, गीता का ज्ञान एक दीपक की तरह राह दिखाता है.
मन शांत तो जीवन में संतुलन
गीता के अनुसार, मनुष्य का उद्धार उसी के अपने हाथ में होता है. उसका मन ही उसका सबसे बड़ा मित्र भी है और सबसे बड़ा शत्रु भी. जब मन शांत होता है, तब जीवन में संतुलन और स्थिरता आती है. लेकिन जब मन क्रोध, अहंकार और लोभ से भर जाता है, तब वही मन हमें पतन की ओर ले जाता है.
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के अध्याय 2, श्लोक 63 में कहा है कि क्रोध से भ्रम उत्पन्न होता है. भ्रम से स्मृति का नाश होता है. स्मृति के नाश से बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि के नाश से मनुष्य का पतन होता है. यह श्लोक हमें बताता है कि क्रोध केवल एक भावना नहीं, बल्कि विनाश की जड़ है. जब हम क्रोध में निर्णय लेते हैं, तो गलतियां निश्चित होती हैं.
क्रोध पर नियंत्रण स्वयं की रक्षा का माध्यम
श्रीकृष्ण के अनुसार क्रोध पर नियंत्रण केवल एक गुण नहीं बल्कि स्वयं की रक्षा का माध्यम है. जब हम संयम और विवेक से प्रतिक्रिया देना सीखते हैं तभी हमारा मन सच्ची शक्ति से भरता है. क्रोध एक ऐसा भाव है जो क्षणिक होता है, लेकिन उसके परिणाम दीर्घकालिक होते हैं.
यह हमारे विवेक को धुंधला कर देता है और रिश्तों, करियर तथा मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है. गीता हमें सिखाती है कि क्रोध पर नियंत्रण पाने के लिए आत्मसंयम, साधना और ध्यान आवश्यक हैं. जब हम भीतर से शांत होते हैं, तब बाहरी परिस्थितियां हमें विचलित नहीं कर पातीं.
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