Akshay Navami 2025: अक्षय नवमी कब है? जानें इस दिन का विशेष महत्व, पढ़ें व्रत कथा

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष  की नवमी तिथि को अक्षय नवमी का पर्व मनाया जाता है. इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है इसलिए इसे आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन सतयुग की शुरुआत हुई थी.

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी का पर्व मनाया जाता है. इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है इसलिए इसे आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन सतयुग की शुरुआत हुई थी.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन अक्षय नवमी व्रत कथा की पाठ जरूर करें , इससे भगवान विष्‍णु की कृपा से अक्षय धन-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्‍त होता है.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन अक्षय नवमी व्रत कथा की पाठ जरूर करें , इससे भगवान विष्‍णु की कृपा से अक्षय धन-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्‍त होता है.

पुराणों में वर्णन है कि एक बार की बात है धन की देवी माता लक्ष्मी पृथ्वी पर आई. उन्होंने ने देखा कि सभी लोग भगवान शिव और विष्णु की पूजा कर रहे हैं. उन्होंने सोचा क्यों ना दोनों देवों की पूजा एक साथ की जाएं. फिर उन्हें आंवला के वृक्ष का ख्याल आया क्योंकि सिर्फ आंवला में ही बेल और तुलसी के गुण पाएं जाते हैं. इसके बाद उन्होंने इसकी पूजा की.

पुराणों में वर्णन है कि एक बार की बात है धन की देवी माता लक्ष्मी पृथ्वी पर आई. उन्होंने ने देखा कि सभी लोग भगवान शिव और विष्णु की पूजा कर रहे हैं. उन्होंने सोचा क्यों ना दोनों देवों की पूजा एक साथ की जाएं. फिर उन्हें आंवला के वृक्ष का ख्याल आया क्योंकि सिर्फ आंवला में ही बेल और तुलसी के गुण पाएं जाते हैं. इसके बाद उन्होंने इसकी पूजा की.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक राजा रानी था, उसका प्रण था वह रोज सवा मन आंवले दान करके ही खाना खाता था. जब उनके बेटे बहु ने उन्हें दान करने से रोका तो वे दुखी हो कर महल छोड़ दिए और बियाबान जंगल में चले गए.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक राजा रानी था, उसका प्रण था वह रोज सवा मन आंवले दान करके ही खाना खाता था. जब उनके बेटे बहु ने उन्हें दान करने से रोका तो वे दुखी हो कर महल छोड़ दिए और बियाबान जंगल में चले गए.

भगवान ने उन्हें सत रखा और उन्हें जंगल में ही महल, राज्य और बगीचा दिया, साथ ही ढेरों आंवले का पेड़ दिया. उनके बेटे-बहु को जब पश्चाताप हुआ, तो उन्होंने अपने माता पिता से माफी मांगी. उन्होंने अपने बेटे-बहू को समझाया कि दान करने से धन कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है. बेटे-बहू भी उसके बाद सुख से राजा-रानी के साथ रहने लगे.

भगवान ने उन्हें सत रखा और उन्हें जंगल में ही महल, राज्य और बगीचा दिया, साथ ही ढेरों आंवले का पेड़ दिया. उनके बेटे-बहु को जब पश्चाताप हुआ, तो उन्होंने अपने माता पिता से माफी मांगी. उन्होंने अपने बेटे-बहू को समझाया कि दान करने से धन कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है. बेटे-बहू भी उसके बाद सुख से राजा-रानी के साथ रहने लगे.

कहा जाता है कि जो भक्त आंवले के वृक्ष की पूजा करता है उसे अक्षय फल प्राप्त होता है. साथ ही उसे अखंड सौभाग्य, स्वास्थ्य और धन की प्राप्ति होती है. यही वजह है कि इसे अक्षय नवमी कहा जाता है.

कहा जाता है कि जो भक्त आंवले के वृक्ष की पूजा करता है उसे अक्षय फल प्राप्त होता है. साथ ही उसे अखंड सौभाग्य, स्वास्थ्य और धन की प्राप्ति होती है. यही वजह है कि इसे अक्षय नवमी कहा जाता है.

Published at : 29 Oct 2025 03:10 PM (IST)

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