बार-बार टेंशन लेते हैं तो आज ही देखना शुरू कर दें ऐसी फिल्में, जादुई दवा जैसे करेंगी काम

ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के वैज्ञानिकों के अनुसार जब हम डरावनी फिल्में देखते हैं, तो हमारा दिमाग खतरे की कंडीशन को सुरक्षित माहौल में महसूस करता है. इससे हमारा दिमाग यह सिखाता है कि कैसे डर को कंट्रोल करना चाहिए. जिससे असली जिंदगी के स्ट्रेस वाले हालत में हम खुद को बेहतर तरीके से संभाल पाते हैं.

ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के वैज्ञानिकों के अनुसार जब हम डरावनी फिल्में देखते हैं, तो हमारा दिमाग खतरे की कंडीशन को सुरक्षित माहौल में महसूस करता है. इससे हमारा दिमाग यह सिखाता है कि कैसे डर को कंट्रोल करना चाहिए. जिससे असली जिंदगी के स्ट्रेस वाले हालत में हम खुद को बेहतर तरीके से संभाल पाते हैं.

इसके अलावा एक रिसर्च में पाया गया है कि जो लोग नियमित रूप से हॉरर फिल्में देखते हैं, उनमें मुश्किल हालात से निपटने की क्षमता ज्यादा होती है.कोरोना महामारी के दौरान ऐसे लोग बाकी लोगों की तुलना में ज्यादा शांत और मानसिक रूप से मजबूत पाए गए.

इसके अलावा एक रिसर्च में पाया गया है कि जो लोग नियमित रूप से हॉरर फिल्में देखते हैं, उनमें मुश्किल हालात से निपटने की क्षमता ज्यादा होती है.कोरोना महामारी के दौरान ऐसे लोग बाकी लोगों की तुलना में ज्यादा शांत और मानसिक रूप से मजबूत पाए गए.

वहीं  साइकोलॉजी की एक स्टडी में हॉरर फैंस को तीन भागों में बांटा गया है, जिनमें Adrenaline Junkies जो डर कक थ्रिल और एंट्रेंस के लिए फिल्में देखते हैं. दूसरे White Knucklers जो डर को जीतने का एहसास पाना चाहते हैं और तीसरे Dark Copers जो असल जिंदगी की टेंशन कम करने के लिए डर को अपनाते हैं.

वहीं  साइकोलॉजी की एक स्टडी में हॉरर फैंस को तीन भागों में बांटा गया है, जिनमें Adrenaline Junkies जो डर कक थ्रिल और एंट्रेंस के लिए फिल्में देखते हैं. दूसरे White Knucklers जो डर को जीतने का एहसास पाना चाहते हैं और तीसरे Dark Copers जो असल जिंदगी की टेंशन कम करने के लिए डर को अपनाते हैं.

दरअसल हॉरर फिल्में  हमारे अंदर फाइट या फ्लाइट रिस्पांस को एक्टिव करती है. यानी डर के समय शरीर कैसे रिएक्ट करेगा. लेकिन हम फिल्म के जरिए इसे सुरक्षित माहौल में महसूस करते हैं, तो हमारा दिमाग धीरे-धीरे डर को पहचानना और काबू करना सीख जाता है.

दरअसल हॉरर फिल्में हमारे अंदर फाइट या फ्लाइट रिस्पांस को एक्टिव करती है. यानी डर के समय शरीर कैसे रिएक्ट करेगा. लेकिन हम फिल्म के जरिए इसे सुरक्षित माहौल में महसूस करते हैं, तो हमारा दिमाग धीरे-धीरे डर को पहचानना और काबू करना सीख जाता है.

नीदरलैंड में हुई एक रिसर्च में बच्चों को एक वीडियो गेम खिलाया गया है, जिसमें डरावने माहौल में शांत रहने का पर उन्हें पॉजिटिव रिवॉर्ड मिलता है. इस रिसर्च का रिजल्ट यह रहा कि जो बच्चे डर को झेलना और खुद को शांत रखना सीख गए उनमें एंग्जायटी भी कम हो गई.

नीदरलैंड में हुई एक रिसर्च में बच्चों को एक वीडियो गेम खिलाया गया है, जिसमें डरावने माहौल में शांत रहने का पर उन्हें पॉजिटिव रिवॉर्ड मिलता है. इस रिसर्च का रिजल्ट यह रहा कि जो बच्चे डर को झेलना और खुद को शांत रखना सीख गए उनमें एंग्जायटी भी कम हो गई.

एक्सपर्ट्स का कहना है कि डर को कंट्रोल एनवायरमेंट में महसूस करना यानी फिल्म देखते वक्त हमारे मन को एक कॉग्निटिव एक्सरसाइज देता है. यह दिमाग को असल दुनिया की तनाव भरी कंडीशन से निपटने की ट्रेनिंग देता है.

एक्सपर्ट्स का कहना है कि डर को कंट्रोल एनवायरमेंट में महसूस करना यानी फिल्म देखते वक्त हमारे मन को एक कॉग्निटिव एक्सरसाइज देता है. यह दिमाग को असल दुनिया की तनाव भरी कंडीशन से निपटने की ट्रेनिंग देता है.

ऐसे में अगर आप हॉरर फिल्में देखने की शुरुआत करना चाहते हैं तो आपको कम हॉरर लेवल की फिल्मों से शुरुआत करनी चाहिए. इसके लिए आप The Others, A Quiet Place, The Sixth Sense, Get Out या Train to Busan जैसी फिल्में देख सकते हैं.

ऐसे में अगर आप हॉरर फिल्में देखने की शुरुआत करना चाहते हैं तो आपको कम हॉरर लेवल की फिल्मों से शुरुआत करनी चाहिए. इसके लिए आप The Others, A Quiet Place, The Sixth Sense, Get Out या Train to Busan जैसी फिल्में देख सकते हैं.

Published at : 28 Oct 2025 09:59 PM (IST)

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