Shani Pradosh Vrat 2025: शनि महादशा से मुक्ति पाने के लिए 4 अक्टूबर को करें ये 3 उपाय! धन-दौलत का मिलेगा वरदान!


Shani Pradosh Vrat 2025: साल 2025 में अक्टूबर का महीना कई मायनों में खास रहने वाला है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस महीने कई त्योहारों के साथ व्रत भी आने वाले हैं. इसी कड़ी में 4 अक्टूबर 2025, शनिवार को शनि प्रदोष व्रत है, जो शनि देव की भक्ति के लिए बेहद महत्वपूर्ण दिन माना जा रहा है.

इस दिन तीन शक्तिशाली उपाय करने से शनि महादशा से छुटकारा मिलने के साथ जन्मों जन्मांतर के पापों से भी मुक्ति मिलती.

शनि प्रदोष व्रत पर करें तीन महाशक्तिशाली उपाय

इस बार शनि प्रदोष व्रत शनिवार के दिन होने के कारण इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है. इस दिन भगवान शिव के साथ शनि महाराज की पूजा करने का भी विधान होता है.

ज्योतिषाचार्या अनीष व्यास के मुताबिक इस व्रत को करने से शनि के अशुभ प्रभाव साढ़ेसाती, शनि ढैय्या और महादशा से छुटकारा मिलता है. इस साल अक्टूबर माह में दुर्लभ संयोग का निर्माण हो रहा है, क्योंकि एक ही महीने में दो बार शनि प्रदोष व्रत रखा जाएगा. आइए जानते हैं इससे जुड़ी अहम जानकारी?

शनि प्रदोष व्रत का महत्व

शनि प्रदोष व्रत का मतलब ही यही है कि, शनि देव की नाराजगी से व्यक्ति के जीवन में आने वाली तमाम कष्टों का निवारण इस एक व्रत को करने से होता है. शनि देव कार्मिक ग्रह हैं, जिनका संबंध कर्म, स्ट्रगल और देरी से होता है. लेकिन जिन से वो प्रसन्न हो गए उनकी जिंदगी में ऐसे बदलाव आते हैं कि 7 पुश्तें कभी गरीब नहीं होती है.

उनके जीवन में धन, दौलत और शोहरत की कभी भी कमी नहीं रहती है. अगर आप भी शनि देव को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो 4 अक्टूबर को तीन उपाय जरूर करें.

शनि प्रदोष व्रत 2025 के 3 शक्तिशाली उपाय

शनि प्रदोष व्रत के दिन सुबह उठाकर स्नान करने के बाद व्रत का संक्लप लें. इसके बाद किसी भी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर तिल और शहद अर्पित करें और शनि बीज मंत्रों का 108 बार जाप करें.

  • शनि बीज मंत्र- ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः

दूसरा महाउपाय

शनि प्रदोष व्रत वाले दिन शाम के समय शनि मंदिर जाकर छायादान करना है. ऐसा करने से सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा का अंत होता है.

तीसरा महाउपाय

इसके साथ ही व्रत वाले दिन संध्याकाल में पीपल पेड़ के नीचे तिल के तेल का दीपक जलाना है और 11 बार शनि निलांजन मंत्र का जाप करना है.

  • ॐ नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम

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