Rinmukteshwar mahadev: ऋण मुक्तेश्वर महादेव कर्ज से मुक्ति दिलाने वाले शिव धाम का रहस्य और पूजा विधि

ऋणमुक्तेश्वर महादेव मंदिर उज्जैन में स्थित माना जाता है. उज्जैन को प्राचीन काल से ही महादेव की नगरी कहा जाता रहा है. यह मंदिर पवित्र शिप्रा नदी के तट पर अवस्थित बताया जाता है. मान्यता यह है कि कर्ज से दबे हुए लोगों द्वारा यहां दर्शन किए जाने पर उन्हें मुक्ति प्रदान की जाती है. इस मंदिर को विशेष रूप से ऋणमुक्ति का प्रतीक माना गया है.

ऋणमुक्तेश्वर महादेव मंदिर उज्जैन में स्थित माना जाता है. उज्जैन को प्राचीन काल से ही महादेव की नगरी कहा जाता रहा है. यह मंदिर पवित्र शिप्रा नदी के तट पर अवस्थित बताया जाता है. मान्यता यह है कि कर्ज से दबे हुए लोगों द्वारा यहां दर्शन किए जाने पर उन्हें मुक्ति प्रदान की जाती है. इस मंदिर को विशेष रूप से ऋणमुक्ति का प्रतीक माना गया है.

महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन के साथ ही ऋणमुक्तेश्वर महादेव के दर्शन भी परंपरा का हिस्सा बनाए जाते हैं. यहां पर की जाने वाली पूजा को संकटों और कष्टों से निवारण का साधन समझा जाता है. शनिवार के दिन विशेष रूप से “पीली पूजा” का आयोजन कराया जाता है. इसी पूजा को इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता मानी जाती है और इसे श्रद्धालुओं द्वारा अत्यंत महत्व दिया जाता है.

महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन के साथ ही ऋणमुक्तेश्वर महादेव के दर्शन भी परंपरा का हिस्सा बनाए जाते हैं. यहां पर की जाने वाली पूजा को संकटों और कष्टों से निवारण का साधन समझा जाता है. शनिवार के दिन विशेष रूप से “पीली पूजा” का आयोजन कराया जाता है. इसी पूजा को इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता मानी जाती है और इसे श्रद्धालुओं द्वारा अत्यंत महत्व दिया जाता है.

शनिवार को आयोजित होने वाली इस पूजा में पीले रंग की वस्तुओं को अर्पित किया जाता है. परंपरा के अनुसार, यह पूजा मंदिर के पुजारियों द्वारा विधिवत संपन्न कराई जाती है. इस पूजा का महत्व केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं रखा गया है, बल्कि इसे जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति का साधन माना गया है. श्रद्धालु इस अनुष्ठान को बड़े विश्वास के साथ करवाते हैं.

शनिवार को आयोजित होने वाली इस पूजा में पीले रंग की वस्तुओं को अर्पित किया जाता है. परंपरा के अनुसार, यह पूजा मंदिर के पुजारियों द्वारा विधिवत संपन्न कराई जाती है. इस पूजा का महत्व केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं रखा गया है, बल्कि इसे जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति का साधन माना गया है. श्रद्धालु इस अनुष्ठान को बड़े विश्वास के साथ करवाते हैं.

इस अनुष्ठान में पीले कपड़े में चने की दाल, पीले फूल, हल्दी की गांठ और थोड़ा सा गुड़ बांधकर अर्पित किया जाता है. ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस विधि से हर मनोकामना पूर्ण की जाती है. भक्तों द्वारा इन वस्तुओं को जलधारा में अर्पित किया जाता है. शिवजी से प्रार्थना की जाती है कि उन पर कर्ज का बोझ न रहे और जीवन में संतुलन प्राप्त हो.

इस अनुष्ठान में पीले कपड़े में चने की दाल, पीले फूल, हल्दी की गांठ और थोड़ा सा गुड़ बांधकर अर्पित किया जाता है. ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस विधि से हर मनोकामना पूर्ण की जाती है. भक्तों द्वारा इन वस्तुओं को जलधारा में अर्पित किया जाता है. शिवजी से प्रार्थना की जाती है कि उन पर कर्ज का बोझ न रहे और जीवन में संतुलन प्राप्त हो.

श्रद्धालुओं द्वारा पूरे देश से इस मंदिर में आगमन किया जाता है. महाकालेश्वर के दर्शन के पश्चात इस मंदिर की पूजा-अर्चना भी आवश्यक मानी जाती है. भक्तों द्वारा यह विश्वास किया जाता है कि यहां की पूजा से न केवल कर्ज से मुक्ति मिलती है, बल्कि मानसिक शांति भी प्राप्त होती है. पीली पूजा के साथ मंदिर की महत्ता और भी बढ़ाई जाती है.

श्रद्धालुओं द्वारा पूरे देश से इस मंदिर में आगमन किया जाता है. महाकालेश्वर के दर्शन के पश्चात इस मंदिर की पूजा-अर्चना भी आवश्यक मानी जाती है. भक्तों द्वारा यह विश्वास किया जाता है कि यहां की पूजा से न केवल कर्ज से मुक्ति मिलती है, बल्कि मानसिक शांति भी प्राप्त होती है. पीली पूजा के साथ मंदिर की महत्ता और भी बढ़ाई जाती है.

मान्यता यह भी है कि सतयुग में राजा हरिश्चंद्र द्वारा ऋणमुक्तेश्वर महादेव की पूजा-अर्चना की गई थी. पूजा के उपरांत उन्हें कर्ज से मुक्ति प्राप्त हुई थी. परंपरा यह बताती है कि “ॐ ऋणमुक्तेश्वर महादेवाय नमः” मंत्र का जाप करते हुए पीली वस्तुओं का अर्पण किया जाता है. इस मान्यता को आज भी श्रद्धालुओं द्वारा विश्वास के साथ निभाया जाता है और आस्था से जोड़ा जाता है.

मान्यता यह भी है कि सतयुग में राजा हरिश्चंद्र द्वारा ऋणमुक्तेश्वर महादेव की पूजा-अर्चना की गई थी. पूजा के उपरांत उन्हें कर्ज से मुक्ति प्राप्त हुई थी. परंपरा यह बताती है कि “ॐ ऋणमुक्तेश्वर महादेवाय नमः” मंत्र का जाप करते हुए पीली वस्तुओं का अर्पण किया जाता है. इस मान्यता को आज भी श्रद्धालुओं द्वारा विश्वास के साथ निभाया जाता है और आस्था से जोड़ा जाता है.

Published at : 30 Sep 2025 06:00 PM (IST)

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