Homebound Movie Review:दोस्ती की कहानी जो दिल को छूती है

फ़िल्म – होमबाउंड
निर्माता – करण जौहर
निर्देशक -नीरज घेवान
कलाकार- विशाल जेठवा,ईशान खट्टर ,जाह्नवी कपूर और अन्य
प्लेटफार्म- सिनेमाघर
रेटिंग-साढ़े तीन

homebound movie review :मसान फेम निर्देशक नीरज घेवान की फ़िल्म होमबाउंड लगातार सुर्खियों में रही है. इंटरनेशनल फ़िल्मकार मार्टिन स्कोर्सेसे के फिल्म के एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर बनने से फ़िल्म के कान फ़िल्म फेस्टिवल में नौ मिनट मिले स्टैंडिंग ओवेशन तक फिल्म ने जमकर चर्चा बटोरी.फ़िल्म फिर सुर्खियों में ऑस्कर 2026 में भारत की ऑफिशियल एंट्री के लिए आई .फ़िल्म ने आज सिनेमाघरों में दस्तक दे दी है और फ़िल्म देखकर यह बात शिद्दत से महसूस होती है कि यह फ़िल्म वाक़ई तमाम सुर्खियां और सम्मान की हक़दार है .कई सोशियो पॉलिटिकल इश्यूज़ को ख़ुद में समेटे हुए यह फ़िल्म चुभने वाले सवाल पूछने के साथ साथ दिल छू लेने वाली दोस्ती की भी कहानी है.इस फिल्म के एक्सक्यूटिव प्रोड्यूसर मार्टिन स्कोर्सेसे की प्रसिद्ध लाइनें हैं कि द मोस्ट पर्सनल इज द मोर क्रिएटिव अगर कोई बात दिल से कही जाए तो वह दिल तक पहुंचती है. नीरज घेवान की यह फिल्म वही करती है. 

दोस्ती की है कहानी

फिल्म की कहानी उत्तरप्रदेश के दो दोस्तों चन्दन (विशाल जेठवा ) और शोएब (ईशान खट्टर )की है.चन्दन दलित है. वह अपनी इस पहचान को छिपाकर रखता है. शोएब अपनी पहचान को छिपाता नहीं है,लेकिन मुस्लिम समुदाय के होने की वजह से उसे कदम कदम पर तिरस्कार झेलना पड़ता है.दोनों दोस्तों का सपना पुलिस में भर्ती होने का है ताकि उन्हें वह सम्मान मिल सके,जो उनकी जाति धर्म की वजह से नहीं मिलता है . दोनों ही पुलिस भर्ती के लिए अप्लाय करते हैं .चंदन का नाम भी आ जाता है ,लेकिन प्रशासन की लापरवाही की वजह से इसका रिजल्ट टलता जाता है. अच्छी जिंदगी की चाह दूर की कौड़ी लगने लगती है तो चन्दन को हालात के आगे घुटने टेकते हुए उत्तर प्रदेश से गुजरात की एक सूरत मिल में नौकरी करने के लिए चला जाता है. जिसका हिस्सा शोएब भी आगे चलकर बन जाता है क्योंकि दोनों के परिवार की आर्थिक स्थिति बुरी है . धीरे – धीरे जिंदगी पटरी पर आने लगती है कि कोरोना महामारी फैल जाती है और फिर ना चाहते हुए दोनों दोस्तों को अपने घर लौटना पड़ता है . क्या ये दोनों दोस्त लौट पाते हैं.चन्दन के पुलिस रिजल्ट का क्या हुआ है. इन सब सवालों के जवाब आगे की फिल्म देती है.

फ़िल्म की खूबियां और खामियां

फ़िल्म की कहानी बशारत पीर  के न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे एक लेख से प्रेरित है .फ़िल्म अपने क्रेडिट रोल्स से ही चन्दन और शोएब के सपने और उसे तोड़ती हुई कड़वी हकीकत से भी वाक़िफ़ करवा देती है .जाति और धर्म से जुड़े भेदभाव और सरकारी तंत्र और उसमें काम कर रहे लोगों की बेरुख़ी भी यह फ़िल्म हाईलाइट करती है.वह भी बिना किसी ड्रामा और शोर शराबे के.फ़िल्म की कहानी हकीकत होने का दावा नहीं करती है,लेकिन फ़िल्म पूरी तरह से रियलिस्टिक टच लिए हुए है .हर फ्रेम में यह बात महसूस होती है .फ़िल्म जाति और धर्म के भेदभाव को दिखाने के साथ समाज को आईना भी दिखा देती है कि हम जिस बात को नज़रअंदाज़ कर देते हैं. वह ये सब झेल रहे लोगों के सपनों ,खुशियों और आत्मविश्वास को चकनाचूर कर देता है .लॉकड़ाउन में मजदूरों की त्रासदी को जिस तरह से इस फ़िल्म ने दिखाया है . वह आपके दिल को एक बार फिर उस भयावह अतीत की याद दिला देता है.खासकर शोएब के पानी मांगने पर गांव वालों का पत्थर फेंकने वाले दृश्य.फ़िल्म सिर्फ़ भारतीय समाज में फैले बुराइयों को ही नहीं बल्कि अच्छाइयों को भी दिखाने से चूकती नहीं है .ईद पर शोएब के घर पर जाकर बिरयानी खाने वाला दृश्य गंगा जमुनी तहजीब को दर्शाता है .कोरोना के सुपर स्प्रेडर वाले आरोप में शोएब को पुलिस वालों की ज्यादती झेलता देख चंदन का ख़ुद को भी मुस्लिम बताकर मार खाने वाला दृश्य भी धर्म को दोस्ती के आगे बौना बता देता है .चंदन की माँ को जब दलित की वजह से स्कूल में बच्चों के लिए खाना बनाने की नौकरी से निकाला जा रहा होता है तो प्रिंसिपल जो जाति से ब्राह्मण थे.वह अकेले चंदन की माँ के सपोर्ट में दिखते हैं.फिल्म की सिनेमेटोग्राफी एक अहम किरदार है तो संवाद नायब हैं.दलित होते हुए भी चन्दन कॉलेज का फॉर्म जनरल कैटेगरी में यह कहते हुए भरता है कि सही नाम लिखता हूं तो दूसरों से दूर हो जाता हूं और झूठा नाम लिखता हूं तो खुद से दूर हो जाता हूं .फिल्म के दूसरे पहलू भी फिल्म में अपना आकर्षण जोड़ते हैं.

कास्टिंग ने लगाया चार चाँद

इस फ़िल्म की कहानी को इसकी कास्टिंग और मजबूत बनाती है . ख़ासकर विशाल जेठवा ने जबरदस्त परफॉरमेंस दी है . आप उनके किरदार के ग़ुस्से ,छटपटाहट ,बेबसी ,ख़ुशी सभी को महसूस करते हैं .ईशान खट्टर ने भी यादगार परफॉरमेंस दी है .यह दोस्ती की कहानी है . ऐसे में ईशान और विशाल की दोस्ती बहुत अहम बन जाती है और इन दोनों ने इस दोस्ती को पर्दे पर पूरी शिद्दत के साथ जिया है .आपको उनकी बाण्डिंग गुदगुदाती है और जब वह आपस में लड़ते हैं तो आपका दिल भी दुखता है. अभिनेत्री शालिनी वत्स ने दिल को छू जानेवाला परफॉरमेंस दिया है खासकर फिल्म के आखिरी दृश्य में उनका दर्द झकझोर देता है.जो एक एक्टर के तौर पर उनकी कामयाबी को दर्शाता है.जाह्नवी कपूर फ़िल्म में गिने- चुनें दृश्यों में दिखी हैं . उन्होंने अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है .सपोर्टिंग कास्ट की भी तारीफ़ बनती है . ईशान और चंदन दोनों के परिवारों की भूमिका में नजर आए कलाकार पूरी तरह से अपनी किरदार में रच बस गए हैं . जिस वजह से यह फ़िल्म और भी ज़्यादा हकीकत के क़रीब हो गयी है.

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