- विजेता : जीरो टू हीरो: ए रियल-लाइफ जर्नी, यानी ‘इच्छाशक्ति की कहानी’
- निर्माता : राजेश के. अग्रवाल
- निर्देशक : राजीव एस. रुईया
- लेखक- संदीप नाथ
- कलाकार : रवि भाटिया, भारती अवस्थी, ज्ञान प्रकाश, दीक्षा ठाकुर, गोदान कुमार, प्रीति अग्रवाल, नीरव पटेल
Vijeyta Film Review: बायोपिक फिल्म या जीवनीपरक फिल्म किसी वास्तविक या ऐतिहासिक व्यक्ति के जीवन को दर्शाती है. ऐसी फिल्म में एक विशेष व्यक्ति के जीवन को दर्शाया जाता है और केंद्रीय चरित्र के वास्तविक नाम का उपयोग किया जाता है. ऐसी फिल्में अमूमन दर्शकों को भाती रही हैं. सर्वश्रेष्ठ बायोपिक फिल्मों की लिस्ट में एक और बायोग्राफिकल ड्रामा का नाम जुड़ने जा रहा है. इसका नाम है ‘विजेता : जीरो टू हीरो: ए रियल-लाइफ जर्नी’. यह फिल्म दर्शकों को मशहूर व्यवसायी डॉ. राजेश के. अग्रवाल की असाधारण जीवन यात्रा की झलक दिखाती है.
डॉ. राजेश के अग्रवाल, यानी एक ऐसा व्यक्ति, जो कोलकाता की गलियों से उठकर यूएई के सबसे सम्मानित अरबपतियों में से एक और स्थिरता के लिए एक वैश्विक आवाज बन गया. कुल मिलाकर ‘विजेता’ सिर्फ एक सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह याद दिलाती है कि धैर्य, नैतिकता और सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव इंसान की किस्मत को बदल सकते हैं. फिल्म इस भावना को उजागर करती है कि कैसे एक कहानी संघर्ष से शुरू होकर विजय में बदलती है. इसी वजह से ‘विजेता’ को इस साल की सबसे प्रेरणादायक फिल्मों में से एक माना जा रहा है.
भावनात्मक कहानी
राजीव एस. रुइया द्वारा निर्देशित, डॉ. राजेश के अग्रवाल द्वारा आरकेजी मूवीज के बैनर तले निर्मित और संदीप नाथ द्वारा लिखित ‘विजेता’ एक भावनात्मक, सशक्त और प्रेरणादायक कहानी है. प्रतिकूल परिस्थितियों पर विजय का प्रतीक यह फिल्म एक ऐसी कहानी पेश करती है, जो व्यक्तिगत जीत के साथ-साथ व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता, अंडरवर्ल्ड के खतरों और व्यक्तिगत नुकसान की चुनौतियों को बखूबी दर्शाती है. रवि भाटिया, ज्ञान प्रकाश, भारती अवस्थी, दीक्षा ठाकुर, गोदान कुमार, प्रीटी अग्रवाल, नीरव पटेल जैसे कई और अन्य कलाकारों से सजी ‘विजेता’ केवल वित्तीय सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह लचीलेपन, नैतिकता और सभी बाधाओं से ऊपर उठने की इच्छाशक्ति की कहानी भलीभांति बयां करती है. कभी हार नहीं मानने और नगण्य व्यक्ति का महत्वपूर्ण बन जाने की थीम पर आधारित ‘विजेता’ 19 सितंबर 2025 को सिनेमाघरों में रिलीज होगी.
कथासार
‘विजेता’ एक प्रेरणादायक फ़िल्म है, जो ‘जीरो टू हीरो’ की सच्ची कहानी पर आधारित है, जिसमें एक आम इंसान की मेहनत और आत्मविश्वास से सफल बनने की यात्रा दिखाई गई है. ‘विजेता’ एक मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी है. कहानी की शुरुआत एक साधारण परिवेश में कड़ी मेहनत करते एक युवक के दृश्यों से होती है और यह शुरुआत ही उसके विनम्र आरंभ का प्रतीक भी साबित होता है. इसके बाद इसकी कहानी विश्वासघात, प्रतिद्वंद्विता और अंडरवर्ल्ड की दुनिया से मिलने वाली धमकियों के बीच तेजी से आगे बढ़ती है, जो नायक के संघर्ष करने के जज्बे की तीव्रता को शिद्दत से दिखाती है. कहानी का क्लाइमेक्स उस सीन में नजर आता है, जहां लीड किरदार राजेश एक दहाड़ती भीड़ के सामने सीना ठोककर शान से खड़ा है और चुनौतियों के बीच अपने परिवार की रक्षा और एक समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ संकल्पित नजर आता है और अंतत: विजय हासिल करके ही दम लेता है. यहां यह कहने में हिचक नहीं कि यही सीन फिल्म की टैगलाइन— ‘जीरो टू हीरो: ए रियल-लाइफ जर्नी’ को सार्थक करता है. कुल मिलाकर कहें तो चर्चित गीतकार और लेखक संदीप नाथ द्वारा लिखी गई पटकथा इस फिल्म को व्यक्तिगत संघर्षों और जीवन से बड़े टकरावों को परदे पर जीवंत करती है.
अभिनय
बायोपिक किरदार निभाना कभी आसान नहीं होता. एक कलाकार को मूल किरदार के अंदर तक घुसना पड़ता है. और अगर, मूल किरदार जीवित हो तो यह चैलेंज और भी ज्यादा कठिन हो जाता है. इस फिल्म में राजेश की भूमिका में रवि भाटिया केंद्रीय रोल में हैं और यह कहने में हिचक नहीं कि वह पूरी फिल्म में छाए हुए भी हैं. यूं कहिए कि पूरी फिल्म उन्हीं के मजबूत कंधों पर टिकी है. रवि के किरदार में जीत—हार से लेकर संघर्ष—अवसाद, आशा—निराशा सबका मिश्रण है और सभी रूप में वह बेजोड़ साबित हुए हैं. मूल रूप से अयोध्या की रहने वाली एवं इसी फिल्म से बॉलीवुड में डेब्यू करने वाली भारती अवस्थी के साथ रवि की जोड़ी जंचती भी है. रवि के पिता की भूमिका में दिग्गज अभिनेता ज्ञान प्रकाश ने भी अच्छा साथ निभाया है. गोदान कुमार ने भी अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय करने का प्रयास किया है और वह कामयाब भी रहे हैं. प्रीति अग्रवाल भी कमजोर कड़ी नहीं हैं, तो नीरव पटेल भी अपनी भूमिका से न्याय करते हैं. ये सभी किरदार राजेश अग्रवाल के जीवन को आकार देते और रिश्तों को जीवंत करते हैं.
निर्देशन
फिल्म की पूरी शूटिंग भोपाल में हुई है. निर्देशक राजीव एस. रुइया ने फिल्म के हर एंगल पर न केवल अपनी पैनी निगाह रखी है, बल्कि हर कलाकार से अपने हिसाब और मर्जी के मुताबिक काम लिया है. बायोपिक के चैलेंज से बखूबी वाकिफ होने के कारण ही निर्देशक अपने कलाकारों से इतना उम्दा काम ले पाया है. फिल्म का छायांकन भी अद्भुत है. बीते हुए समय को दिखाने के लिए सेपिया टोन का इस्तेमाल, संघर्ष के लिए गहरे कंट्रास्ट का उपयोग और विजयोल्लास के लिए भव्य दृश्य का फिल्मांकन कहानी की वास्तविक नाटकीयता में गहरे रंग भरता है. कुल मिलाकर यह सामान्य से खास बनने की कहानी कहने वाली फिल्म है. राजेश के. अग्रवाल की यात्रा ऐसी है, जिसे दुनिया को देखने की जरूरत है.
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