
सतयुग से लेकर कलियुग तक भगवान विश्वकर्मा जी अपने हाथों से कई अद्भुत वस्तुओं भवन, असत्र, शस्त्र और वाहनों का निर्माण किया था, जैसे लंका, इंद्रप्रस्थ, हस्तिनापुर, जगन्नाथ मंदिर, त्रिशूल, सुदर्शन चक्र आदि उनमें से कई तो आज भी धरती पर मौजूद हैं. इन निर्माणों में वास्तुशिल्प, इंजीनियरिंग का अद्भुत उदाहरण मिलता है.

पुष्पक विमान – पुष्पक विमान भगवान विश्वकर्मा की कला का अद्भुत उदाहरण है. ये रथ मालिक की इच्छा अनुसार कहीं भी उड़ सकता था. धरती ही नहीं बल्कि ग्रहों के बीच भी यात्रा कर सकता था. ये मन की गति से चलने की क्षमता, आकार बदलने की क्षमता थी.

उड़ीसा का विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ जी की मूर्ति तो विश्वकर्मा के शिल्प कौशल का अप्रतिम उदाहरण माना जाता है. विश्वकर्मा जी ने शर्त रखी कि वे एक कमरे में मूर्तियां बनाएंगे और कोई भी इसमें प्रवेश नहीं करेगा. काफी समय बीत जाने के बाद कोई आवाज नहीं आई तो, राजा ने दरवाजा खोल दिया. नाराज होकर विश्वकर्मा काम अधूरा छोड़कर अंतर्धान हो गए और मूर्तियां अधूरी रह गई.

द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने विश्वकर्मा जी से भव्य और विशाल द्वारिका नगरी का निर्माण करवाया था. द्वारका की गलियां, रत्नजटित महल और भव्य द्वार उनकी अद्भुत वास्तुकला का नमूना हैं.

इंद्रप्रस्थ हमारे शास्त्रों के अनुसार कलियुग के आरंभ होने के पचास वर्ष पहले भगवान विश्वकर्मा ने ही इंद्रप्रस्थ जैसे भव्य नगर का निर्माण भी किया था. हस्तिनापुर से निकाले जाने के बाद पांडवों ने इंद्रप्रस्थ को ही अपनी राजधानी बनाया था. वर्तमान काल में इंद्रप्रस्थ को भारत की राजधानी दिल्ली के नाम से जाना जाता है.

भगवान विष्णु का सबसे शक्तिशाली अस्त्र सुदर्शन चक्र विश्वकर्मा की शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण है. इसकी गति मन की गति से भी तेज मानी जाती थी. यह एक बार छोड़े जाने के बाद अपने लक्ष्य को पूरा करके वापस लौटता था.
Published at : 17 Sep 2025 11:01 AM (IST)
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