मुगल बादशाह औरंगजेब की क्रूरता के बारे में कई इतिहासकारों ने अपनी किताबों मे लिखा है. इनमें यह भी बताया गया है कि औरंगजेब के डर से अंग्रेज भी थर-थर कांपते थे. इतना ही नहीं कुछ ने तो इस्लाम भी कबूल कर लिया था.
इस घटना के बारे में एलेक्जेंडर हेमिल्टन ने अपनी किताब में लिखा है. जब यह घटना हुई तो हेमिल्टन बम्बई में मौजूद थे. उस जमाने में पश्चिम में सूरत, बम्बई और पूर्व में मद्रास और कलकत्ता से लेकर 2 मील दूर गंगा पर स्थित बंदरगाह हुगली और कासिम बाजार तक ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यवसायिक केंद्र स्थापित थे.
इन इलाकों में अंग्रेजों के अलावा पुर्तगाली, डच और कई स्वतंत्र व्यापारी भी सक्रिय थे, उन्हें भी व्यापार के लिए अंग्रेजों जैसे अधिकार हासिल थे, जो लंदन में ईस्ट इंडिया कंपनी के अध्यक्ष जोजाया चाइल्ड को अच्छा नहीं लगा और वह बहुत गुस्से में आ गए. उनको मंजूर नहीं था कि कोई और उनके मुनाफे का हिस्सेदार बने. इसके बाद चाइल्ड ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वह मुगल जहाजों का रास्ता काट दें और उनके जहाजों को लूट लें. इतना ही नहीं साल 1686 में चाइल्ड ने ब्रिटेन से ब्रिटिश सिपाहियों की पलटन भी भेज दी और निर्देश दिया की चटगांव पर कब्जा कर लें.
चाइल्ड की इस घोषणा के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के सिपाहियों ने मुगलों के कुछ जहाज लूट लिए. इसके जवाब में मुगलों के एक काले मंत्री अलबहर सीदी याकूत ने एक ताकतवर समुद्री जहाज से बम्बई तट की घेराबंदी कर ली. हेमिल्टन ने इस घटना के बारे में लिखा, ‘सीदी 20 हजार सिपाही लेकर पहुंच गया और आधी रात को तोप से गोले दागकर सलामी दी, जिसके बाद अंग्रेजों ने भागकर किले में पनाह ले ली.’
हेमिल्टन ने बताया कि सीदी याकूत ने किले के बाहर ईस्ट इंडिया कंपनी के इलाके लूट लिए और मुगलों के झंडे गाड़ दिए. जो सिपाही लड़ने के लिए गए उनके गले काट दिए गए और बाकियों को गले में जंजीरें पहनाकर बम्बई की गलियों से गुजारा गया.
14 महीने तक सीदी याकूत ने किले की घेराबंदी करे रखी. जब खाने पीने का सामान खत्म होने लगा और बीमारियां बढ़ने लगीं तो कंपनी के कुछ कर्मचारी चुपके से भाग निकले और याकूत से जाकर मिले. हेमिल्टन के अनुसार इनमें से कुछ धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम बन गए.
आखिरकार अंग्रेजों की हिम्मत जवाब दे गई और उन्होंने अपने दो दूत औरंगजेब के दरबार में भेजे ताकि मुगल बादशाह हार की शर्तें तय कर सके. दोनों ने गिड़गिड़ाकर कंपनी के अपराध को स्वीकार किया और माफी मांगी. औरंगजेब ने इस शर्त पर उनकी माफी कबूल की कि अंग्रेज मुगलों से जंग लड़ने का डेढ़ लाख रुपये हर्जाना देंगे, आगे से आज्ञाकारी होने का वादा करेंगे, जोजाया चाइल्ड भारत छोड़ दे और दोबारा कभी यहां न आए.
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