SIP का दम या कुछ और? विदेशी निवेशकों की बिकवाली से बाजार पर क्यों नहीं पड़ रहा पहले जैसा असर, पढ़ें रिपोर्ट भारतीय स्टॉक मार्केट की तस्वीर अब पूरी तरह बदल चुकी है. कभी विदेशी निवेशकों (FIIs/FPIs) की खरीद-बिक्री पर बाजार का मूड तय होता था, लेकिन अब घरेलू निवेशकों के व्यवस्थित निवेश योजनाओं (SIPs) ने बाजार को मजबूती दी है.

भारत का शेयर बाजार अब विदेशी पूंजी पर निर्भर नहीं रह गया है. एक दशक पहले विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPIs) भारतीय शेयर बाजार के सबसे बड़े खिलाड़ी थे और उनकी बिकवाली से बाजार में तेज गिरावट आ जाती थी. लेकिन 2025 में हालात बदल गए हैं. SIP के जरिए हर महीने करोड़ों भारतीय निवेशक बाजार में स्थिर पूंजी डाल रहे हैं, जिससे विदेशी निवेशकों के प्रभाव में कमी आई है.

पिछले पांच साल में FPIs ने भारतीय इक्विटी में निवेश बढ़ाने के बजाय मुनाफावसूली की, जबकि घरेलू निवेशकों ने ₹190 अरब डॉलर से ज्यादा की पूंजी शेयर बाजार में लगाई. इस रिपोर्ट में हम जानेंगे कि क्यों विदेशी बिकवाली के बावजूद भारतीय बाजार मजबूत खड़ा है, SIP का योगदान क्या है और आने वाले समय में यह बदलाव भारत को किस दिशा में ले जा सकता है.

विदेशी निवेशकों का पुराना दबदबा

2013-14 के आसपास भारतीय बाजार पर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का दबदबा था. उस समय वे कुल भारतीय शेयर बाजार के 20% से ज्यादा हिस्से के मालिक थे. Nifty-50 इंडेक्स में उनकी हिस्सेदारी 28% तक थी. अगर इसे फ्री-फ्लोट (प्रमोटर की हिस्सेदारी हटाकर) के आधार पर देखें तो विदेशी निवेशकों का कंट्रोल करीब 55% था.

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इसका असर यह था कि विदेशी निवेशकों की खरीदारी से बाजार ऊंचाई पर पहुंच जाता था और उनकी बिकवाली से भारी गिरावट आती थी. लगभग दो दशकों तक वे भारतीय बाजार के असली “मूवर एंड शेकर्स” कहे जाते थे.

विदेशी निवेशकों की घटती हिस्सेदारी

2025 आते-आते विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी लगातार घटती गई. अब उनकी भारतीय इक्विटी में कुल हिस्सेदारी केवल 17.5% रह गई है. Nifty-50 में भी उनकी हिस्सेदारी घटकर 24.5% रह गई है. यह गिरावट इसलिए हुई क्योंकि विदेशी निवेशकों ने बीते पांच साल में ज्यादा पैसा लगाया नहीं, बल्कि बाजार की ऊंचाई का फायदा उठाकर मुनाफावसूली की.

भारतीय निवेशकों का उभार

भारतीय घरेलू निवेशकों ने पिछले 11 सालों में निवेश के तरीके में बड़ा बदलाव किया है. म्यूचुअल फंड के जरिए निवेश करने का ट्रेंड तेजी से बढ़ा और SIP इसका सबसे बड़ा हथियार बना.

एनएसई मंथली प्लस रिपोर्ट के मुताबिक, आज हर महीने SIP के जरिए करीब ₹25,000 करोड़ (लगभग $3 बिलियन) बाजार में निवेश हो रहा है. यह स्थिर पूंजी विदेशी बिकवाली को पूरी तरह बैलेंस कर देती है. 2014 में जहां केवल 1.6 करोड़ डायरेक्ट इक्विटी अकाउंट थे, वहीं 2025 में यह संख्या बढ़कर 11 करोड़ से ज्यादा हो गई है.

अब घरेलू निवेशक (प्रत्यक्ष निवेश और म्यूचुअल फंड के जरिए) कुल 18.5% बाजार के मालिक हैं, जबकि विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी 17.5% रह गई है.

FII बिकवाली के पीछे के कारण

1 जुलाई 2025 से 8 सितंबर 2025 तक विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार से ₹1 लाख करोड़ से ज्यादा निकाले हैं. इसके पीछे कई कारण हैं-

कमजोर कमाई- निफ्टी कंपनियों का मुनाफा लगातार पांच तिमाहियों से सिंगल डिजिट ग्रोथ में है.

ज्यादा वैल्यूएशन- मिडकैप और स्मॉलकैप स्टॉक्स का P/E अनुपात लंबे समय के औसत से ज्यादा है.

अमेरिका के टैरिफ- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए नए टैरिफ से भारत पर असर.

डॉलर की मजबूती- डॉलर इंडेक्स में उछाल ने विदेशी निवेशकों की रिटर्न कम की.

अमेरिकी ब्याज दरें ऊंची- 4.25%-4.50% ब्याज दर पर अमेरिकी बॉन्ड निवेश ज्यादा आकर्षक हैं.

क्यों टिक रहा है भारतीय बाजार

विदेशी बिकवाली के बावजूद बाजार में गिरावट नहीं आई. इसका कारण घरेलू निवेशकों का भरोसा और लगातार SIP के जरिए निवेश है. घरेलू म्यूचुअल फंड और रिटेल निवेशक अब “स्टिकी कैपिटल” का काम कर रहे हैं, जो हर महीने बाजार में पैसा डाल रहे हैं.

इस बदलाव की वजह से भारतीय बाजार पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो गया है. 2023 से अब तक जब भी विदेशी निवेशकों ने बिकवाली की, घरेलू निवेशकों ने खरीदारी कर बाजार को संभाल लिया.

विदेशी नहीं, भारतीय हैं असली खिलाड़ी

अब कहानी पलट चुकी है. पहले कहा जाता था कि “भारतीय शेयर की वैल्यू भारत की स्थिति तय करती है, लेकिन कीमत विदेशी निवेशक तय करते हैं.” अब हकीकत यह है कि “भारतीय बाजार की मजबूती भारतीय निवेशकों पर निर्भर है.” विदेशी पूंजी अब भी जरूरी है, लेकिन यह तय है कि घरेलू निवेशक भारत के इक्विटी बाजार का भविष्य तय करेंगे.

खबर से जुड़े FAQs

Q1. क्या विदेशी निवेशकों का असर अब कम हो गया है?

हां, घरेलू निवेशकों की बढ़ती हिस्सेदारी और SIP फ्लो के कारण उनका असर कम हो गया है.

Q2. SIP क्या है और यह कैसे काम करता है?

SIP यानी सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान, जिसमें हर महीने तय रकम म्यूचुअल फंड में निवेश होती है.

Q3. 2025 में विदेशी निवेशकों की भारतीय बाजार में कितनी हिस्सेदारी है?

कुल हिस्सेदारी अब 17.5% रह गई है, जो 2014 में 20% से ज्यादा थी.

Q4. क्या बाजार में गिरावट का खतरा खत्म हो गया है?

नहीं, खतरा खत्म नहीं हुआ है, लेकिन घरेलू निवेशक इसे संभालने में सक्षम हैं.

Q5. भारतीय बाजार का भविष्य कैसा है?

युवा जनसंख्या, बढ़ती आय और निवेश की आदतों के कारण भविष्य बेहद मजबूत है.

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