‘गणपति बप्पा मोरया’ से गूंजा पुणे, ‘श्री गणेश रत्न रथ’ की अगुवाई में भाऊसाहेब रंगारी गणपति विसर्जन बना ऐतिहासिक

अनंत चतुर्दशी पर रविवार 7 सितंबर को पुणे शहर में श्रद्धा, परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का भव्य संगम देखने को मिला. हिन्दुस्तान के पहले सार्वजनिक गणपति, श्रीमंत भाऊसाहेब रंगारी गणपति बप्पा का विसर्जन इस वर्ष भी ऐतिहासिक शोभायात्रा के बीच पूरा हुआ. लगभग 20 घंटे लंबे जुलूस में आकर्षक रूप से सजाए गए ‘श्री गणेश रत्न रथ’ ने प्रमुख आकर्षण का केंद्र बनकर परंपरा की शान बढ़ाई.

सुबह 7:30 बजे डीसीपी ऋषिकेश रावले ने मंडप पर विधिवत पूजा अर्चना की. सुबह 8 बजे प्रतिमा को रत्न महल से बाहर निकालकर भव्य रूप से सजे रत्न रथ पर स्थापित किया गया. इसके बाद यह रथ मंडई के टिलक प्रतिमा चौक से जुलूस में शामिल हुआ और देर शाम को आधिकारिक विसर्जन यात्रा का शुभारंभ हुआ.

‘गणपति बप्पा मोरया’ के नारों से शहर गूंजा

पूरे मार्ग पर पुणे की संस्कृति और धार्मिक परंपरा जीवंत होती दिखी. मर्दानी खेल की प्रस्तुतियों ने मराठा योद्धाओं की शौर्यगाथा को साकार किया, वहीं श्रीराम और रामणबाग ढोल-ताशा पथकों की गूंज ने पूरे वातावरण को ऊर्जा और उत्साह से सराबोर कर दिया. “गणपति बप्पा मोरया” के नारों से शहर भक्तिमय हो उठा.

गणपति बप्पा मोरया' से गूंजा पुणे, ‘श्री गणेश रत्न रथ’ की अगुवाई में भाऊसाहेब रंगारी गणपति विसर्जन बना ऐतिहासिक

श्रीमंत भाऊसाहेब रंगारी गणपति ट्रस्ट के न्यासी और उत्सव प्रमुख पुणीत बालन ने कहा, “इस साल भी विसर्जन जुलूस ने पुणे की परंपरा और संस्कृति को नई ऊंचाइयां दीं. रत्न रथ की सजावट, ढोल-ताशा पथकों की थाप और मर्दानी खेल की प्रस्तुति ने शोभायात्रा को अविस्मरणीय बना दिया. परंपरा के अनुसार पांच मानाचे गणपति को पुष्पहार अर्पित किए गए.”

बिना DJ गणेशोत्सव मनाने का लक्ष्य

उन्होंने आगे कहा कि इस बार बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने डीजे-रहित गणेशोत्सव के आह्वान को स्वीकार किया. उनका विश्वास है कि आने वाले पांच से छह सालों में पूरा पुणे गणेशोत्सव डीजे-रहित होकर पूरी तरह पारंपरिक स्वरूप में मनाया जाएगा.

1892 में स्थापित श्रीमंत भाऊसाहेब रंगारी गणपति मंडल भारत का पहला सार्वजनिक गणपति मंडल माना जाता है. इस वर्ष का विसर्जन एक बार फिर पुणे की भक्ति, सांस्कृतिक वैभव और परंपरा का प्रतीक बन गया.

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