श्रीनगर में हजरतबल दरगाह में शिलान्यास पट्ट से अशोक चिह्न तोड़ने का मामला गर्माता जा रहा है। लोगों के विरोध के बाद अब जम्मू-कश्मीर के ग्रैंड मुफ्ती नसीर उल इस्लाम ने दरगाह में राष्ट्रीय प्रतीक अशोक चिह्न के होने पर ही सवाल खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि सवाल यह उठता है कि क्या राष्ट्रीय प्रतीक को किसी धार्मिक स्थल पर स्थापित किया जा सकता है या नहीं, खासकर जब यह लोगों से जुड़ा हो और हालात बिगड़ने का डर हो।
‘बिना राष्ट्रीय चिह्न के भी काम चल सकता था’
हजरतबल के ऐतिहासिक महत्व बताते हुए ग्रैंड मुफ्ती ने कहा कि इसका निर्माण साल 1968 में शुरू हुआ था और जिसे पूरा होने में एक दशक से ज्यादा का समय लगा। मुफ्ती ने संभावित अशांति पर बिना विचार किए राष्ट्रीय प्रतीक स्थापित करने के फैसले की आलोचना की। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय प्रतीक के बिना भी काम जारी रह सकता था। साथ ही सुझाव दिया कि वक्फ अधिकारियों और विद्वानों को समुदाय की प्रतिक्रिया का अनुमान लगाना चाहिए था।
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‘… तो भी ऐसा होता’
ग्रैंड मुफ्ती ने अतीत की घटनाओं से तुलना करते हुए कहा कि अगर किसी प्रमुख व्यक्ति की तस्वीर दरगाह में रखी जाती, तो भी ऐसी ही प्रतिक्रियाएं सामने आतीं। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह अशांति राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान नहीं थी, बल्कि उन लोगों के खिलाफ विरोध था, जिन्होंने श्रद्धालुओं की भावनाओं की अवहेलना की।
ग्रैंड मुफ्ती ने मीडिया पर भी उठाए सवाल
मुफ्ती नासिर उल इस्लाम ने घटना की मीडिया कवरेज पर अफसोस जताया। कहा कि लोगों को गलत तरीके से आतंकवादी बताया जा रहा है। मुफ्ती ने ज्यादा संतुलित प्रतिनिधित्व की अपील की और याद दिलाया कि इसी समुदाय (मुस्लिम) के सदस्यों ने पहले भी पहलगाम में हिंसा के पीड़ितों के साथ एकजुटता व्यक्त की थी।
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बीजेपी नेता ने की थी एफआईआर की मांग
घटना पर जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष डॉ. दरख़्शां अंद्राबी ने कहा कि राष्ट्रीय प्रतीक को कलंकित करना आतंकवादी हमला है। हमलावर एक राजनीतिक दल के गुंडे हैं। कहा कि इन लोगों ने पहले भी कश्मीर को बर्बाद किया। अब वे खुलेआम दरगाह शरीफ के अंदर आ गए और हमारे प्रशासक बाल-बाल बचे। कहा कि एक बार उनकी पहचान हो जाने पर उन्हें आजीवन दरगाह में प्रवेश करने से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी।
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