China Stock Market: चीन के शेयर बाजार में पिछले कुछ समय से धुआंधार तेजी जारी है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस तेजी का चीन के आर्थिक ग्रोथ से कोई मेल नहीं दिख रहा है। चीन की इकोनॉमी तमाम मुश्किलों से जूझ रही है। अमेरिका ने उसके सामानों पर भारी टैरिफ लगाया हुआ है। उसका प्रॉपर्टी मार्केट तमाम कोशिशों के बाद भी रसातल में बना हुआ है। जीडीपी ग्रोथ सुस्त बनी हुई है। लेकिन इसके सबके बावजूद चीन का शेयर बाजार लगातार ऊंचाइयों को छू रहा है। सवाल यह है कि क्या यह तेजी टिकाऊ है या फिर जल्द ही चीन के शेयर बाजार का बुलबुला फूटने वाला है?
पिछले एक महीने में चीन के मेनलैंड शेयरों की मार्केट वैल्यू में लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर का इजाफा हुआ है। शंघाई कंपोजिट इंडेक्स ने 10 साल का उच्चतम स्तर छू लिया है। वहीं पर CSI 300 इंडेक्स इस साल के निचले स्तर से 20% से अधिक ऊपर उछल चुका है। लेकिन वहीं दूसरे ओर चीन के जो हालिया आर्थिक आंकड़े आए हैं, वो निवेशकों के लिए चेतावनी की घंटी बजा रहे हैं। चीन में कंजम्प्शन कमजोर हुआ है। मकानों की कीमतें गिर रही हैं, और महंगाई लगभग शून्य पर टिक गई है।
यहां सवाल ये आता है कि आखिर फिर चीन का शेयर बाजार क्यों बढ़ रहा है? मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है कि चीन के जो बड़े और अमीर निवेशक है, जिनके पास निवेशक दूसरे विकल्प कम है। वे अपना पैसा शेयर बाजार में डाल रहे है। यही चीज मार्केट को ऊपर ले जा रही है। लेकिन ये अचानक आई तेजी बाजार में एक बुलबुला बनने का भी संकेत हो सकती है। ब्रोकरेज फर्म नोमुरा होल्डिंग ने इस तेजी को बिना किसी लॉजिकवाला अतिउत्साह बताया है।
लोम्बार्ड ओडियर लिमिटेड के मैक्रो स्ट्रैटेजिस्ट होमिन ली का कहना है कि, “चीन का शेयर मार्केट यह उम्मीद कर रहा है कि आगे चलकर आर्थिक हालात बेहतर हो जाएंगे। लेकिन अगर महंगाई दर 0% के आसपास बनी रहती है और घरेलू मांग कमजोर रहती है तो यह तेजी टिक नहीं पाएगी।”
चीन की सबसे बड़ी समस्या डिफ्लेशन यानी कीमतों में लगातार गिरावट है। इसके चलते वहां की कंपनियों की अर्निंग्स घट रही है, जो इस समय दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को सबसे अधिक परेशान कर रहा है। जुलाई में चीन में कंज्यूमर प्राइसेज लगभग सपाट रहे थे। प्रोडक्ट प्राइसेज में लगातार 34वें महीने गिरावट देखी गई। जबकि GDP डिफ्लेटर भी नेगेटिव में रहा। चीन की सरकार ने ओवरकैपेसिटी कम करने और प्राइस वॉर रोकने के लिए कदम उठाए हैं, लेकिन अब तक उसका असर सीमित ही है।
जुलाई के आंकड़े भी चिंताजनक रहे। फैक्ट्री उत्पादन, निवेश और रिटेल सेल्स सभी उम्मीद से कमजोर रहे। एक्सपर्ट्स का मानना है कि अमेरिका के टैरिफ और बीजिंग की “एंटी-इनोवेशन” नीतियों ने निवेश माहौल को और खराब कर दिया है। इसके चलते चीन के शेयर बाजार में लिस्टेड कंपनियों की अर्निंग्स यानी कमाई घट रही है। निवेशकों को उम्मीद है कि चीन अपनी इकोनॉमी को सपोर्ट करने के लिए नए कदम उठाएगा। लेकिन सरकार अब बड़े पैमाने पर स्टिम्युलस पैकेज की बजाय धीरे-धीरे नीतिगत उपायों को लागू करने पर अधिक जोर दे रही है।
कई मार्केट एक्सपर्ट अब इस मौजूदा हालात की तुलना साल 2015 से करने लगे हैं, जब चीन के शेयर बाजार में ऐसी ही तेजी और फिर अचानक गिरावट देखने को मिली थी। उस समय मार्जिन ट्रेडिंग यानी उधार लेकर शेयर खरीदने के ट्रेंड ने चीन के शेयर बाजार को आसमान तक पहुंचा दिया था, लेकिन जैसे ही नियम कड़े हुए, शेयर मार्केट धड़ाम से गिर गया। आज भी मार्जिन डेब्ट का स्तर 2.1 ट्रिलियन युआन ($292 बिलियन) पर है, जो 2015 के पीक (2.3 ट्रिलियन युआन) से बस थोड़ा ही नीचे है।
लोटस एसेट मैनेजमेंट के चीफ इन्वेस्टमेंट ऑफिसर हाओ होंग ने बताया कि “मार्केट में नकदी की भरमार और निवेशकों का बढ़ता उत्साह हमें दस साल पहले के ‘पागलपन भरे समय’ की याद दिलाता है। हालांकि अभी शुरुआती दौर है।”
कई ऐसे भी एक्सपर्ट्स है, जो मानते हैं कि इस बार तेजी थोड़ी मापी-तौली है और केवल कुछ सेक्टर्स तक सीमित नहीं है। इसके अलावा चीन के पास आज बड़ा डिपॉजिट रिजर्व, मजबूत टेक कंपनियां और मार्केट को सपोर्ट करने वाली नीतियां, जो दस साल पहले नहीं थी। लेकिन फिर भी अधिकतर एक्सपर्ट सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं। RBC वेल्थ मैनेजमेंट एशिया की जैस्मिन डुआन का कहना है कि वे उन सेक्टर्स से दूरी बना रहे हैं जहां डिफ्लेशन और मार्जिन प्रेशर का असर ज्यादा है।
वेटेंज मार्केट्स के एनालिस्ट्स हेबे चेन का कहना है कि चीन का बुल मार्केट इस बार कोई पारंपरिक ग्रोथ स्टोरी नहीं है, बल्कि एक ‘मिस्ट्री बॉक्स’ है। अगर एक बार निवेशकों का सेंटीमेंट बदला, तो उसके बाद मार्केट को नीचे जाने में देर नहीं लगेगा।
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