केंद्र सरकार ने छह महीने से अधिक समय तक अटके रहने के बाद 70,000 करोड़ रुपये के ‘प्रोजेक्ट 75 इंडिया (P-75I)’ को हरी झंडी दे दी है। इसके साथ ही रक्षा मंत्रालय और मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) को जर्मनी की थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (TKMS) के साथ आधुनिक पनडुब्बियां बनाने के लिए औपचारिक बातचीत शुरू करने की मंजूरी मिल गई है। न्यूज एजेंसी ANI की रिपोर्ट के मुताबिक, यह बातचीत इसी महीने के अंत तक शुरू हो सकती है।
क्या है प्रोजेक्ट 75 इंडिया?
प्रोजेक्ट 75I भारत की समुद्री सुरक्षा रणनीति का एक अहम हिस्सा है। इस प्रोजेक्ट के तहत जर्मनी के सहयोग से भारत में छह पनडुब्बियों का निर्माण किया जाएगा। रक्षा मंत्रालय ने इसी साल जनवरी में मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) को इस प्रोजेक्ट के लिए स्ट्रैटेजिक पार्टनर चुना था। सरकार और नौसेना का लक्ष्य है कि छह महीने में बातचीत पूरी करके इसे अंतिम मंजूरी तक पहुंचाया जाए।
सभी छह पनडुब्बियों को एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) सिस्टम से लैस किया जाएगा। यह तकनीक पनडुब्बियों को करीब तीन हफ्तों तक पानी के अंदर रहने में सक्षम बनाएगी। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य भारत की स्वदेशी पनडुब्बी निर्माण क्षमता को बढ़ाना और आयात पर निर्भरता कम करना है।
चीन और पाकिस्तान को मिलेगी चुनौती
ANI की रिपोर्ट के अनुसार, इस फैसले से पहले एक उच्च स्तरीय बैठक हुई थी। इस बैठक में रक्षा मंत्रालय और नौसेना के शीर्ष अधिकारियों ने भारतीय नौसेना के पनडुब्बी बेड़े की रूपरेखा पर चर्चा की।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि चीन और पाकिस्तान की बढ़ती सक्रियता के चलते भी भारत का यह कदम बेहद अहम हो जाता है। चीन तेजी से अपने नौसैनिक बेड़े का आधुनिकीकरण कर रहा है और हिंद महासागर में उसकी मौजूदगी लगातार बढ़ रही है। पाकिस्तान भी अपनी पनडुब्बी क्षमता को मजबूत कर रहा है।
ऐसे में भारत पर दबाव है कि वह अपनी पनडुब्बी निर्माण और आधुनिकीकरण योजनाओं को तेजी से लागू करे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, आने वाले 10 सालों में भारत अपनी करीब 10 पुरानी पनडुब्बियों को चरणबद्ध तरीके से बाहर करने की योजना बना रहा है। ऐसे में P-75I और दूसरे स्वदेशी प्रोजेक्ट बेहद अहम माने जा रहे हैं।
न्यूक्लियर सबमरीन प्रोग्राम
P-75I के अलावा भारत सरकार न्यूक्लियर अटैक सबमरीन (SSN) कार्यक्रम पर भी काम कर रही है। इसमें प्राइवेट सेक्टर की मुख्य कंपनी लार्सन एंड टुब्रो (L&T) को बड़ी भूमिका निभानी है, जो नौसेना के सबमरीन बिल्डिंग सेंटर के साथ मिलकर काम करेगी। सरकार इन दोनों परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाने की दिशा में विकल्प तलाश रही है।
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