Stock Market Big Update: घरेलू शेयर बाजार ने बीते सप्ताह की शुरुआत मजबूती के साथ की. निवेशकों के उत्साह के पीछे जीएसटी को अधिक रेशनलाइज बनाने की उम्मीद और एसएंडपी द्वारा सॉवरेन रेटिंग में सुधार बड़ा कारण रहा. हालांकि सप्ताह के अंत में मुनाफावसूली और बाहरी चुनौतियों ने तेजी को धीमा कर दिया. विश्लेषकों का मानना है कि भारत की रणनीति इस सप्ताह दोतरफा रही. एक ओर घरेलू विकास को मजबूत करने की कोशिशें रहीं तो दूसरी ओर बाहरी चुनौतियों का सामना करने की तैयारी भी दिखाई दी. जीएसटी को आसान और तर्कसंगत बनाने की उम्मीद ने बाजार को सहारा दिया. साथ ही, एसएंडपी की रेटिंग अपग्रेड ने विदेशी और घरेलू निवेशकों का भरोसा मजबूत किया.
बॉन्ड यील्ड और अमेरिकी टैरिफ पर चिंता
जियोजित इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड के रिसर्च हेड विनोद नायर ने कहा कि सप्ताह के अंत में 10-वर्षीय सरकारी बॉन्ड यील्ड में उछाल ने बाजार में हल्की चिंता पैदा की. इसके अलावा, निवेशक इस पर भी स्पष्टता चाहते हैं कि रूस से तेल आयात पर आधारित भारतीय सामानों पर अमेरिका का 25% अतिरिक्त टैरिफ अगले सप्ताह से लागू होगा या नहीं. अमेरिका में फेडरल रिजर्व के प्रमुख जेरोम पॉवेल ने संकेत दिए कि ब्याज दरों में जल्द कटौती हो सकती है. इस खबर के बाद डॉव जोन्स इंडेक्स 900 अंकों से ज्यादा चढ़कर नया इंट्रा-डे रिकॉर्ड बनाने में सफल रहा. इससे एशियाई बाजारों समेत भारतीय बाजार को भी शुरुआती सहारा मिला.
नीतिगत कदम और ग्रोथ का अनुमान
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पीएल कैपिटल के अर्थशास्त्री अर्श मोगरे ने कहा कि भारतीय नीति निर्माताओं ने 20 अरब डॉलर के जीएसटी-आधारित उपभोग प्रोत्साहन को आगे बढ़ाया है. इसके साथ ही आयकर कानून को आधुनिक रूप देने की दिशा में कदम उठाए गए हैं, जिससे अनुपालन आसान होगा और घरेलू मांग को बल मिलेगा. अनुमान है कि इन कदमों से जीडीपी में 0.6% की अतिरिक्त वृद्धि होगी. आरबीआई ने अपने 4% महंगाई लक्ष्य को बरकरार रखते हुए मौद्रिक नीति की निरंतरता का संकेत दिया है. वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही में 6.5-6.7% की वृद्धि का अनुमान है.
हफ्ते के आखिरी में दिखी मुनाफावसूली
शुक्रवार को बाजार में मुनाफावसूली देखने को मिली. सेंसेक्स 693.86 अंक टूटकर 81,306.85 पर बंद हुआ. निफ्टी 213.65 अंक की गिरावट के साथ 24,870.10 पर बंद हुआ. विश्लेषकों का कहना है कि अनुकूल मानसून, कम ब्याज दरों और अप्रत्यक्ष कर राहत से कंजम्पशन सेक्टर को लाभ मिल सकता है. हालांकि अमेरिकी मौद्रिक नीतियों और व्यापारिक तनाव का असर अल्पकालिक उतार-चढ़ाव में देखने को मिलेगा.
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