Mohammad ali jinnah: जिन्ना का छुपा सच! क्या पाकिस्तान सेक्युलर था? जानें इतिहास के पन्नों में दबा है गहरा राज!

Hidden History of Pakistan: मोहम्मद अली जिन्ना का जिक्र आते ही सबसे पहले पाकिस्तान की बुनियादी और हिंदुस्तान की बंटवारे की तस्वीर सामने आती है. पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को अक्सर एक ऐसे नेता के तौर पर याद किया जाता है, जिन्होंने मुसलमानों के लिए अलग मुल्क की मांग की और उसे सच कर दिखाया.

इसलिए उन्हें  मुसलमानों के लिए अलग मुल्क की मांग करने वाले मजहबी नेता के रूप में याद किया जाता है, लेकिन हकीकत कुछ और है. हालांकि बहुत कम लोग जानते हैं कि जिन्ना की सोच उन आलिमों और मौलवियों की रिवायती समझ से बिल्कुल हटकर थी.

वे इस्लाम को किसी कट्टर मजहबी ढांचे में कैद नहीं करते थे, बल्कि उसे इंसाफ, बराबरी और इंसानियत के नजरिए से देखते थे. इतिहास के दस्तावेज बताते हैं कि जिन्ना का झुकाव सिर्फ मजहबी दायरों तक मेहदूद नहीं थी, बल्कि आधुनिक और सेक्युलर सोच रखने वाले नेता थे. आइए जानते हैं क्या है हकीकत?

कराची का एतिहासिक भाषण
14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान की संविधान सभा में जिन्ना ने एक बेहद हैरान कर देने वाला बयान दिया. उन्होंने कहा कि “आप आजाद हैं, चाहे अपने मंदिर जाएं, अपनी मस्जिद जाएं या किसी और इबादतगाह में जाने के लिए आजाद हैं.”

यह बयान साफ दिखाता है कि जिन्ना चाहते थे पाकिस्तान सिर्फ धार्मिक आधार पर नहीं, बल्कि एक आधुनिक और खुले समाज के तौर पर खड़ा हो, जहां हर व्यक्ति को अपनी स्वतंत्रता के साथ जीने का हक हो.

इस्लाम की सोच पर जिन्ना का अनोखा नजरिया

  • जिन्ना के मुताबिक इस्लाम का असली मकसद इंसाफ, बराबरी और इंसानियत है.
  • जिन्ना कट्टरपंथी मुल्लाओं से दूरी बनाए रखते थे और नहीं चाहते थे कि वे राजनीतिक में ज्यादा प्रभाव डालें.
  • पश्चिमी शिक्षा से प्रभावित, जिन्ना इस्लाम को एक मौजूदा और उन्नतिशील नजरिए से समझते थे.

सूफी संतों से मेल क्यों जरूरी है? 
जिन्ना की सोच और सूफी संतों की तालीम में कई पहलुओं में मेल देखा जा सकता है. सूफी संत हमेशा मोहब्बत, शांति और इंसानियत का पैगाम फैलाते थे. उन्होंने धर्म की दीवारों से ऊपर उठकर इंसान की अहमियत को समझा और सिखाया.

इसी नजरिए से अगर हम जिन्ना के इस्लाम पर नजर डालें, तो साफ दिखता है कि उनका नजरिया भी सूफियों के विचारों के काफी करीब था.

सूफी संत और उनके पैगाम

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती: ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने हमेशा गरीबों और जरूरतमंदों की मदद की. उनका पैगाम मोहब्बत और इंसानियत फैलाना था, धर्म या जाति की परवाह नहीं. 

हजरत निजामुद्दीन औलिया: हजरत निजामुद्दीन औलिया ने सिखाया चाहे हिंदू हो या मुसलमान, प्रेम और सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है.

बाबा बुल्ले शाह: बाबा बुल्ले शाह ने धर्म और रीति-रिवाज से ऊपर मोहब्बत का पैगाम दिया. उनका ध्यान लोगों को इंसानियत और भाईचारे की ओर ले जाना था.

हजरत वारिस शाह और रूमी: हजरत वारिस शाह और रूमी ने रहस्यवाद और इंसाफ की शिक्षा दी. उनका पैगाम प्रेम, न्याय और रूहानी उन्नति के माध्यम से इंसान को बेहतर बनाने पर केंद्रित था.

इतिहास के पन्नो में दबा गहरा राज
दरअसल, जिन्ना की यह आधुनिक और सेक्युलर सोच पाकिस्तान की शुरुआती राजनीति में धीरे-धीरे दबा दी गई. धार्मिक पार्टियों और कट्टरपंथी नेताओं ने इस्लामी कानून लागू करने की मांग शुरू कर दी, जिससे जिन्ना का असली सपना पूरा नहीं हो पाया.

इसी वजह से आज भी लोग और इतिहासकार इस बात पर बहस करते हैं कि पाकिस्तान सच में जिन्ना का ‘सेक्युलर पाकिस्तान’ है या ‘धार्मिक पाकिस्तान’.

साफ लफ्जों में कहें तो, जिन्ना का इस्लाम के बारे में नजरिया उतना मजहबी नहीं था जितना लोग सोचते हैं. उनकी सोच एक आधुनिक और सभी धर्मो के लोगों के लिए खुले समाज की तरफ इशारा करती थी. यही वो ‘राज’ है जो इतिहास के पन्नो में कहीं दबकर रह गया.

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