नेपाल के लिपुलेख दर्रे पर अपने अधिकार के दावे को भारत ने किया खारिज, कहा पड़ोसी देश का दावा तथ्यहीन

भारत ने नेपाल द्वारा लिपुलेख दर्रे को लेकर उठाए गए इन दावों को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया है। विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने बुधवार को मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए भारत की स्थिति को दोहराया, जो इस मुद्दे पर हमेशा से स्पष्ट और सुसंगत रही है। उन्होंने बताया कि लिपुलेख दर्रे के माध्यम से भारत और चीन के बीच सीमा व्यापार 1954 में शुरू हुआ था और कई दशकों तक निर्बाध रूप से जारी रहा। हाल के वर्षों में कोविड-19 महामारी और अन्य कारणों से इस व्यापार में रुकावट आई, लेकिन अब दोनों देशों ने इसे फिर से शुरू करने पर सहमति जताई है।

नेपाल ने जताई आपत्ति

नेपाल ने सुबह लिपुलेख दर्रे के माध्यम से भारत और चीन के बीच व्यापार दोबारा शुरू करने पर कड़ी आपत्ति जताई थी, जिसे भारत ने तुरंत खारिज कर दिया। प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने कहा कि नेपाल के दावे न तो ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित हैं और न ही इनके समर्थन में कोई ठोस साक्ष्य मौजूद है। उन्होंने कहा कि किसी भी एकतरफा और कृत्रिम तरीके से क्षेत्रीय दावों का विस्तार न केवल अस्वीकार्य है, बल्कि इसे बनाए रखना भी संभव नहीं है।

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क्या है लिपुलेख व्यापार का इतिहास?

लिपुलेख दर्रा भारत और चीन के बीच एक पारंपरिक व्यापार मार्ग रहा है, जिसका उपयोग 1954 से हो रहा था। इस मार्ग ने दोनों देशों के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न वैश्विक संकट और अन्य जटिलताओं ने इस व्यापार को बाधित किया। अब, दोनों देशों के बीच आपसी सहमति के बाद इस मार्ग को फिर से सक्रिय करने का निर्णय लिया गया है, जो क्षेत्रीय सहयोग और आर्थिक प्रगति की दिशा में एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है।

भारत-नेपाल संबंधों में नई चुनौती

नेपाल के साथ भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को देखते हुए, लिपुलेख मुद्दा दोनों देशों के बीच एक नई चुनौती के रूप में उभरा है। भारत ने इस संदर्भ में कूटनीतिक संयम और संवाद पर जोर दिया है। प्रवक्ता ने कहा कि भारत नेपाल के साथ रचनात्मक बातचीत के लिए पूरी तरह तैयार है और लंबित सीमा मुद्दों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने के लिए कूटनीति के रास्ते अपनाने की इच्छा रखता है। यह दृष्टिकोण भारत की ‘पड़ोसी पहले’ नीति के अनुरूप है, जो क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को प्राथमिकता देता है।

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