शेयर बाजार में पिछले 6 हफ्तों से लगातार गिरावट जारी है। इसकी सबसे बड़ी वजह मानी जा रही है अमेरिकी टैरिफ। भारत अब दुनिया में सबसे ऊंचे अमेरिकी टैरिफ का सामना करने वाले देशों में से एक बन गया है। ट्रंप प्रशासन ने पहले से लागू 25% टैरिफ के ऊपर अतिरिक्त 25% आयात शुल्क लगा दिया है। यानी अब कुल टैरिफ 50% प्रतिशत हो गया है। लेकिन ब्रोकरेज फर्म नुवामा की मानें तो शेयर बाजार के सामने अमेरिकी टैरिफ से बड़ी एक और चुनौती है, और वो है ग्लोबल मंदी। नुवामा ने चेतावनी दी है कि ऊंचे टैरिफ तो चोट पहुंचाएंगे ही, लेकिन असली और बड़ी चोट आने वाले ग्लोबल स्लोडाउन से होगी।
ब्रोकरेज फर्म नुवामा का कहना है कि केवल टैरिफ के आधार पर सभी सेक्टर की विनर और लूजर्स कंपनियों की लिस्ट बनाने से शेयर मार्केट की चिंता खत्म होने वाली नहीं है। असली खतरा है अमेरिका के करंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) में कमी, जो ग्लोबल लेवल पर एक अंसतुलन के साथ स्लोडाउन को जन्म दे सकती है।
नुवामा का कहना है कि भारत अगर अमेरिका से टैरिफ घटाने के लिए बातचीत में सफल भी हो जाए, तब भी ग्लोबल स्लोडाउन से भारत का एक्सपोर्ट को बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। जैसे-जैसे अमेरिका का करंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) घटेगा, चीन की ओर से सस्ते दामों पर माल ‘डंप’ करने का खतरा बढ़ेगा, और इसका असर उन सेक्टर्स पर भी पड़ेगा जिनका अमेरिका से कोई सीधा लेना-देना नहीं है।
नुवामा ने सुझाव दिया कि इस हालात से निपटने के लिए RBI को तेजी से रेट कट यानी ब्याज दरों में कटौती करनी होगी और सरकार को वित्तीय प्रोत्साहन देना होगा। इसके अलावा रुपया कमजोर होना भी टैरिफ और डंपिंग का रोकने का एक बेहतर इलाज हो सकता है।
ब्रोकरेज का मानना है कि एक ग्लोबल आर्थिक संतुलन के लिए देनदार और लेनदार देशों में समान रूप से बदलाव जरूरी है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो पूरी दुनिया में डिफ्लेशन का माहौल बन सकता है। नुवामा ने आगाह किया कि अमेरिका का चालू खाता घाटा कम हो रहा है और इसके लिए रोकने के लिए यह जरूरी है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में कटौती करे और चीन अपने घरेलू कंजम्प्शन में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी करे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में रीजनल ट्रेड टेंशन और बढ़ सकते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि अमेरिका का 10-साल की अवधि वाला बॉन्ड यील्ड अब उसकी नॉमिनल GDP ग्रोथ के करीब है, जो अक्सर आर्थिक मंदी का संकेत होता है। मार्केट रेट्स को नीचे लाने के लिए सिर्फ फेड की रेट कटौती नहीं, बल्कि क्वांटिटेटिव ईजिंग (QE) जैसे कदम भी जरूरी होंगे। लेकिन सवाल ये है कि, क्या इसके लिए फेडरल रिजर्व तैयार होगा?
ट्रेड वार का असर अब तक कैपिटल के फ्लो और एसेट मार्केट्स पर दिख चुका है। ट्रंप के टैरिफ ऐलानों के बाद शेयर मार्केट और करेंसी मार्केट दोनों में गिरावट आई। लेकिन ट्रंप की ओर से राहत देने के बाद इनमें रिकवरी भी देखी गई।
नुवामा ने कहा कि अभी अमेरिका सभी देशों से औसतन 18% टैरिफ वसूल रहा है। यहां से अब आगे टैरिफ का असर ट्रेड फ्लो और इकोनॉमी पर दिखाई देगा।
ब्रोकरेज ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच अभी बातचीत जारी है और इसकी बात की काफी संभावना है कि अमेरिकी आने वाले दिनों में भारत पर टैरिफ की दर को घटा सकता है। लेकिन इसके बावजूद ग्लोबल स्लोडाउन भारतीय इकोनॉमी के लिए चुनौती बना रह सकता है।
ब्रोकरेज ने कहा कि पुराने आंकड़ों से यह पता चलता है कि भारत की नॉमिनल ग्रोथ और और कॉरपोरेट रेवेन्यू का सीधा संबंध ग्लोबल व्यापार की रफ्तार से है। ऐसे में अगर ग्लोबल स्लोडाउन तेज हुआ, तो नुकसान काफी व्यापक और गहरा हो सकता है।
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