कश्मीर मटन डीलर्स एसोसिएशन द्वारा अन्य राज्यों से जीवित पशुओं के परिवहन पर अनिश्चितकालीन रोक लगाने की घोषणा के बाद, कश्मीर घाटी में मांस की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है. मटन डीलरों का कहना है कि पंजाब में चौकियों पर रोज़ाना उत्पीड़न, जबरन वसूली और रिश्वत की माँगों ने उन्हें यह कदम उठाने पर मजबूर किया है और जब तक जम्मू-कश्मीर सरकार हस्तक्षेप नहीं करती, हड़ताल जारी रहेगी.
एसोसिएशन के महासचिव मेहराजुद्दीन गनई ने कहा कि पंजाब के शंभू और माधोपुर चौकियों पर पशुओं का परिवहन करने वाले ड्राइवरों को 15,000 रुपये तक की रिश्वत देने के लिए मजबूर किया जा रहा है. उन्होंने कहा, “आज ही, देरी और गर्मी के कारण, ट्रकों में 50 से ज्यादा भेड़ें मर गई. हमें असहनीय नुकसान हो रहा है.”
‘और इस नुकसान को बर्दाश्त नहीं कर सकते’
गनई ने ज़ोर देकर कहा, ” यह फ़ैसला हड़ताल नहीं, बल्कि लगातार शोषण के कारण व्यापारियों पर थोपा गया एक असहाय कदम है. हम जनता से, खासकर शादियों की तैयारी कर रहे परिवारों से माफ़ी मांगते हैं. लेकिन हम अब और इस नुकसान को बर्दाश्त नहीं कर सकते.”
एसोसिएशन के अनुसार, राजस्थान, सीकर, फिरोजपुर, दिल्ली और अंबाला के आपूर्तिकर्ताओं ने इस फैसले का समर्थन किया है, क्योंकि कथित तौर पर इसी तरह का उत्पीड़न पशुधन आपूर्ति श्रृंखला के व्यापारियों को प्रभावित कर रहा है.
‘तत्काल कार्रवाई है आवश्यक’
गनई ने मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से तुरंत हस्तक्षेप करने और स्थिति का प्रत्यक्ष आकलन करने के लिए पंजाब में एक तथ्य-खोजी दल भेजने का आग्रह किया. उन्होंने कहा, “हम सभी दस्तावेज और सबूत उपलब्ध कराने के लिए तैयार हैं. लेकिन कार्रवाई तत्काल आवश्यक है.”
उन्होंने 2016 में इसी तरह के संकट को याद किया, जब एक मंत्री के पंजाब दौरे के बाद ही यह मुद्दा सुलझा था. उन्होंने चेतावनी दी, “हजारों परिवार इस व्यापार पर निर्भर हैं. अगर कुछ नहीं बदला, तो आपूर्ति में रुकावट लंबे समय तक जारी रह सकती है, जिससे एक बड़ा संकट पैदा हो सकता है.”
हर साल 1400 करोड़ का होता है कारोबार
चूंकि कश्मीर की मांस आपूर्ति उत्तरी राज्यों के पशुधन पर बहुत अधिक निर्भर है, इसलिए इस रुकावट से आने वाले दिनों में उपलब्धता और कीमतों पर गंभीर प्रभाव पड़ने की उम्मीद है. जम्मू-कश्मीर में सालाना लगभग 15 लाख भेड़ों का मांस खपत होता है, जिसमें से लगभग 41 प्रतिशत केंद्र शासित प्रदेश के बाहर से आता है, जिसकी कीमत प्रति वर्ष 1,400 करोड़ रुपये से अधिक है.
सीमित स्थानीय पशुपालन क्षमता के कारण, कश्मीर की राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली से आयात पर भारी निर्भरता एक फलती-फूलती आपूर्ति श्रृंखला में बदल गई है.
शादी-ब्याह और त्योहारों के व्यस्त मौसम में, सीकर, फिरोजपुर, अंबाला और दिल्ली जैसे बाजारों से रोजाना सैकड़ों ट्रक पशुओं को ढोते है, यह नेटवर्क अब खतरे में है.
व्यापारियों का अनुमान है कि मांग पूरी करने के लिए हर साल लगभग 20 लाख पशु लाए जाते हैं. इस क्षेत्र में मटन की अत्यधिक मांग को देखते हुए, जो वाज़वान जैसे पारंपरिक व्यंजनों का अभिन्न अंग है—यह व्यवधान आपूर्ति, मूल्य निर्धारण और व्यापक खाद्य पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर सकता है.
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