भारत के अच्छे दोस्तों में शुमार मालदीव में जब साल 2023 में सत्ता परिवर्तन हुआ तो नई सत्ता भारत के खिलाफ हो गई. चीन के समर्थक मोहम्मद मुइज्जू वहां के नए राष्ट्रपति बने और इसके साथ ही उनके भारत के खिलाफ अनाप-शनाप बयान शुरू हो गए. वो इंडिया आउट, चाइना इन की बात करने लगे, वो भारत से दूरी बनाने लगे, भारत के लोगों से दूरी बनाने लगे और नतीजा ये हुआ कि भारत ने भी मुइज्जु से दूरी बना ली.
इस बात को अभी दो साल भी नहीं बीते हैं कि मुइज्जु को समझ आ गया है कि अगर मालदीव में उन्हें सरकार चलानी है तो बिना भारत के ये मुमकिन नहीं है. तभी तो पीएम मोदी को पानी पी-पीकर कोसने वाले मुइज्जु को भारत की इतनी जरूरत महसूस होने लगी कि जब पीएम मोदी मालदीव के दौरे पर पहुंचे तो खुद राष्ट्रपति मुइज्जु उन्हें लेने के लिए एयरपोर्ट पहुंच गए. तो आखिर दो साल में मुइज्जु का ऐसा हृदय परिवर्तन क्यों हो गया.
आखिर वो कौन सी मजबूरी मुइज्जु के सामने आन पड़ी कि उन्हें भारत के साथ दोस्ती करने को मजबूर होना पड़ा और क्या इस दोस्ती के लिए मजबूर करने वाला वो चीन है, जिसने दोस्ती के नाम पर मालदीव को धोखा दे दिया है. आखिर क्या है मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जु के यूं नतमस्तक होने की पूरी कहानी, बताएंगे विस्तार से.
मालदीव में जब मोहम्मद मुइज्जु को चुनाव लड़ना था तो उन्होंने चुनाव के दौरान ही भारत विरोधी टोन सेट कर दी थी और साफ कह दिया था कि भारत के जो सैनिक मालदीव में मौजूद हैं, उनके राष्ट्रपति बनते ही उन्हें बाहर निकाल दिया जाएगा. इस विरोधी सुर के साथ ही मुइज्जु मालदीव के नए राष्ट्रपति चुने गए और सत्ता संभालते ही उन्होंने मालदीव की सरकार को भारत के खिलाफ खड़ा कर दिया. मालदीव के कुछ नेताओं ने इसे सोशल मीडिया पर भी पोस्ट कर दिया और उससे मालदीव की नई सरकार का भारत विरोधी रुख और साफ हो गया.
तब भारत की ओर से कुछ नहीं कहा गया. हां एक दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने आधिकारिक दौरे पर लक्षद्वीप चले गए और वहां एक बीच के किनारे कुर्सी पर बैठकर फोटो खिंचाई और उसे अपने सोशल मीडिया हैंडल पर पोस्ट कर दिया. फिर तो जो मालदीव भारतीय टूरिस्टों से गुलजार रहता था, जिस मालदीव की अर्थव्यवस्था में भारत से गए टूरिस्ट सबसे बड़ा योगदान देते थे, उन्होंने अपनी बुकिंग कैंसल करनी शुरू कर दी और सोशल मीडिया पर एक बहस छेड़ दी कि मालदीव के बीच से बेहतर तो भारत का लक्षद्वीप है. यानी कि भारत की ओर से लड़ाई कोई डिप्लोमेटिक नहीं थी, बल्कि भारत के आम लोग.
तब भी मुइज्जु पुष्पा बने हुए थे. कह रहे थे कि झुकेंगे नहीं और इसकी वजह ये थी कि चीन ने तब मुइज्जु को भरोसा दिलाया था कि रहो भारत के खिलाफ, हम तुम्हारे साथ हैं. साथ लेने के लिए ही मुइज्जु चीन की यात्रा पर भी गए. वहां से लौटे तो कहा कि ये मालदीव की संप्रभुता का मामला है और भारत के जो सिपाही मालदीव में तैनात हैं, उन्हें वापस जाना होगा. जोर से नारा लगाया इंडिया आउट. तब मुइज्जु को शायद ये नहीं पता था कि उनका देश अंदर ही अंदर कितना खोखला हो रहा है, लेकिन जल्दी ही उन्हें इस बात का पता चल गया.
उन्हें पता चला कि चीन ने जिस मदद की बात की है, वो नहीं कर रहा है. सऊदी अरब और दूसरे गल्फ देशों से भी जिस मदद की उम्मीद थी वो मुइज्जु को नहीं मिली. नतीजा ये हुआ कि पहले से ही कर्ज के तले दबे मालदीव के पास न तो लोन चुकाने का पैसा था और न ही उस लोन का ब्याज. नया लोन देने के लिए कोई तैयार नहीं था.
ऐसे में मुइज्जु के पास भारत का साथ लेने के अलावा दूसरा कोई चारा ही नहीं था. उन्होंने अपने विदेश मंत्री मूसा जमीर को भारत भेजा. 8, 9 और 10 मई को मूसा जमीर भारत के विदेश मंत्री [डॉ. एस जयशंकर से मिले. मूसा ने मदद मांगी और भारत ने भी मालदीव की सरकार की पुरानी गलतियों को माफ किया और फिर मालदीव की मदद की. इस मदद में मई 2024 में मालदीव को दी गई 50 मिलियन डॉलर की सहायता शामिल है. ये सहायता ट्रेजरी बिल के जरिए दी गई थी, जिसको एक साल के लिए रोल-ओवर कर दिया गया था.
फिर जब नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने तो मुइज्जु खुद उनके शपथ ग्रहण में शामिल हुए. और यहां से रिश्तों के बनने की जो शुरुआत हुई तो वो अब तक कायम है. भारत ने मालदीव की मदद के लिए दो करेंसी स्वैप एग्रीमेंट किया है, जिसकी कुल कीमत करीब 757 मिलियन डॉलर है. मालदीव में विकास के लिए भारत सरकार की मदद से करीब 800 मिलियन डॉलर की परियोजनाएं चल रही हैं. इनमें एक अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से लेकर राजधानी माले में बन रहा एक बड़ा हाउसिंग प्रोजेक्ट तक शामिल है. अभी हाल ही में भारत और मालदीव के बीच कुल 13 नए एग्रीमेंट हुए हैं. इसके अलावा सामरिक समझौतों पर भी अलग से बात चल रही है.
कुल मिलाकर कुछ दिनों तक चीन की कठपुतली बने मुइज्जु को ये समझ में आ गया कि मालदीव और मालदीव के लोगों की भलाई इसी में है कि वो भारत से अपनी पुरानी दोस्ती कायम रखें. दुश्मनी का अंजाम मुइज्जु देख ही चुके थे. तो उन्होंने अपना कोर्स करेक्शन किया, मालदीव के हित को अपने चुनावी वादे के ऊपर रखा और भारत से वही पुराने संबंध बहाल करने में जुट गए, जो हमेशा से रहे थे. भारत ने भी इसका स्वागत किया है और यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी खुद मालदीव पहुंच गए हैं और उन्हें लेने के लिए खुद मुइज्जु सारे प्रोटोकॉल तोड़ते हुए एयरपोर्ट पहुंच गए और पीएम मोदी से खुले दिल से मिले…आखिर नया दोस्त जो आया था…
Read More at www.abplive.com