तीन महीने तक भारतीय शेयर बाजार में लिवाली के बाद जुलाई 2025 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने फिर से बिकवाली का रुख अपना लिया है. डिपॉजिटरी के आंकड़ों के मुताबिक, 1 से 18 जुलाई के बीच एफपीआई ने ₹5,524 करोड़ की शुद्ध बिकवाली की है. इस बदलाव की सबसे बड़ी वजह अमेरिका और भारत के बीच जारी व्यापारिक तनाव और घरेलू कंपनियों के मिले-जुले तिमाही नतीजे माने जा रहे हैं, जिससे निवेशकों की धारणा कमजोर हुई है.
2025 में अब तक कितना पैसा निकाला?
अगर पूरे साल की बात करें तो 2025 की शुरुआत से लेकर अब तक एफपीआई ने भारतीय शेयर बाजार से कुल ₹83,245 करोड़ की निकासी की है. जनवरी में सबसे अधिक बिकवाली हुई, जब एफपीआई ने ₹78,027 करोड़ बाजार से निकाले. इसके बाद फरवरी में ₹34,574 करोड़ और मार्च में ₹3,973 करोड़ की निकासी हुई. अप्रैल में हालात कुछ सुधरे और एफपीआई ने ₹4,223 करोड़ का निवेश किया. इसके बाद मई में ₹19,860 करोड़ और जून में ₹14,590 करोड़ का सकारात्मक प्रवाह दर्ज हुआ. लेकिन जुलाई के पहले पखवाड़े में ही बाजार से फिर भरोसा उठता दिखा.
कारण क्या हैं इस बिकवाली के पीछे?
मॉर्निंगस्टार इंडिया के एसोसिएट डायरेक्टर हिमांशु श्रीवास्तव का मानना है कि इस बिकवाली के पीछे दो बड़े कारण हैं – पहला, अमेरिका-भारत के बीच व्यापार वार्ता में जारी अनिश्चितता और दूसरा, कंपनियों के तिमाही नतीजों में स्पष्टता की कमी. यदि व्यापार विवाद सुलझते हैं और अर्निंग्स में सुधार दिखता है, तो एफपीआई फिर से बाजार में लौट सकते हैं.
ग्लोबल संकेतों का भी असर
एंजेल वन के विश्लेषक वकारजावेद खान ने कहा कि ग्लोबल संकेत जैसे कि डॉलर की मजबूती, फेडरल रिजर्व की नीति, और ब्रिक्स देशों पर अमेरिकी प्रतिक्रिया भी एफपीआई की सतर्कता के पीछे बड़ी वजह हैं. निवेशक फिलहाल रक्षात्मक रणनीति अपना रहे हैं और बाजार की दिशा को लेकर स्पष्टता का इंतजार कर रहे हैं.
बॉन्ड सेगमेंट में बनी हल्की रुचि
जहां इक्विटी में बिकवाली रही, वहीं एफपीआई ने बॉन्ड मार्केट में कुछ निवेश बनाए रखा. जुलाई के पहले 18 दिनों में उन्होंने ₹1,850 करोड़ सामान्य सीमा के तहत और ₹1,050 करोड़ स्वैच्छिक प्रतिधारण मार्ग (VRR) से निवेश किया है. इससे यह संकेत मिलता है कि एफपीआई पूरी तरह बाजार से बाहर नहीं हुए हैं, बल्कि वे फिलहाल संतुलन साध रहे हैं.
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