निफ्टी में आई नरमी से ‘नतीजों की गर्मी’ तक… एक क्लिक में पढ़िए इस हफ्ते बाजार में मची हलचल की पूरी डीटेल शुक्रवार को निफ्टी 143 अंकों की गिरावट के साथ 24,968.40 पर बंद हुआ, जबकि सेंसेक्स 501 अंक गिरकर 81,757.73 पर पहुंचा. लगातार तीसरे सप्ताह की इस गिरावट के पीछे कमजोर तिमाही नतीजे, वैश्विक मांग में अनिश्चितता और सेक्टर-विशेष दबाव प्रमुख कारण रहे.

घरेलू शेयर बाजार में गिरावट का सिलसिला जारी है. शुक्रवार को खत्म हुए कारोबारी सप्ताह में निफ्टी 25,000 के नीचे फिसल गया और बाजार ने लगातार तीसरे हफ्ते कमजोरी दर्ज की. विशेषज्ञों का मानना है कि चालू वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही के नतीजों की धीमी शुरुआत, विशेषकर आईटी और फाइनेंशियल सेक्टर में, इस गिरावट की अहम वजह रही.

कमजोर तिमाही नतीजों का असर

आईटी सेक्टर वैश्विक मांग में अनिश्चितता और सतर्क कॉर्पोरेट दृष्टिकोण के चलते दबाव में रहा. दूसरी ओर, बैंकिंग और वित्तीय सेवा कंपनियों से जुड़े नेट इंटरेस्ट मार्जिन (NIM) में संकुचन और एसेट क्वालिटी की चिंताओं ने इस क्षेत्र को कमजोर किया. जियोजित इन्वेस्टमेंट्स के रिसर्च हेड विनोद नायर के अनुसार, “एफएमसीजी शेयरों ने अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया है, जिसका कारण शहरी उपभोग में संभावित सुधार और मैक्रोइकोनॉमिक स्थिरता है.” उन्होंने बताया कि निवेशकों का झुकाव उपभोग आधारित शेयरों की ओर बढ़ सकता है.

सप्ताह के अंतिम कारोबारी दिन शुक्रवार को सेंसेक्स 501.51 अंक या 0.61% गिरकर 81,757.73 पर बंद हुआ, जबकि निफ्टी 143.05 अंक या 0.57% गिरकर 24,968.40 पर पहुंचा. मिडकैप और स्मॉलकैप सूचकांकों में भी कमजोरी देखी गई, जो क्रमशः 0.7% और 0.8% नीचे रहे.

सेक्टोरल प्रदर्शन पर टिकी है निगाहें

मीडिया और मेटल को छोड़कर बाकी सभी क्षेत्रीय इंडेक्स लाल निशान में बंद हुए. फार्मा, प्राइवेट बैंक, पीएसयू बैंक, एफएमसीजी, कैपिटल गुड्स, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और टेलीकॉम जैसे सेक्टरों में 0.5% से 1% की गिरावट आई.

बजाज ब्रोकिंग की रिपोर्ट के अनुसार, आगामी सप्ताह अमेरिका और भारत दोनों देशों से कई हाई-फ्रिक्वेंसी आर्थिक आंकड़े सामने आएंगे, जिनमें मैन्युफैक्चरिंग गतिविधि, हाउसिंग डेटा और श्रम बाजार की स्थिति शामिल होगी. भारत के लिए एसएंडपी ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई (जुलाई) एक अहम आंकड़ा रहेगा. विशेषज्ञों का मानना है कि प्रस्तावित अमेरिका-भारत मिनी ट्रेड एग्रीमेंट पर कोई सकारात्मक समाधान उभरते बाजारों में भारत की स्थिति को मजबूत कर सकता है, खासकर निर्यात से जुड़ी कंपनियों के लिए यह राहत ला सकता है.

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