पाकिस्तान लंबे समय से यह दावा कर रहा था कि उसे जल्द ही चीन से पांचवीं पीढ़ी के J-35 स्टील्थ लड़ाकू विमान मिलेंगे, लेकिन अब खुद पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने इस दावे से पीछे हटते हुए साफ कर दिया है कि फिलहाल J-35 की खरीद नहीं की जा रही है. इसके पीछे दो बड़ी वजहें भी सामने आई हैं, जिसके बाद से पाकिस्तान के दावे फेल होते नजर आ रहे हैं.
इस पलटाव को लेकर रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे दो प्रमुख वजहें हो सकती हैं. पहला कि अमेरिका का बढ़ता दबाव और दूसरा कि चीन की ओर से समय पर J-35 की डिलीवरी में असमर्थता. रक्षा उद्योग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, चीन की J-35 परियोजना अभी पूरी तरह तैयार नहीं है और निकट भविष्य में इसकी बड़ी मात्रा में आपूर्ति संभव नहीं लगती. पाकिस्तान बड़े बड़े दावे तो करता है, लेकिन उसकी जमीनी हकीकत बहुत कमजोर है. अब वही प्रचार उल्टा पड़ता दिख रहा है, खासकर ऐसे समय में जब भारत ने पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान की खरीद को लेकर बड़ा संकेत दिया है.
रूस के उन्नत Su-57 लड़ाकू विमान को खरीद सकता है भारत
भारत के रक्षा सचिव ने हाल ही में बताया था कि भारत अपने किसी मित्र देश से पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट खरीदने के विकल्प पर गंभीरता से विचार कर रहा है. यह बयान ऐसे समय में आया है जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का भारत दौरा प्रस्तावित है. कयास लगाए जा रहे हैं कि भारत, रूस के उन्नत Su-57 लड़ाकू विमान पर निर्णय ले सकता है. हालांकि इस संबंध में आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान की बढ़ी टेंशन
भारत की इस रणनीतिक तैयारी से पाकिस्तान में चिंता बढ़ गई है. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान भारतीय वायुसेना की प्रभावशाली क्षमताएं देखने के बाद पाकिस्तान के सैन्य विश्लेषकों के बीच यह डर गहराता जा रहा है कि भविष्य में युद्ध की स्थिति में भारत की वायु शक्ति निर्णायक हो सकती है.
अब J-20 का नया कार्ड खेलेगा पाकिस्तान
पाकिस्तान की ओर से अब एक नया संकेत सामने आया है. पाकिस्तान वायु सेना (PAF) के पूर्व फाइटर पायलट और रक्षा विश्लेषक खालिद चिश्ती ने दावा किया है कि अगर J-35 की आपूर्ति में देरी होती है तो पाकिस्तान चीन से उसके और अधिक उन्नत (J-20 माइटी ड्रैगन) स्टील्थ फाइटर जेट की मांग कर सकता है.
J-20 चीन का प्रमुख पांचवीं पीढ़ी का फाइटर जेट है, जो रडार से बचने की क्षमता और लंबी दूरी की मारक क्षमता के लिए जाना जाता है. हालांकि, यह अब तक केवल चीन की सेना के लिए आरक्षित रहा है और किसी अन्य देश को निर्यात नहीं किया गया है.
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