जेन स्ट्रीट के काले कारनामों से हट चुका है पर्दा, क्या मार्केट में अब प्रॉब्लम पूरी तरह से खत्म हो गई है? – sebi has exposed market manipulation actitivities of jane street is now the problem in market over

जेन स्ट्रीट ने मार्केट मैनिपुलेशन से इंडियन मार्केट को हिला कर रख दिया है। सेबी अमेरिकी ट्रेडिंग फर्म की ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी की व्यापक जांच कर रहा है। इस बीच जेन स्ट्रीट और उससे जुड़ी कंपनियों को इंडिया में किसी तरह की ट्रेडिंग करने पर रोक लगा दी गई है। कुछ रिपोर्ट्स में बताया गया है कि अमेरिकी ट्रेडिंग फर्म 2023 से ही इंडियन मार्केट में मैनिपुलेशन कर रही थी। इससे उसने करीपब 40,000 करोड़ रुपये की कमाई की। अभी सेबी ने इसमें से सिर्फ 5000 करोड़ रुपये जब्त करने के आदेश दिए हैं।

मार्केट मैनिपुलेशन के लिए खास ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी का इस्तेमाल

जेन स्ट्रीट के इंडियन मार्केट्स में कई तरह की स्ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी का इस्तेमाल करने का संदेह है। इनमें से एक स्ट्रेटेजी का इस्तेमाल उसने बैंक निफ्टी इंडेक्स में किया। इंडेक्स के ऑप्शंस में एक्सपायरी के दिन प्रॉफिट कमाने के लिए इस स्ट्रेटेजी का इस्तेमाल किया गया। यह कंपनी इंडेक्स में कॉल ऑप्शन इंडेक्स के कॉन्ट्रैक्ट करती थी। फिर एक्सपायरी के दिन कैश मार्केट में बैंकिंग स्टॉक्स में बड़ा निवेश करती थी। इससे बैंक निफ्टी काफी चढ़ जाता था। इससे जेन स्ट्रीट को उसके कॉल ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट पर मोटा मुनाफा होता था। इसी तरह अगर वह पुट ऑप्शंस के कॉन्ट्रैक्ट करती थी तो फिर मोटा प्रॉफिट कमाने के लिए बैंकिंग स्टॉक्स बेच देती थी।

एक्सपायरी के दिन असल खेल

सवाल है कि वह एक्सपायरी के दिन ऐसा क्यों करती थी? इसका जवाब यह है कि एट-द-मनी-ऑप्शंस का गामा एक्सपायरी के दिन काफी ज्यादा होता है। अंडरलाइंग में छोटे बदलाव से भी डेल्टा में बड़ा बदलाव आता है इसके चलते ऑप्शंस प्राइसेज में मूवमेंट काफी बढ़ जाता है। दूसरा सवाल, यह कि उसने बैंक निफ्टी में ऐसा क्यों किया? इसका जवाब यह है कि बैंक निफ्टी इंडेक्स में HDFC Bank और ICICI Bank जैसे बड़े बैंक शामिल हैं। इससे बैंक निफ्टी को मैनिपुलेट करना मुश्किल होता है। जेन स्ट्रीट को सिर्फ इन दोनों बैंकों के स्टॉक्स काफी ज्यादा खरीदने या बेचने होते थे। फिर, उसे बैंक निफ्टी इंडेक्स में अपने कॉल/पुट ऑप्शंस पर भारी प्रॉफिट होता था।

सीधे ऑप्शंस मार्केट में मैनिपुलेशन नहीं

सवाल है कि जेन स्ट्रीट ने सीधे तौर पर ऑप्शंस मार्केट में ऐसा क्यों नहीं किया? इसकी वजह मार्केट में ज्यादा लिक्विडिटी थी। कोविड के बाद डेरिवेटिव्स में रिटेल पार्टिसिपेशन बढ़ा है। ग्लोबल ट्रेडिंग वॉल्यूम में इंडियन मार्केट्स की हिस्सेदारी 80 फीसदी तक है। ऐसे में सीधे आप्शंस को मैनिपुलेट करना जेन स्ट्रीट जैसी कंपनियों के लिए भी मुमकिन नहीं है। खबरों के मुताबिक, 2023 में एनएसई के डेरिवेटिव और कैश मार्केट के वॉल्यूम का अनुपात 400 गुना से ज्यादा था। यह दुनिया में सबसे ज्यादा है।

सेबी लगातार रिटेल इनवेस्टर्स को सतर्क कर रहा था

सेबी ऑप्शंस में बढ़ती दिलचस्पी को लेकर काफी समय से रिटेल ट्रेडर्स को आगाह कर रहा था। बाद में सेबी ने अक्टूबर 2024 में नियमों को सख्त बनाकर इस पर अंकुश लगाने की कोशिश की। एक्सचेंजों ने एक्सपायरी डे पर बढ़ते वॉल्यूम का फायदा उठाने के लिए हफ्ते के हर दिन एक एक्सपायरी रखी थी। सेबी का मानना था कि इसका प्राइस डिस्कवरी और मार्केट एफिशिएंसी में कोई रोल नहीं था। इस वजह से उसने एक एक्सचेंज को सिर्फ सिंगल डे एक्सपायरी की इजाजत दी। सेबी ने इंडेक्स डेरिवेटिव में कॉन्ट्रैक्ट साइज भी बढ़ा दिया। ऑप्शन सेलिंग के लिए मार्जिन भी बढ़ाया गया।

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सेबी के कदम मार्केट पार्टिसिपेंट्स के हित में

सेबी ने जेन स्ट्रीट के खिलाफ जो कार्रवाई की है, उसका असर मार्केट पर पड़ा है। लेकिन, F&O वॉल्यूम को रेगुलेट करने की सेबी की यह कोशिश मार्केट पार्टिसिपेंट्स के हित में है। जेन स्ट्रीट के स्कैम से एक बड़ा सिस्टमैटिक रिस्क सामने आया है। एफएंडओ वॉल्यूम सामान्य स्तर पर आने का असर कैश मार्केट्स पर भी पड़ सकता है। लेकिन, इससे कम से कम मार्केट की सही तस्वीर सामने आएगी।

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