अब बच्चों की बार्बी भी पहन रही है इंसुलिन पंप: टाइप-1 डायबिटीज को समझने की नई पहल

बच्चों की पसंदीदा गुड़िया बार्बी अब सिर्फ स्टाइल और फैशन की पहचान नहीं बल्कि हेल्थ अवेयरनेस की एक मिसाल भी बन गई है. टॉय निर्माता कंपनी मेटल ने पहली बार एक ऐसी बार्बी डॉल लॉन्च की है जो टाइप वन डायबिटीज से जूझ रहे लोगों काे रिप्रेजेंट करती है. यह गुड़िया न केवल एक इंसुलिन पंप पहने हुए है बल्कि उसके बाजू पर एक कंटीन्यूअस ग्लूकोस मॉनिटर भी लगा हुआ है. जिससे उसकी सेहत की निगरानी की जा सकती है.

टॉय निर्माता कंपनी मेटल का कहना है कि इस खास मॉडल को डिजाइन करते समय यह ध्यान रखा गया है कि यह उस समुदाय की हकीकत को बखूबी दर्शा सके जो टाइप वन डायबिटीज से प्रभावित है.  इस टाइप वन डायबिटीज वाली बार्बी के साथ एक स्मार्टफोन और ब्लू पर्स भी आता है जिसमें जरूरी दवाएं और स्नैक्स रखे जा सकते हैं.

भारत में टाइप वन डायबिटीज एक गंभीर चुनौती

हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत में टाइप वन डायबिटीज के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है खासकर बच्चों और युवाओं में. वहीं ज्यादातर मरीजों को सही इलाज और उपकरणों की जानकारी नहीं होती है जिसकी वजह से ब्लड शुगर को कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है. वहीं कुछ एक्सपर्ट्स मानते हैं कि भारत में कई टाइप वन डायबिटीज मरीज आज भी पुरानी इंसुलिन टेक्नोलॉजी पर निर्भर है और उनके पास आधुनिक डिवाइसेज जैसे सीजीएम या इंसुलिन पंप की सुविधा नहीं है.

यह बीमारी क्या है और क्यों होती है

टाइप 1 डायबिटीज एक ऑटोइम्यून डिजीज है. जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम गलती से अग्नाशय की इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं पर हमला कर देता है. इस वजह से शरीर में इंसुलिन की भारी कमी हो जाती है और ग्लूकोज का लेवल भी असंतुलित होने हो जाता है. यह स्थिति अक्सर बच्चों और युवाओं में देखी जाती है और उन्हें जीवन भर इंसुलिन थेरेपी की जरूरत पड़ती है.

बचपन से ही जरूरी है जागरूकता

बच्चों में ब्लड शुगर का संतुलन उनके मूड, नींद और पढ़ाई पर भी असर डाल सकता है. ऐसे में सही समय पर डायग्नोसिस और नियमित मॉनिटरिंग बेहद जरूरी होती है. संतुलित खानपान, नियमित, व्यायाम, इंसुलिन थेरेपी और तनाव को नियंत्रित करने की तकनीक जैसे योग और मेडिटेशन स्थिति से बेहतर ढंग से निपटने में मदद कर सकती है.

अभी भी चुनौतियां बाकी है

भारत का हेल्थ सिस्टम अब भी टाइप वन डायबिटीज के लिए पूरी तरह तैयार नहीं माना जाता है. ग्रामीण इलाकों में विशेष केंद्रों की, कमी एक्सपर्ट्स,  डायबिटीज एजुकेटर की अनुपस्थिति और तकनीकी की पहुंच न होना बड़ी समस्या है.  ऐसे में जरूरत है एक मजबूत नीति की जो इंसुलिन और इलाज को सस्ता और सुलभ बना सके. साथ ही समझ में संवेदनशीलता और समझदारी भी बढ़ा सके.

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