अगर आप शेयर बाजार में दिलचस्पी रखते हैं, तो आपने ग्रे मार्केट के बारे में जरूर सुना होगा. IPO (Initial Public Offering) का नाम आते ही ‘ग्रे मार्केट’ या ‘GMP’ जैसे शब्द कानों में गूंजने लगते हैं. अगर आप शेयर मार्केट के खिलाड़ी हैं तो इसके बारे में काफी हद तक जानकारी रखते होंगे, लेकिन अगर आप इस फील्ड में नए-नए प्लेयर बने हैं तो आपको Grey Market के बारे में अच्छे से जान लेना चाहिए. साथ ही ये भी समझ लेना चाहिए कि इस पर कितना भरोसा किया जाए. यहां जानिए इसके बारे में.
आखिर क्या है ये ग्रे मार्केट?
आसान भाषा में समझें तो ग्रे मार्केट एक अनौपचारिक (Informal) बाजार है, जहां किसी कंपनी के शेयर आधिकारिक स्टॉक एक्सचेंज (BSE/NSE) पर लिस्ट होने से पहले ही खरीदे और बेचे जाते हैं. इसे ‘ग्रे’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये न तो पूरी तरह से काला (अवैध) है और न ही सफेद (आधिकारिक/रेगुलेटेड) है. इस पर SEBI (Securities and Exchange Board of India) या किसी भी स्टॉक एक्सचेंज का कोई नियंत्रण नहीं होता. ये पूरा खेल डिमांड-सप्लाई और आपसी भरोसे पर चलता है.
शेयर बाजार में कैसे काम करता है ग्रे मार्केट?
ये बाजार पूरी तरह से भरोसे पर आधारित है. यहां कोई डिजिटल रिकॉर्ड या आधिकारिक कॉन्ट्रैक्ट नहीं होता. ज्यादातर सौदे कुछ डीलरों के बीच नकद में या सिर्फ ज़ुबानी वादे पर होते हैं. मान लीजिए, आप किसी IPO में अप्लाई करते हैं और आपको लगता है कि लिस्टिंग पर अच्छा मुनाफा होगा. आप लिस्टिंग का इंतजार करने के बजाय अपने शेयर पहले ही ग्रे मार्केट में किसी डीलर को प्रीमियम पर बेच सकते हैं. ये सब कुछ सिर्फ मौखिक बातचीत और आपसी भरोसे पर चलता है. इसमें कोई डिजिटल रिकॉर्ड नहीं रखा जाता.
क्या है GMP?
GMP का मतलब है ग्रे मार्केट प्रीमियम (Grey Market Premium). ये वो प्रीमियम राशि है जो खरीदार IPO के इश्यू प्राइस के ऊपर देने को तैयार है. उदाहरण से समझिए- मान लीजिए, किसी कंपनी के IPO का इश्यू प्राइस ₹500 प्रति शेयर है. ग्रे मार्केट में इसका GMP ₹120 चल रहा है. इसका मतलब है कि ग्रे मार्केट में लोग उम्मीद कर रहे हैं कि यह शेयर स्टॉक एक्सचेंज पर लगभग ₹620 (₹500 + ₹120) पर लिस्ट होगा. GMP सीधे तौर पर IPO की डिमांड को दिखाता है. जितना ज्यादा GMP, उतनी ही ज्यादा डिमांड मानी जाती है.
कितना भरोसेमंद है ग्रे मार्केट और GMP?
ये सबसे बड़ा सवाल है. GMP को लेकर पॉजिटिव और नेगेटिव, दोनों पहलू हैं. सकारात्मक पहलू ये है कि GMP से ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि निवेशक IPO को लेकर कितने उत्साहित हैं. ये लिस्टिंग प्राइस का एक मोटा-मोटा अनुमान देता है. ये ध्यान रहे कि GMP हवा का रुख तो बताता है, लेकिन ये हमेशा सच हो, ऐसा जरूरी नहीं होता.
इसका दूसरा पहलू है कि ग्रे मार्केट पर SEBI का कोई कंट्रोल नहीं है, इसलिए यहां हेरफेर (Manipulation) की गुंजाइश बहुत ज्यादा होती है. कुछ बड़े ऑपरेटर मिलकर जानबूझकर GMP बढ़ा या घटा सकते हैं. इसके अलावा GMP सिर्फ एक अनुमान है, गारंटी नहीं. कई बार बहुत अच्छे GMP वाले IPO भी डिस्काउंट पर लिस्ट हुए हैं और निवेशकों को नुकसान हुआ है. क्योंकि ये भरोसे पर चलता है, इसलिए कोई भी पार्टी सौदे से मुकर सकती है और आप कुछ नहीं कर पाएंगे.
निवेशक क्या करें?
ग्रे मार्केट और GMP को एक एडिशनल इंडिकेटर के तौर पर देखना चाहिए, न कि निवेश का एकमात्र आधार. किसी भी IPO में निवेश करने से पहले कंपनी के फंडामेंटल्स, उसका बिजनेस मॉडल, भविष्य की योजनाएं और वैल्यूएशन को देखें. सिर्फ GMP के लालच में आकर किसी भी कंपनी में पैसा लगाना एक बड़ा रिस्क है.
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