माधबी पुरी बुच का ‘काला सच’! वॉर्निंग्स को किया नजरअंदाज, ₹4800 Cr के जेन स्ट्रीट घोटाले ने खोली ‘रिफॉर्मिस्ट’ मुखौटे की पोल

SEBI के इतिहास में जब भी सबसे बड़े रेगुलेटरी फेलियर की बात होगी, तो एक नाम सबसे ऊपर आएगा – माधबी पुरी बुच. मार्च 2022 में जब उन्होंने SEBI की पहली महिला चेयरपर्सन का पद संभाला, तो उन्हें एक ‘टेक-सेवी रिफॉर्मर’ के रूप में पेश किया गया. उन्होंने वादे किए कि वे AI और हाई-टेक सर्विलांस से बाजार की हर गड़बड़ी पर नकेल कस देंगी और रिटेल निवेशकों की रक्षा करेंगी. लेकिन उनके कार्यकाल की हकीकत इन वादों से कोसों दूर थी.

नाक के नीचे फलता-फूलता रहा घोटाला

उनके राज में, उनकी नाक के नीचे, एक ऐसा घोटाला फलता-फूलता रहा जिसने भारतीय डेरिवेटिव्स बाजार की नींव हिला दी. यह कहानी है जेन स्ट्रीट स्कैंडल की, जहाँ एक विदेशी फर्म ने खुलेआम भारतीय निवेशकों से ₹4,800 करोड़ से ज्यादा लूट लिए, और SEBI का करोड़ों का सर्विलांस सिस्टम मूक दर्शक बना रहा. यह कहानी माधबी पुरी बुच के कार्यकाल की सबसे बड़ी और शर्मनाक विफलता की है.

बुच की सबसे बड़ी नाकामी: जब वॉर्निंग्स को किया नजरअंदाज

यह घोटाला रातों-रात नहीं हुआ. इसके संकेत एक साल से भी ज्यादा समय से मिल रहे थे, लेकिन माधबी पुरी बुच के नेतृत्व में SEBI ने इन ‘रेड फ्लैग्स’ पर आंखें मूंद रखी थीं.


  • पहला रेड फ्लैग (अप्रैल 2024)

अमेरिका की मैनहट्टन कोर्ट में यह बात सामने आई कि जेन स्ट्रीट भारत के बाजारों से अपनी शिकारी रणनीतियों के जरिए सालाना 1 बिलियन डॉलर कमा रही है. यह एक ऐसी जानकारी थी जिसे किसी भी सक्रिय रेगुलेटर को तुरंत पकड़ना चाहिए था.


  • दूसरा रेड फ्लैग (फरवरी 2025)

खुद नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने फरवरी 2025 में इस तरह की संदिग्ध गतिविधियों पर चिंता जताते हुए SEBI को आगाह किया था.

इन दो बड़ी और स्पष्ट चेतावनियों के बावजूद, कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई. यह सवाल उठता है कि जिस चेयरपर्सन ने AI और हाई-टेक मॉनिटरिंग का ढिंढोरा पीटा था, उनकी टीम इन खुली चेतावनियों को कैसे नजरअंदाज कर सकती थी?

AI का दिखावा और सर्विलांस का खोखलापन

माधबी पुरी बुच के कार्यकाल की सबसे बड़ी मार्केटिंग उनके ‘हाई-टेक’ सर्विलांस सिस्टम को लेकर थी. लेकिन जेन स्ट्रीट स्कैंडल ने इस दावे को खोखला साबित कर दिया. उनका करोड़ों का AI-ड्रिवन सिस्टम एक ऐसी सीधी-सादी ‘पंप एंड डंप’ रणनीति को पकड़ने में भी पूरी तरह नाकाम रहा, जिसे बाजार के सामान्य जानकार भी महसूस कर रहे थे. यह घटना दिखाती है कि उनके सुधार सिर्फ दिखावटी थे, जिनका मकसद शायद सुर्खियां बटोरना था, न कि बाजार को सुरक्षित बनाना.

सिर्फ जेन स्ट्रीट ही नहीं: बुच का विवादों से भरा कार्यकाल

जेन स्ट्रीट स्कैंडल उनके कार्यकाल की एकमात्र विफलता नहीं थी. उनके कई फैसलों ने छोटे निवेशकों और ब्रोकर्स के लिए मुश्किलें खड़ी कीं, जबकि बड़े खिलाड़ियों को खुली छूट मिली.

1. ‘लाइसेंस राज’ की वापसी

उनके कार्यकाल में इतने कड़े और जटिल नियम बनाए गए कि छोटे ब्रोकर्स के लिए काम करना मुश्किल हो गया. बाजार के कई जानकारों ने उनकी नीतियों को ‘लाइसेंस राज’ की वापसी करार दिया, जिससे छोटे खिलाड़ियों के लिए अराजकता जैसे हालात पैदा हो गए.

2. रिएक्टिव अप्रोच

उन पर यह भी आरोप लगे कि वे समस्याओं की जड़ में जाने के बजाय सिर्फ प्रतिक्रिया में नियम बनाती थीं, जिससे बाजार की मूल कमजोरियां जस की तस बनी रहीं.

नए चीफ का ‘एक्शन मोड’: तुहिन कांता पांडे ने दिखाया आईना

माधबी पुरी बुच के बाद SEBI के नए चेयरपर्सन बने तुहिन कांता पांडे ने अपने शुरुआती 6 महीनों में ही वह कर दिखाया जो बुच अपने पूरे कार्यकाल में नहीं कर पाईं. उन्होंने जेन स्ट्रीट के खिलाफ तेजी और सख्ती से कार्रवाई की.

  • फर्म पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाया.
  • उसके सभी बैंक खातों और सिक्योरिटीज को फ्रीज किया.
  • ₹4,843 करोड़ के अवैध मुनाफे को जब्त करने (Disgorgement) का आदेश दिया.

पांडे की यह निर्णायक कार्रवाई माधबी पुरी बुच के कार्यकाल की निष्क्रियता को और भी स्पष्ट रूप से उजागर करती है.

एक धूमिल विरासत

जेन स्ट्रीट स्कैंडल ने माधबी पुरी बुच के ‘रिफॉर्मिस्ट’ मुखौटे को उतार दिया. जेन स्ट्रीट स्कैंडल सिर्फ आंकड़ों या एक रेगुलेटरी चूक की कहानी नहीं है. यह उन लाखों छोटे निवेशकों के भरोसे के टूटने की कहानी है, जिन्होंने SEBI को अपना रक्षक माना था. माधबी पुरी बुच के कार्यकाल को एक ऐसे अध्याय के रूप में याद किया जाएगा जहां ‘हाई-टेक सर्विलांस’ की चमकदार पैकेजिंग तो थी, लेकिन उसके अंदर का सिस्टम खोखला था; जहां सुधार की बातें तो खूब हुईं, लेकिन असली कीमत रिटेल निवेशकों ने अपनी गाढ़ी कमाई से चुकाई.

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