Guru Atichari 2025: भारत की आजादी की कुंडली (15 अगस्त 1947, रात 12:00, दिल्ली) के अनुसार भारत की लग्न वृषभ (Taurus Ascendant) तथा चंद्र राशि कर्क (Cancer Moon Sign) है. इस कुंडली में गुरु (बृहस्पति) 2025 से 2032 के बीच लगातार अतिचारी होने वाला है .अर्थात एक-एक राशि में सामान्य से कम समय व्यतीत करेगा और अगली राशि में शीघ्र प्रवेश करता रहेगा.
इस विशेष कालखंड में गुरु की स्थायित्वविहीन चाल मेदिनी ज्योतिष में राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक और वैश्विक संबंधों पर गहरे और उथल-पुथल भरे प्रभाव छोड़ने वाली मानी जाती है.
गुरु अतिचारी क्या होता है?
गुरु जब नियमित राशि में 12–13 महीने न रहकर कुछ ही महीनों में अगली राशि में प्रवेश करता है, तो उसे “अतिचारी” कहा जाता है. यह गति दर्शाती है कि धर्म, नीति, शिक्षा, और न्याय से जुड़ी संस्थाओं में दीर्घकालिक नीति निर्धारण असंभव हो जाता है. व्यक्ति हो या राष्ट्र-विचारों में स्थायित्व नहीं रहता, जिससे अस्थिर राजनीतिक घटनाक्रम जन्म लेते हैं.
महाभारत काल में भी गुरु की गति असामान्य और अतिचारी मानी गई थी. उस काल में धर्म और अधर्म की सीमाएं धुंधली हो गई थीं, धर्म की पुनर्परिभाषा हुई, और अंततः एक भीषण युद्ध के माध्यम से दुष्टों का संहार हुआ. मेदिनी शास्त्र इसे “धर्मसंस्थापनाय” युग कहता है, जहां बृहस्पति की तीव्र गति ने आदर्शों को तोड़ा और नए धर्म की नींव रखी.
भारत की वृषभ लग्न पर इसका सीधा प्रभाव
वृषभ लग्न एक स्थिर राशि है जो सुरक्षा, भौतिकता, कृषि, भूमि, और आर्थिक स्थिरता से जुड़ी है. जब बृहस्पति अतिचारी होकर विभिन्न भावों से गुजरता है, तो नीचे दिये गए क्षेत्रों में गहरे प्रभाव होते हैं:
राजनीतिक अस्थिरता
- 2026-2029 के बीच चतुर्थ, पंचम, सप्तम भाव में अतिचारी गुरु का गोचर भारत की सरकार के आंतरिक निर्णयों, नीति क्रियान्वयन और गठबंधन को अस्थिर कर सकता है.
- 2028 में पंचम से सप्तम भाव में प्रवेश करते ही भारत को कूटनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.
- 2029-2030 के मध्य भारत में गंभीर राजनीतिक गिरावट देखने को मिल सकती है. यह काल अविश्वास प्रस्ताव, सत्ता परिवर्तन, या विशेष गठबंधन टूटने का संकेत देता है.
बृहत संहिता से संकेत
“गुरौ व्यतीते मीनस्थे, राज्ये क्लेशो भवत्यतः. न्याये भ्रंशो, धर्मे च विघ्नो, लोकस्य संतापभृत्॥” – बृहत संहिता, अध्याय 16
- अर्थ- जब गुरु अपने स्थान पर स्थिर नहीं रहता, तब धर्म और न्याय की मर्यादाएं ढीली पड़ जाती हैं, जिससे समाज में अराजकता व असंतुलन पनपता है.
अर्थव्यवस्था और शेयर मार्केट पर असर
बृहस्पति अर्थ से संबंधित द्वितीय और नवम भाव का कारक है. अतिचारी गुरु के कारण-
- शेयर मार्केट में तीव्र उतार-चढ़ाव, अव्यवस्थित निवेश वातावरण बनेगा.
- सरकारी निवेश योजनाएं बार-बार बदलेंगी, जिससे विदेशी निवेशकों का भरोसा कम हो सकता है.
- 2027 और 2030 के बीच, विशेषत: जब गुरु द्वादश भाव (व्यय) से गोचर करेगा, तब राजकोषीय घाटा, बैंकिंग संकट, और बेरोजगारी की समस्या गहराने की संभावना है.
शिक्षा और वैचारिक व्यवस्था पर प्रभाव
गुरु शिक्षा, ज्ञान और अनुसंधान का भी प्रतिनिधित्व करता है. अतिचारी होने से-
- शिक्षा नीति में बार-बार बदलाव होंगे, जिससे छात्रों और शिक्षकों में भ्रम की स्थिति बनेगी.
- 2026-2029 के बीच नई शिक्षा व्यवस्था के लागू होने की संभावना है, किंतु वह लंबे समय तक नहीं टिकेगी.
- उच्च शिक्षा और शोध संस्थानों में आंतरिक टकराव, राजनीतिक हस्तक्षेप, और धार्मिक प्रभाव बढ़ेंगे.
तीसरे विश्व संबंध और युद्ध की संभावनाएं
विश्व युद्ध की आशंका नहीं, परंतु सीमित संघर्ष तीव्र होंगे.
- 2032 में जब शनि रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेगा, और गुरु अतिचारी होते हुए भारत की कुंडली के सप्तम भाव में रहेगा, तब सीमित युद्ध या सैन्य संघर्ष की संभावना बनती है.
- यह युद्ध तीसरे विश्व युद्ध के रूप में नहीं उभरेगा.
- भारत की कुंडली में वृषभ लग्न और चंद्रमा की कर्क स्थिति इसे एक सीमा तक सुरक्षित रखती है, लेकिन सामरिक दबाव बहुत अधिक रहेगा.
नारद संहिता संकेत देती है कि “यदा शनैश्चरः रोहिण्यां, तदा भूमौ रणध्वनि, न विनाशो विश्वस्य, किन्तु संतापसागर:॥”– नारद संहिता
धार्मिक उभार और दंगे
- 2030 से 2032 के बीच, गुरु का गोचर भारत की कुंडली के धर्म, न्याय और जनता से जुड़े भावों पर होगा.
- इस समय धार्मिक ध्रुवीकरण और दंगों के संकेत अत्यंत स्पष्ट हैं.
- हिंदुत्व की विचारधारा इस समय सबसे शक्तिशाली स्तर पर पहुँचेगी और राजनीतिक सत्ता से धर्म का गहरा गठजोड़ स्थापित होगा.
- यह काल पुनः महाभारत काल जैसी परिस्थितियों की स्मृति दिलाता है, जब धर्म और सत्ता का एकीकरण निर्णायक भूमिका में था.
निष्कर्ष
भारत की वृषभ लग्न आधारित कुंडली पर बृहस्पति का अतिचारी गोचर राजनीतिक अस्थिरता, धार्मिक तनाव, शिक्षा में भ्रम और आर्थिक अस्थिरता को जन्म देगा. हालांकि भारत की अंतर्निहित स्थिर लग्न और चंद्र स्थिति उसे हर बार पुनः खड़ा होने की क्षमता देती है.
2032 के आसपास राजनीतिक, धार्मिक और वैश्विक स्तर पर निर्णायक मोड़ आएगा, लेकिन भारत विश्व युद्ध जैसे संकट से बचा रहेगा. उस समय तक हिंदुत्व आधारित राजनीतिक संरचना पूर्ण रूप से स्थापित हो सकती है, जो देश के सामाजिक स्वरूप को लंबे समय तक प्रभावित करेगी.
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