lama-tulku-system-rebirth-tradition-buddhism | दलाई लामा और तुलकु प्रणाली, क्या है पुनर्जन्म से गुरु चुनने की बौद्ध परंपरा?

बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा (Dalai Lama) पहले ही अपनी आत्मकथा और इंटरव्यूज में संकेत दे चुके हैं कि वे 90 साल की उम्र के बाद उत्तराधिकारी के बारे में निर्णय लेंगे. धर्मशाला के मैकलोडगंज में इस बार उनका तीन दिवसीय जन्मदिन समारोह सिर्फ उत्सव नहीं, बल्कि इतिहास बनने वाला है, क्योंकि यह तय कर सकता है कि अगली पीढ़ी का बुद्ध का प्रतिनिधि कौन होगा.

चीन की इस पर नजर है. चीन का कहना है कि दलाई लामा, पंचेन लामा और अन्य उच्च बौद्ध गुरुओं के पुनर्जन्म की प्रक्रिया केवल ‘गोल्डन अर्न’ यानी पारंपरिक लॉटरी प्रणाली और चीन की केंद्रीय सरकार की मंजूरी से ही पूरी होगी.

इधर दलाई लामा ने इस दावे को सिरे से खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि उनका उत्तराधिकारी किसी राजनीतिक आदेश से नहीं, बल्कि शुद्ध पारंपरिक तिब्बती बौद्ध पद्धति के अनुसार ही तय होगा. जिसे तुलकु पद्धति कहा जाता है.

तुलकु प्रणाली क्या है?
तुलकु प्रणाली (Tulku System) तिब्बती बौद्ध धर्म की एक अद्वितीय और पवित्र परंपरा है, जिसके अंतर्गत यह माना जाता है कि कोई महान बौद्ध गुरु. जैसे दलाई लामा या पंचेन लामा. मृत्यु के बाद पुनर्जन्म लेते हैं और उनकी आत्मा किसी नवजात बालक में फिर से अवतरित होती है.

तुलकु प्रणाली तिब्बती बौद्ध धर्म की वह परंपरा है जिसमें किसी गुरु का पुनर्जन्म पहचानकर उसे आध्यात्मिक उत्तराधिकारी बनाया जाता है. इस प्रक्रिया के तहत जब कोई बालक अचानक पुरानी वस्तुएं पहचान ले, मंत्रों का उच्चारण करे और पिछले जन्म के अनुभव बताए, तो बौद्ध धर्म उसे केवल अद्भुत नहीं मानता, बल्कि पिछले जन्म के महागुरु का पुनर्जन्म, यानी ‘तुलकु’ मानता है.

यह कोई चमत्कार नहीं, बल्कि तिब्बती बौद्ध धर्म की सबसे रहस्यमयी और पवित्र परंपरा है, तुलकु प्रणाली, जिसे आज चीन जैसे राष्ट्र राजनीतिक नियंत्रण में लेने की कोशिश कर रहे हैं.

तुलकु क्या होता है?
तुलकु (Tulku) तिब्बती शब्द है, जिसका अर्थ होता है एक ऐसा प्रबुद्ध व्यक्ति जो पुनर्जन्म लेकर मानव कल्याण के लिए लौटता है. यह व्यक्ति आमतौर पर पिछले किसी उच्च आध्यात्मिक गुरु (जैसे दलाई लामा या पंचेन लामा) का पुनर्जन्म माना जाता है.

उसे बचपन से ही पहचाना जाता है, प्रशिक्षित किया जाता है और धार्मिक उत्तराधिकारी के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है. इसके चयन के कई चरण होते हैं, तुलकु प्रणाली की प्रक्रिया कैसे चलती है? जानते हैं-

1- चरण: संकेत और स्वप्न

  • पिछले तुलकु की मृत्यु के बाद वरिष्ठ लामा और मठाधीश ध्यान, स्वप्न और आध्यात्मिक संकेतों से अनुमान लगाते हैं कि अगला जन्म कहाँ हुआ होगा.

2- चरण: ज्योतिषीय गणना

  • जन्म की संभावित तिथि, स्थान और परिवार की स्थिति को ध्यान में रखते हुए ज्योतिषीय गणनाएं की जाती हैं. यह परंपरा तिब्बती और वैदिक दोनों ज्योतिष पर आधारित होती है.

3- चरण: बालक की पहचान

  • ऐसे बालकों को खोजा जाता है जिसमे दैवीय लक्षण मिलते हैं
  • असाधारण ज्ञान या स्वाभाव
  • पिछले जन्म की वस्तुओं को पहचानना
  • मंत्रों या भाषा का स्वतः ज्ञान

4- चरण: परीक्षण

  • उन्हें वस्तुओं की परीक्षा दी जाती है , क्या वह सही ढंग से पिछली जन्म की वस्तुएं पहचान सकता है?
  • यह प्रक्रिया 14वें दलाई लामा के चयन में भी अपनाई गई थी.

5- चरण: घोषणा और अभिषेक

  • जब सभी मानदंड पूरे हो जाएं, तब उस बालक को पुनर्जन्मित तुलकु घोषित कर दिया जाता है और उसे औपचारिक रूप से गुरु की उपाधि दी जाती है.

ऐतिहासिक उदाहरण

दलाई लामा

  • तिब्बती बौद्ध धर्म में 14वें दलाई लामा (तेनजिन ग्यात्सो) को 13वें दलाई लामा का पुनर्जन्म मानकर 1939 में खोजा गया था.
  • यह पहचान उनके द्वारा पूर्वजन्म की वस्तुओं की पहचान, उच्च मंत्रों का उच्चारण और मठाधीशों के ध्यान-स्वप्न के आधार पर हुई थी.
  • यह प्रक्रिया His Holiness the 14th Dalai Lama Official Archive में दर्ज है.

पंचेन लामा

  • 1995 में 14वें दलाई लामा ने 11वें पंचेन लामा की पहचान घोषित की. चीन सरकार ने उस बालक का अपहरण कर लिया और अपना सरकारी पंचेन लामा घोषित कर दिया.
  • यह विवाद आज भी संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों के रिकॉर्ड में दर्ज है.

बौद्ध दर्शन में आधार

  • महायान बौद्ध धर्म में कुछ आत्माओं को बोधिसत्त्व माना जाता है, जो स्वेच्छा से बार-बार जन्म लेते हैं ताकि दूसरों का उद्धार कर सकें.
  • यह विचार त्रिपिटक (विशेष रूप से अभिधम्म और विनय पिटक) और अवतंसकसूत्र जैसे ग्रंथों में उल्लिखित है.
  • यह प्रणाली एक प्रकार से “आध्यात्मिक लोकतंत्र” है , कोई भी जाति, वर्ग या वंश से नहीं, बल्कि आत्मिक पहचान से गुरु बन सकता है.

तुलकु प्रणाली और ज्योतिषीय संकेत

तुलकु की पहचान केवल ध्यान, स्वप्न या पूर्व लक्षणों से नहीं होती, बल्कि इसमें ज्योतिष का महत्वपूर्ण स्थान होता है:

  • ऐसा माना जाता है कि तिब्बती लामाओं द्वारा जन्म की तिथि, नक्षत्र, ग्रह स्थिति और स्थान को देखकर संभावित पुनर्जन्म की गणना की जाती है.
  • विशेष रूप से गुरु, चंद्र और राहु-केतु की स्थिति, आत्मा के पुनर्जन्म में महत्वपूर्ण मानी जाती है.
  • कुछ मामलों में, पूर्णिमा या विशिष्ट चंद्र योग में जन्मे बालकों को तुलकु मानने की अधिक संभावना रहती है.
  • भारत और तिब्बत की साझा परंपराओं में इसे देवात्मा संयोग कहा जाता है, जब जन्म के समय विशेष योग आत्मा के पुनरागमन की पुष्टि करते हैं.
  • जैसे वैदिक ज्योतिष में महापुरुष योग आत्मिक उद्देश्यों के लिए जन्मे व्यक्ति को दर्शाते हैं, वैसे ही तिब्बती परंपरा में भी ग्रह योग पुनर्जन्म की दिव्यता की पुष्टि करते हैं.

तुलकु प्रणाली आत्मा की स्वतंत्रता और मानवता के कल्याण की परंपरा है. इसे किसी राष्ट्र की नीतियों या सत्ता की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती.

विद्वानों का मत है कि जब तक गुरु पुनर्जन्म लेते रहेंगे, धर्म जीवित रहेगा. पर अगर उनके चयन की प्रक्रिया को सत्ता के अधीन कर दिया जाए, तो यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि पूरी चेतना की हत्या होगी.

FAQ

Q1: तुलकु प्रणाली किस धर्म में है?
यह तिब्बती महायान बौद्ध धर्म की विशेष परंपरा है.

Q2: क्या हर दलाई लामा एक तुलकु होते हैं?
हां, दलाई लामा को पिछले लामा का पुनर्जन्म माना जाता है.

Q3: क्या तुलकु प्रणाली को कोई भी सरकार नियंत्रित कर सकती है?
नहीं. यह धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यता है, न कि राजनीतिक नियुक्ति.

Q4: तुलकु की पहचान में कौन-कौन से ज्योतिषीय संकेत देखे जाते हैं?
जन्म नक्षत्र, चंद्र-गुरु युति, राहु-केतु स्थिति, पूर्णिमा योग आदि देखे जाते हैं. तिब्बती और वैदिक दोनों परंपराएं इसमें सहायक मानी जाती हैं.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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