Shri Ram Stuti: श्रीराम स्तुति राम भक्ति का एक ऐसा साधन, जो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के गुण, दया, भाव, प्रेम, त्याग, न्याय और वीरता का गुणगान करता है. इसके नियमित पाठ से व्यक्ति में सकारात्मक बदलाव के साथ मानसिक शांति और आत्मिक बल का संचार होता है.
आज हम जानेंगे श्रीराम स्तुति की विधि, महत्व, आरती, लाभ और स्तुति के हिंदी अर्थ के बारे में. इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति को पारिवारिक क्लेश से छुटकारा मिलने के साथ हर संकट में प्रभु श्रीराम उसकी रक्षा करते हैं.
श्रीराम स्तुति का महत्व?
पौराणिक ग्रंथों और शास्त्रों में श्री राम स्तुति का महत्व काफी अहम माना जाता है. इसके स्मरण मात्र से ही आपको मानसिक और शारीरिक शांति का एहसास होता है.
- श्री राम स्तुति का पाठ आत्म का शुद्ध करने के साथ मन को शांत करता है.
- जो व्यक्ति श्री राम स्तुति का नियमित पाठ करता है, उसके जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं. इसके साथ ही नेगेटिव ऊर्जा दूर होती है.
- तनाव और चिंता से पार पाने के लिए श्री राम स्तुति का पाठ करना लाभदायक माना जाता है.
- घर में पारिवारिक सुख शांति के लिए श्री राम स्तुति का पाठ करना अच्छा माना जाता है.
श्री राम स्तुति पाठ विधि
श्री राम स्तुति पाठ को करने से पहले कुछ नियमों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. इसके लिए सूर्योदय से पहले स्नानादि करके साफ सुथरे वस्त्र पहने और भगवान राम की मूर्ति या चित्र को स्थापिक करें.
- इसके बाद पूजा स्थान पर लाल या पीला आसन बिछाएं. पाठ करने से पहले श्रीराम की पूजा अर्चना करें. इसके लिए धूप, अगरबत्ती, दीपक, चंदन, फल और फूल रखें.
- इसके बाद आंख बंद करके मन ही मन श्रीराम का नाम जप करें और “ॐ श्रीरामाय नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें.
- इसके बाद श्रद्धा भाव से श्रीराम स्तुति का पाठ 5 या 11 बार करें.
श्री राम स्तुति के लाभ
- श्री राम स्तुति का पाठ करने से आपका मन शांत और एकाग्र रहता है. इसके साथ ही स्तुति का पाठ करने से आपका चित्त स्थिर रहता है.
- श्री राम स्तुति पाठ करने से आपके जन्मों जन्मों के पाप समाप्त हो जाते हैं.
- इस पाठ को करने से आत्मिक बल और साहस में वृद्धि होती है.
- पारिवारिक शांति, सम्मान, समर्पण और प्रेम के लिए इस पाठ को करने से लाभ मिलता है.
- राम स्तुति पाठ करने से बाहरी और दिखाई न देने वाली गलत शक्तियों से आपकी रक्षा होती है.
- हिंदू शास्त्रो में उल्लेख है कि इसका पाठ करने से आपको मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है.
- श्री राम स्तुति पाठ का स्मरण करने से कार्यों में सफलता मिलने के साथ सभी तरह की रुकावटें दूर होती है.
- नियमित रूप से इसका पाठ करने से व्यक्ति के मन में श्री राम का वास होता है.
श्री राम स्तुति का हिंदी अर्थ
श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन, हरण भवभय दारुणं । नव कंज लोचन कंज मुख, कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥
अर्थ- हे मन!कृपा निधान श्रीरामचंद्रजी का भजन कर, जो संसार संबंधी डर का अंत करने वाले हैं. उनकी आंख,मुख, हाथ और चरण नव खिले कमलों की ही तरह सुंदर और ललिमा लिए हुए हैं.
कन्दर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरद सुन्दरं । पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि,नोमि जनक सुतावरं ॥२॥
अर्थ- श्रीराम अनगनित कामदेवों की छवि को मात देने वाले हैं. उनक सुंदर शरीर नवनील जलधर (नीले आकाश) की तरह है. पीतांबर वस्त्र बिजली की तरह चमकते हैं. मैं उन श्रीराम को प्रणाम करता हूं जो जनक पुत्री सीता के पति हैं.
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव, दैत्य वंश निकन्दनं । रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल,चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥
अर्थ- श्रीराम दोनों के मित्र, सूर्य की तरह तेजस्वी और दानवों और दैत्यों के कुल का नाश करने वाले हैं. वे रघुकुल के आनंद मूल हैं, कोशलपुर (अयोध्या) के चंद्रमा के सामान हैं और दशरथ जी के पुत्र भी हैं.
शिर मुकुट कुंडल तिलक, चारु उदारु अङ्ग विभूषणं । आजानु भुज सर चाप धर,संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥
अर्थ- उनके सिर पर मुकुट है, कानों में कुंडल और तिलक है. उनके अंगो पर दिव्य आभूषण शोभा देते हैं. उनकी भुजाएं घुटनों तक लंबी हैं. वे श्रेष्ठ युद्ध करने वाले हैं और उनके हाथों में धनुष बाण सुशोभित है.
इति वदति तुलसीदास शंकर,शेष मुनि मन रंजनं । मम् हृदय कंज निवास कुरु, कामादि खलदल गंजनं ॥५॥
अर्थ- हे प्रभु जैसे आप शिवजी, शेषनाग और ऋषियों को खुश करते हैं ठीक वैसे ही मेरे मन को भी शांति दें. मेरे हर्दय में सदैव निवास करें और काम, क्रोध और मोह जैसे विकारों से छुटकारा दिलाएं.
मन जाहि राच्यो मिलहि सो, वर सहज सुन्दर सांवरो ।, करुणा निधान सुजान शील, स्नेह जानत रावरो ॥६॥
अर्थ- जिस मन में जो इच्छा रच गई हो, वही वर उसे मिल जाता है. यदि मन प्रभु श्रीरम जैसे सुंदर, सहज, सांवले और सौम्य रूप में रम गया हो. वे करुणा के भंडार, अंत्यत ज्ञानी और स्नेह को जानने वाले सच्चे स्वामी है.
एहि भांति गौरी असीस सुन सिय, सहित हिय हरषित अली।, तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि, मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥
अर्थ- माता गौरी ने मां सीता को उत्तम पति, मंगलमय जीवन और सुख समृद्धि का आशीर्वाद दिया था. इस आशीर्वाद को पाकर सीता जी काफी प्रसन्न हुई थी. वे श्रद्धा और प्रेम से मां सीता की बार-बार पूजा करती है और फिर खुशी से अपने स्थान को लौट जाती है.
॥सोरठा॥
जानी गौरी अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि । मंजुल मंगल मूल वाम, अङ्ग फरकन लगे।
अर्थ- सीता जी को जब इसका संकेत मिला कि मां गौरी उन्हें मन के अनुरूप वर (श्रीराम) के लिए आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं, तो उनके मन में असीम आंनद उमड़ आया. वे आनंद इतना गहरा था कि शब्दों में कहा नहीं जा सकता. उनका बायां अंग (जैसे आंख, भुजा और पैर) फड़कने लगा. जो भविष्य में आने वाले शुभ प्रसंग का संकेत है.
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