Iran-Isreal Conflict: ईरान और इजरायल की बीच जंग और तेज हो गई है, जिसकी वजह से पूरे मिडिल ईस्ट में तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है. दोनों देश एक-दूसरे पर ताबड़तोड़ हमले कर रहे हैं. इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि इजरायल के पास अमेरिका की मदद के बिना ईरान की सभी परमाणु सुविधाओं को नष्ट करने की क्षमता नहीं है.
ट्रंप ने ईरान को भी चेतावनी देते हुए कहा कि मैं ईरान को एक समय सीमा दे रहा हूं और मैं कहूंगा कि दो सप्ताह ज्यादा होंगे. यह देखने का समय है कि लोग अपने होश में आते हैं या नहीं. ट्रंप का यह बयान इशारा करता है कि अमेरिका ईरान पर सख्त कूटनीतिक दबाव बनाना चाहता है और अगर जरूरत पड़ी तो निर्णायक कदम भी उठा सकता है.
क्या युद्धविराम का समर्थन करेंगे ट्रंप?
ट्रंप ने संकेत दिया कि वह हालात के आधार पर ईरान-इजरायल युद्धविराम का समर्थन कर सकते हैं. हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ईरान अब यूरोप से बात नहीं करना चाहता, बल्कि केवल अमेरिका से बातचीत चाहता है.
क्या ट्रंप की नीति ओबामा-बाइडेन से अलग है?
ओबामा प्रशासन ने ईरान के साथ JCPOA (जॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन) समझौता किया था, जिसे ट्रंप ने राष्ट्रपति बनते ही रद्द कर दिया. बाइडेन प्रशासन ने समझौते को फिर से सक्रिय करने की कोशिश की, लेकिन ईरान की यूरेनियम संवर्धन प्रक्रिया और इजरायल के जवाबी हमलों के कारण प्रगति धीमी रही. ट्रंप की दो टूक नीति, यानी संधि करो या परिणाम झेलो एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बवाल खड़ा कर सकती है.
इजरायल ने ईरान पर क्यों किया हमला?
इजरायल ने ईरान पर IAEA की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए हमला किया था, जिसमें कहा गया था कि ईरान परमाणु हथियार बनाने के करीब है. हालांकि ईरान और अमेरिका के बीच इसको लेकर बातचीत भी चल रही थी, लेकिन वो बेनतीजा साबित हुई. अब ईरान ने साफ कर दिया है कि वो अमेरिका से कोई बात नहीं करेगा. इजरायल के हमले का जवाब देते हुए ईरान भी लगातार तेल अवीव पर मिसाइलें दाग रहा है.
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