सेबी (Sebi) की बोर्ड बैठक समाप्त हो चुकी है और इसमें सेबी ने कुछ अहम फैसले लिए हैं. यह फैसले स्टार्टअप के आईपीओ, सरकारी कंपनियों की डीलिस्टिंग और मर्चेंट बैंकरों से जुड़े हैं. सेबी ने कई नए नियम बनाए हैं और कई पुराने नियमों को बदला है. आइए जानते हैं सेबी की बैठक में हुए क्या-क्या अहम फैसले.
1- Startup IPO पर क्या हुए फैसले?
- SEBI ने IPO नियमों में ढील दी, कंपनियों को मिलेगी राहत.
- CCS से बदले शेयरों को भी अब बिना 1 साल होल्ड किए बेचा जा सकेगा.
- अब और निवेशक Offer for Sale में हिस्सा ले सकेंगे, शेयर लिक्विडिटी बढ़ेगी.
- Reverse Flipping कंपनियों को IPO में छूट, भारत लौटकर लिस्टिंग आसान.
- Promoter ग्रुप के और सदस्य भी MPC में CCS शेयर शामिल कर सकेंगे.
- बैंक, AIF और विदेशी निवेशक अब MPC में अपने CCS शेयर गिनवा सकेंगे.
- Founders को ESOP जैसे शेयर IPO के बाद रखने की छूट मिली.
- DRHP से 1 साल पहले मिले ESOP होंगे वैध, प्रमोटर भी रख सकेंगे.
- SEBI ने कहा– नए नियमों से फाउंडर्स और निवेशकों को सहूलियत.
- मार्च 2025 की पब्लिक कंसल्टेशन के बाद लिए गए ये अहम फैसले.
2- SEBI का दूसरा एजेंडा
- अब DRHP फाइल करने से पहले प्रमोटर और बड़े शेयरहोल्डर्स को डिमैट जरूरी.
- प्रमोटर, KMP, QIB, एम्प्लॉयी समेत 10 तरह के शेयरहोल्डर्स पर डिमैट नियम लागू.
- SEBI का दावा– डिमैट से फ्रॉड, शेयर लॉस और लीगल झगड़े होंगे कम.
- QIP डॉक्युमेंट अब छोटा और सरल होगा ताकि दोहराव से बचा जा सके.
- अब QIP में सिर्फ ज़रूरी रिस्क और कंपनी का सारांश देना होगा.
- 90% से ज्यादा सरकारी हिस्सेदारी वाले PSUs को डीलिस्टिंग नियमों में छूट मिलेगी.
- कम ट्रेडिंग वाले PSUs को डीलिस्टिंग के लिए आसान रूट मिलेगा। ऐसी कंपनियों पर अब 60 दिन की प्राइस एवरेज शर्त लागू नहीं होगी.
- सभी फैसले अप्रैल–मई 2025 की पब्लिक कंसल्टेशन के बाद लिए गए.
- SEBI की PMAC समिति ने सार्वजनिक सुझावों के बाद किए बदलाव.
3- सरकारी कंपनियों की डीलिस्टिंग आसान
- सरकारी कंपनियों के लिए SEBI का नया डीलिस्टिंग नियम.
- दो-तिहाई शेयरधारकों की मंज़ूरी की शर्त हटी.
- डीलिस्टिंग केवल फिक्स प्राइस पर होगी.
- फ्लोर प्राइस से कम से कम 15% ज़्यादा होना होगा ऑफर प्राइस.
- फ्लोर प्राइस तय करने के तीन विकल्प – जो सबसे ज़्यादा हो.
- शेयर न बेचने वालों की रकम स्टॉक एक्सचेंज अकाउंट में जाएगी.
- 7 साल तक निवेशक कर सकेंगे क्लेम.
- 7 साल बाद बचे पैसे IEPF को ट्रांसफर होंगे.
- मई 2025 की पब्लिक कंसल्टेशन के बाद प्रस्ताव तैयार.
- यह सरकारी बैंक, NBFC और इंश्योरेंस के लिए नियम नहीं है.
4- SEBI ने बदले मर्चेंट बैंकरों के नियम
- अब दो कैटेगरी में बंटेंगे मर्चेंट बैंकर.
- कैटेगरी 1: IPO से लेकर टेकेओवर तक की पूरी छूट. कैटेगरी 1 के लिए कम से कम ₹50 करोड़ नेटवर्थ ज़रूरी.
- कैटेगरी 2: सिर्फ सलाह और डॉक्युमेंटेशन जैसे काम. कैटेगरी 2 के लिए ₹10 करोड़ नेटवर्थ का नियम.
- अब रेगुलेटेड और नॉन-रेगुलेटेड काम एक साथ कर सकेंगे.
- अंडरराइटिंग लिमिट भी तय — नेटवर्थ का 20 गुना तक.
- कंप्लायंस ऑफिसर के लिए अब 5 साल का अनुभव ज़रूरी.
- कंपनी में 0.1% से ज्यादा शेयर हो तो फैसला नहीं ले सकेंगे.
- SEBI का मकसद पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना है.
5- REITs और invits पर क्या बोला सेबी
- REITs और InvITs के नियमों में बदलाव से निवेशकों के लिए ‘Ease of Doing Business’ बढ़ेगा.
- अब Sponsor और Investment Manager जैसे जुड़े पक्ष, भले ही QIB हों, ‘Public’ नहीं माने जाएंगे.
- यह बदलाव ‘Public Unit Holding’ की सही गणना सुनिश्चित करने के लिए किया गया है.
- Holdco को अब अपने नुकसान को SPV से मिले Cash Flow से एडजस्ट करने की छूट मिलेगी.
- पहले Holdco को SPV से मिली 100% राशि आगे भेजनी होती थी — अब नुकसान एडजस्ट कर सकेगा.
- रिपोर्टिंग की टाइमलाइन अब Financial Results की रिपोर्टिंग से जोड़ी जाएगी.
- पहले हर रिपोर्ट की अलग-अलग समयसीमा थी — अब एक जैसी टाइमलाइन लागू होगी.
- Private InvITs के लिए Primary Market में निवेश की न्यूनतम सीमा घटकर ₹25 लाख हुई.
- पहले ₹1 करोड़ से ₹25 करोड़ की लिमिट थी — अब Secondary Market की तर्ज पर लिमिट ₹25 लाख हुई.
6- कस्टोडियंस को अन्य वित्तीय सेवाएं देने की मंजूरी
- SEBI ने कस्टोडियंस को अब अन्य वित्तीय सेवाएं देने की मंजूरी दी है. अब वे सिर्फ सिक्योरिटी रखने तक सीमित नहीं रहेंगे, बीमा, PMS जैसी सेवाएं भी दे सकेंगे.
- अब इन सेवाओं के लिए अलग कंपनी (legal entity) बनाना जरूरी नहीं होगा. एक ही कंपनी के अंदर कई सेवाएं दी जा सकेंगी.
- नियमों में यह ढील Ease of Doing Business के तहत दी गई है, ताकि कंपनियों को संचालन में सहूलियत मिले और लागत घटे.
- कस्टोडियन अब एक ही इकाई के तहत कस्टडी, म्यूचुअल फंड, PMS जैसी सेवाएं दे सकेंगे. उदाहरण के लिए HDFC Bank अपने कस्टोडी के साथ म्यूचुअल फंड सेवाएं भी दे सकेगा.
- शर्त यह है कि सेवाओं के बीच हितों का टकराव न हो, और नियंत्रण की व्यवस्था साफ हो, ताकि निवेशकों के हित सुरक्षित रहें.
- SEBI और CDSSF मिलकर तय करेंगे कि कौन-कौन सी सेवाएं रेगुलेटेड मानी जाएंगी. CDSSF: Custodian Development and Standard Setting Forum.
- कस्टोडियन अन्य रेगुलेटर की सेवाएं या बिना रेगुलेटर वाली सेवाएं भी दे सकेंगे. उदाहरण के लिए IRDAI रेगुलेटेड बीमा सेवाएं या बिना रेगुलेशन वाली सलाहकार सेवाएं.
- ऐसी सभी सेवाएं एक ही कंपनी (लीगल एंटिटी) के तहत दी जा सकेंगी. मतलब अब अलग-अलग कंपनियां बनाने की जरूरत नहीं
- अब कस्टोडियन संसाधनों और कर्मचारियों को विभिन्न सेवाओं के बीच साझा कर सकेंगे. उदाहरण के लिए एक ही टीम म्यूचुअल फंड और कस्टोडी दोनों काम देख सकेगी.
- नॉन-बैंक कस्टोडियन को पारदर्शिता बनाए रखने के लिए डिस्क्लोजर नियमों का पालन करना होगा. ताकि हितों का टकराव न हो और यूजर को स्पष्ट जानकारी मिले.
- रेगुलेटेड सेवाओं के लिए SEBI की अलग से अनुमति जरूरी नहीं होगी. यदि सेवा SEBI की सूची में है तो पहले से मंजूरी मानी जाएगी.
- जो सेवाएं SEBI के दायरे से बाहर हैं, उनके लिए अलग बिज़नेस यूनिट बनानी होगी. जैसे बीमा या वेल्थ एडवाइजरी अलग यूनिट में संचालित होंगी.
7- Co-Investment स्कीम पर बड़ा फैसला
- Category I और II AIF को Co-Investment स्कीम की मंजूरी.
- SEBI ने CIV स्कीम को AIF रेगुलेशंस में शामिल किया.
- Unlisted कंपनियों में निवेश को बढ़ावा देने की कोशिश.
- अब निवेशक AIF के साथ-साथ सीधे भी निवेश कर सकेंगे.
- PMS रूट की बाधाओं से बचने के लिए नई व्यवस्था.
- हर कंपनी के लिए अलग Co-Investment स्कीम जरूरी.
- CIV स्कीम के लिए कुछ नियमों में ढील संभव.
8- Angel Funds के नियमों की समीक्षा को मंजूरी
- SEBI ने Angel Funds के नियमों की समीक्षा को मंजूरी दी.
- Angel Funds अब सिर्फ Accredited Investors से फंड जुटा सकेंगे.
- Angel Investor की योग्यता के लिए thresholds अपडेट होंगे.
- AIs को QIB का दर्जा देकर Angel Funds को निवेश के अधिक मौके.
- निवेश सीमा ₹25 लाख से बढ़ाकर ₹10 लाख से ₹25 करोड़ की गई.
- 25% की निवेश सीमा हटाने का प्रस्ताव.
- Angel Funds अब 200 से अधिक निवेशकों से फंड जुटा सकेंगे.
- Non-startup कंपनियों में follow-on निवेश की अनुमति.
- Fund manager को हर निवेश में खुद भी न्यूनतम 0.5% निवेश करना होगा.
- पहले के non-AI निवेशकों को एक साल की छूट (grandfathering).
9- G-Secs में निवेश करने वाले FPI को नियमों में छूट
- सिर्फ G-Secs में निवेश करने वाले FPI को नियमों में छूट दी गई.
- GS-FPI के लिए KYC अब RBI के नियमों के अनुसार.
- अब GS-FPI को बार-बार KYC नहीं कराना होगा.
- FAR रूट से G-Secs में निवेश करने वाले FPI को Investor Group details देने से छूट.
- अब NRIs, OCIs और RIs भी GS-FPI में शामिल हो सकेंगे.
- RIs के लिए LRS और Global Fund exposure के नियम पहले जैसे ही रहेंगे.
- GS-FPI को बड़े बदलाव की जानकारी 30 दिन में देने की छूट.
- GS-FPI के तौर पर पहचान Onboarding के समय ही तय करनी होगी.
- Existing और नए FPI का GS-FPI में आना-जाना SEBI की शर्तों पर निर्भर.
10- पोर्टफोलियो मैनेजरों के लिए जरूरी बदलाव
- पोर्टफोलियो मैनेजर्स के लिए डिस्क्लोजर डॉक्यूमेंट का फॉर्मेट बदला गया.
- निवेशकों को अब मिलेगा सरल और स्पष्ट जानकारी वाला डॉक्यूमेंट.
- नया डॉक्यूमेंट दो हिस्सों में बांटा गया – डायनामिक और स्टैटिक.
- डायनामिक हिस्से में बार-बार बदलने वाली जानकारी होगी शामिल.
- स्टैटिक हिस्से में स्थायी और कम बदलने वाली जानकारियां होंगी.
- अब हर बार पूरा डॉक्यूमेंट नहीं, सिर्फ अपडेटेड हिस्सा ही भेजा जाएगा.
- निवेशकों को किसी भी बदलाव की जानकारी तुरंत और साफ मिलेगी.
- डॉक्युमेंट बदलाव का सर्कुलर के ज़रिए तुरंत इंप्लिमेंटेशन संभव.
- यह बदलाव निवेशकों के लिए पारदर्शिता और समझ दोनों को बढ़ाता है.
- SEBI का उद्देश्य—डिजिटल प्रक्रिया से निवेशकों के लिए सुविधा बढ़ाना.
11- F&O में 93% रिटेल निवेशकों ने गंवाए पैसे
सेबी ने कहा है कि पिचले 3 सालों में रिटेल निवेशकों ने F&O सेगमेंट में अपने पैसे गंवाए हैं. सेबी ने कहा है कि निवेशकों की रक्षा के लिए अगर F&O सेगमेंट में तीसरे सेट का कदम उठाना पड़ा, तो वह उसके लिए भी तैयार है.
12- SEBI ने Settlement Scheme लागू की
- SEBI ने Settlement Scheme लागू कर दी है.
- NSEL पर ट्रेड करने वाले ब्रोकर्स के लिए मौका.
- पुराने केस सेटल करने की सुविधा.
- कार्रवाई जल्दी निपटाने की पहल.
- सेटलमेंट अमाउंट ट्रेडिंग पर आधारित.
- ₹1 लाख से ₹5 लाख तक की राशि तय.
- यूनिट और वैल्यू के हिसाब से चार्ज.
- स्लैब के अनुसार भुगतान संरचना.
- 1 से 6 महीने तक की डिबारमेंट का विकल्प.
- पहले भुगते समय को किया जाएगा समायोजित.
- ED या पुलिस चार्जशीट वालों को छूट नहीं.
- स्टॉक एक्सचेंज डिफॉल्टर भी अयोग्य.
- भविष्य में चार्जशीट हुई तो स्कीम अमान्य.
- सिर्फ SEBI नियम उल्लंघन के मामलों पर लागू.
- प्रक्रिया में समय और लागत की बचत.
- तेज़ निपटारे से बाजार में अनुशासन.
- जो नहीं जुड़ेंगे, उनके खिलाफ केस जारी रहेगा.
13- SEBI की नई सेटलमेंट स्कीम
- SEBI की नई सेटलमेंट स्कीम लागू हो गई है.
- VCFs को स्कीम बंद करने की देरी पर राहत.
- AIF में माइग्रेशन पूरा करने वाले VCFs ही पात्र.
- पहले साल की देरी पर ₹1 लाख जुर्माना.
- हर अगले साल ₹50,000 का अतिरिक्त शुल्क.
- बचे निवेश पर ₹1–6 लाख तक स्लैब के हिसाब से जुर्माना.
- सेटलमेंट खर्च निवेश मैनेजर उठाएंगे.
- आवेदन की आखिरी तारीख: 19 जनवरी 2025.
- SEBI ने 19 अगस्त 2024 को माइग्रेशन नियम तय किए.
- VCFs को स्कीम बंद करने के लिए अतिरिक्त समय.
- माइग्रेशन से पुरानी देरी माफ नहीं होगी.
- स्कीम सिर्फ पुराने उल्लंघनों के निपटारे के लिए.
- निवेशकों पर कोई बोझ नहीं पड़ेगा.
- स्कीम को SEBI की हाई पावर्ड कमेटी की मंजूरी.
14- लिस्टिंग और डिस्क्लोजर के नियम
- Listed कंपनियों को Securities अब सिर्फ Demat में जारी करनी होंगी.
- Split, Consolidation, Arrangement – सब Demat में ही होंगे.
- Physical Shares का Issue अब Allowed नहीं.
- Rights, Bonus, Fresh Issue – सब Demat मोड में ही जरूरी.
- Transfer of Securities भी अब सिर्फ Demat में ही हो.
- Minor या Major Signature Mismatch पर POD जरूरी नहीं.
- Speed Post के Delivery Proof की शर्त हटाई गई.
- Listed Companies के पास पहले से Dispatch Records मौजूद.
- Compliance हुआ आसान, Process हुआ Streamlined.
15- लिक्विड फंड अब IA/RA डिपॉजिट के लिए मंजूर
- SEBI ने IA/RA के डिपॉज़िट में लिक्विड और ओवरनाइट फंड की इजाज़त दी.
- फिक्स्ड डिपॉज़िट के बजाय अब नया विकल्प.
- लिक्विड फंड कम जोखिम वाले, इन पर लियन भी लगाया जा सकता है.
- डिजिटल फोलियो खोलना और ऑपरेट करना आसान.
- निवेश सलाहकारों और रिसर्च एनालिस्ट्स के लिए कारोबार करना होगा आसान.
- पहले की नेट-वर्थ शर्त हटाई गई, सिर्फ डिपॉज़िट अनिवार्य.
- IA/RA अब एक साल तक की एडवांस फीस ले सकते हैं.
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