Suicide in islam: आत्महत्या या खुदकुशी सभी धर्मों में इसकी निंदा की गई है. कई बार व्यक्ति मानसिक तनाव में आकर इस तरह के गलत कदम उठा लेता है. दुनिया भर में सुसाइड के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. आए दिन तमाम लोगों किसी न किसी कारण से सुसाइड कर लेते हैं. ऐसे में एक सवाल ये है कि क्या तमाम धर्मों की तरह इस्लाम धर्म में आत्महत्या करना गलत है? खुदकुशी करने को लेकर इस्लाम का नजरिया क्या है? जानते हैं.
इस्लाम के मुताबिक इंसान का जिस्म और उसकी रूह अपनी नहीं बल्कि अल्लाह की दी हुई सबसे नायाब अमानत है. जिसकी हिफाजत करना हमारा काम है. अल्लाह द्वारा दी हुई बाकी नेमतों की तरह जिंदगी भी इंसानों को दी गई एक नेमत है.
ऐसे में इस्लाम धर्म में शरीर अल्लाह की देन है, जिसकी हिफाजत करना उसके बंदों का काम है. इस्लाम धर्म में किसी भी शख्स को जान देने की इजाजत नहीं है. इस्लाम के मुताबिक आत्महत्या हराम का काम है.
कुरान में खुदकुशी को लेकर क्या कहा गया है?
इस्लाम धर्म में जैसे किसी इंसान की हत्या करना पाप है, ठीक उसी तरह से खुदकुशी करना अल्लाह के आदेशों की अवहेलना करना है. खुदकुशी को लेकर कुरान में एक जगह जिक्र है कि, ‘और अपने ही हाथों खुद को हलाकत (मुश्किलों) में न डालो, और साहेबान-ए-एहसान बनो, बेशक अल्लाह एहसान वालों से मोहब्बत करता है.’ (सूरा: बकर, 195:2).
अल्लाह ने कुरान में दूसरी जगह कहा कि, ‘और अपनी जानों को मत हलाक करो, बेशक अल्लाह तुम पर मेहरबान है. और जो कोई जुल्म से ऐसा करेगा हम उसे (दोजख) की आग में डाल देंगे, और यह अल्लाह पर बिल्कुल आसान है.’ (सूरा निसा, 4:29-30).
इस्लाम के मुताबिक जो कोई भी आत्महत्या करता है, अल्लाह उसे दोजख की आग में जलाते हैं. वहीं उलेमा के अनुसार इंसान के जीवन में आने वाली दुख, तकलीफें, नफा और नुकसान सब अल्लाह द्वारा दी जाती है.
अल्लाह अपने प्यारों को मुश्किल में डालकर उनका इम्तेहान लेता है. अल्लाह उस वक्त उसे मजबूत बनाता है. ऐसे लोगों को कभी भी अल्लाह गिरने नहीं देता. अल्लाह पर विश्वास करों हंसते-हंसते मुश्किलों से निकल जाओगे.
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