gaurav amlaani :अभिनेता गौरव अमलानी थिएटर, टीवी, फिल्मों और ओटीटी इन सभी माध्यमों का परिचित चेहरा हैं, बीते दिनों वह वेब सीरीज द सीक्रेट ऑफ़ द शिलेडर्स और सिटकॉम शो ज्यादा उड़ मत को लेकर सुर्खियां बटोर चुके हैं. गौरव ने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट अपनी शुरुआत की थी.अब तक की जर्नी को वह खास बताते हैं और यह कहना भी नहीं भूलते हैं कि उन्हें बहुत कुछ और खास करना है. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत
विक्की आज भी वैसे ही मिलते हैं
द सीक्रेट ऑफ़ शिलेडर्स में मैंने खुद को पूरी तरह से अपने निर्देशक के विजन पर समर्पित कर दिया था.राजीव खंडेलवाल सहित बाकी के सभी एक्टर्स बहुत ही सपोर्टिव थे.जिस वजह से परदे पर एक अच्छा शो बन पाया।मैं बताना चाहूंगा कि इस सीरीज की शूटिंग जहां हो रही थी. उसे करीब ही छावा की शूटिंग हो रही थी. फिर क्या था मैं विक्की कौशल मिलने पहुंच गया. मैंने उनके साथ फिल्म मनमर्जियां में काम किया था. वह उनके कैरियर का शुरुआती दौर था .आज वह बहुत बड़े स्टार बन गए हैं ,लेकिन वह उसी प्यार और सम्मान के साथ मिलें,जैसे वह पहले मिलते थे .
फ्लाइट में बैठने से डरता हूं
मेरा हालिया खत्म हुआ सिटकॉम शो ज्यादा मत उड़ ने भी मुझे मेरे अब तक के किये गए किरदारों से कुछ अलग करने का मौक़ा दिया था. मैंने बहुत ही विचित्र किरदार निभाया था,वह टपोरी टाइप का कूल बंदा है , लेकिन एयरलाइन्स में जॉब करता है.जिस वजह से उसे सभी के साथ बहुत सलीके से पेश आना पड़ता है.वैसे मैं बताना चाहूंगा कि निजी जिंदगी में मैं फ्लाइट में बैठने से बहुत डरता हूं. मेरे पास समय होता है तो मैं ट्रेन से ही जाना पसंद करता हूं. वरना फ्लाइट की टिकट लेने के बाद से लैंडिंग तक मैं बस भगवान को ही याद करता रहता हूँ.
8 की उम्र में तय कर लिया था एक्टर बनना है
मैं दिल्ली से हूं. मेरे पिता बैंक में जॉब किया करते थे. वो एक्टिंग और थिएटर को लेकर बहुत जुनूनी थे, इसलिए जॉब से फ्री होकर वह ये काम किया करते थे.मैं ८ साल था तो उनके साथ कई बार उनकी थिएटर रिहर्सल्स पर जाया करता था.मुझे वह माहौल पसंद आने लगा और मैंने तय किया कि मुझे यही करना है. उसके बाद मेरी ट्रेनिंग शुरू हुई . मेरे पिता ने ही मुझे प्रशिक्षित किया . मैं नाटकों से जुड़ा और आज भी जुड़ा हुआ हूँ. के के रैना ,इला अरुण जी के साथ नाटक करता रहता हूं.2012 में मैंने मुंबई को अपना बेस बना लिया . मेरे पिताजी अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से एक्टिंग में कैरियर चाहकर भी नहीं बना पाये थे .वह दीपक डोबरियाल और नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ थिएटर करते थे,तो मैं अपने साथ -साथ उनके सपने को भी जी रहा हूँ .
संघर्ष चलता रहता है
मुंबई में आप अपना कैरियर बनाने आते हैं तो आपको पैसे बनने से पहले पैसे खर्च करने पड़ते है. यह अलग ही जर्नी है ,जो आसान नहीं होती है. आर्थिक और मानसिक संघर्ष इस शहर में अलग अलग स्टेज पर चलता रहता है . एक सुपरस्टार का भी अपना संघर्ष है और एक फ़िल्म पुराने एक्टर का भी, लेकिन जो सबसे बड़ा संघर्ष रहता है.वो ये कि तमाम संघर्षों को झेलते हुए अपने दिल को मासूम रखना. कई बार संघर्ष आपकी मासूमियत छीन लेता है तो उसी को बरकरार रखने का संघर्ष रहता है .मुंबई में शुरुआत में वॉइस ओवर आर्टिस्ट के तौर पर मैंने काम कर खुद आर्थिक तौर पर मजबूती दी थी .मैं अभी भी इस काम को एंजॉय करता हूं. यह एक्टिंग के पास का जॉब है .
नवाज सर और राजकुमार की जर्नी प्रभावित करती है
सपने बड़े होने और अनरियल होने में बहुत फर्क होता है .मैं बड़े सपने देखने में यकीन करता हूं अनरियल नहीं . सब अपने संघर्ष से सीखते हैं,लेकिन मैंने दूसरों के संघर्ष से सीखा है . नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी सर मेरे पिता के परिचित में से थे,तो उनके संघर्ष को मैं भी करीब से जानता हूँ. उससे यह सीखा भी कि कभी भी किसी काम को मना नहीं करना है . एक सीन में भी कभी आप अपनी छाप छोड़ सकते हैं.इस शहर में काम से ज्यादा दोस्तों की वैल्यू करो. अगर आपको कोई मिला है तो. नवाज भाई के साथ -साथ मैं राजकुमार राव की जर्नी से भी बहुत प्रभावित रहा है. सिर्फ क्राफ्ट के दम पर कोई कैसे अपनी पहचान बना सकता है. राजकुमार राव की जर्नी से सीखने की जरूरत है.
ताउम्र टीवी का शुक्रगुजार रहूँगा
हमारे देश में टीवी बहुत ही अहम रोल अदा करता है. मैं ताउम्र टीवी का शुक्रगुजार रहूंगा.सात साल मुझे इंडस्ट्री में आये हुए हो गया था. मैं अच्छे -अच्छे प्रोजेक्ट्स और अच्छे निर्देशकों की फिल्मों का हिस्सा बन गया था. मनमर्जियां कर चुका था. निर्देशकों से तारीफ मिल गयी थी. क्रिटिक से क्रिटिकल एक्लेम भी ,लेकिन जो एक पहचान थी कि आम लोग भी मुझे पहचाने वो नहीं मिली थी. वो मुझे टीवी शो पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होलकर से मिली थी. उस शो के बाद लोग मुझे एयरपोर्ट , रेस्टोरेंट में भी देखकर पहचाचने लगे थे.वो किरदार सभी को बहुत पसंद आया था. डेढ़ साल तक मैंने उस किरदार को निभाया था. अक्सर टीवी को फिल्मों और वेब सीरीज के मुकाबले उन्नीस माना जाता है. ये सोच बदलनी होगी. मैं खुद टीवी से लगातार जुड़ते रहना चाहूंगा बस वह अच्छा और अलग करने का मौक़ा दें. मुझे याद है जब मैं अहिल्याबाई होल्कर से जुड़ने वाला था तो मेरे करीबी मित्र दीपक डोब्रियाल ने कहा था कि बहुत अच्छा है कि टीवी कर रहे हो,बस एट्टीट्यूड में लेजी मत होना क्योंकि आपको लगातार पच्चीस दिन महीने के शूट करना होगा. मैंने उस बात को गांठ बाँध ली.
इंडस्ट्री में पढ़े लिखे से ज्यादा संवेदनशील लोगों की जरुरत
मुझे लगता है कि पढ़े लिखे से ज्यादा इमोशनली और सेंसिटिव लोग हमारी इंडस्ट्री में हो ,तो इंडस्ट्री ज्यादा बेहतर होगी क्योंकि आखिर हम इमोशंस का ही कारोबार करते हैं .लेकिन इंडस्ट्री असंवेदनशील लोगों से ज्यादा भरी पड़ी है. मुझे याद है. मैं मुंबई में नया नया आया था.आप अपने आर्थिक हालात के अनुसार कपड़े खरीदते हैं. मुझे याद है कि मीडियोकर टाइप दिखने वाले एक आर्टिस्ट कोर्डिनेटर ने मेरे कपडे और जूतों पर कमेंट किया था.वह उतने ख़राब नहीं थे.आप एक्टर को कपडे से जज करते हैं या फिर एक्टिंग से. मुझे चक दे फिल्म का एक डायलॉग याद आ गया जिसमें एक खिलाड़ी दूसरी खिलाड़ी को कहती है कि पंजाबी नहीं आती है तो सीख कर आनी चाहिए, जिसके बदले में शाहरुख़ सर जवाब देते हैं कि उसने हॉकी सीखनी थी और वो सीखकर आयी है. एक्टिंग के लिए आया हूं एक्टिंग देखो मेरी टीशर्ट एक हजार रुपये की है. इससे क्या मतलब है.
युवा कलाकारों को सलाह
जो लोग भी एक्टिंग में अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं. मैं उन सभी लोगों को कहना चाहूंगा कि एक्टिंग की समझ हो या एक्टिंग सीखा हो तो ही इस फील्ड में आइए. मिस या मिस्टर स्कूल कॉलेज रहे हैं या फिर मोहल्ले वाले और रिश्तेदार बोलते हैं कि बहुत सुंदर हो एक्टिंग में किस्मत आजमाओ,तो बिलकुल भी मत आना. खुद पर यह आपका एहसान होगा क्योंकि आपको एक्टिंग की समझ होगी और उसके प्रति समपर्ण होगा तो भी आप यहां के संघर्ष को सह पाओगे क्योंकि बहुत घिसना पड़ता है.
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