Pradosh Kaal: भारतीय संस्कृति में अधिकांश व्रत-पूजन सुबह किए जाते हैं लेकिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत में सायंकाल, गोधूलि बेला में पूजा करने का विधान है. प्रदोष काल मुहूर्त ही शिव पूजा के लिए सर्व श्रेष्ठ माना जाता है.
इस व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक के सुख और सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है. प्रदोष यानी दोष से मुक्ति पाने वाला व्रत, प्रदोष काल में शिव साधना करने का महत्व और क्या होता है प्रदोष काल आइए जानें.
प्रदोष काल क्या है ?
प्रदोष का अर्थ है, रात्रि का प्रारंभ. ‘प्रदोषो रजनीमुखम’ रात्रि के प्रारंभ की बेला प्रदोष नाम से संबोधित की जाती है. प्रदोषकाल सूर्यास्त से 2 घड़ी (48 मिनट) तक रहता है. कुछ विद्वान इसे सूर्यास्त से 2 घड़ी पूर्व व सूर्यास्त से 2 घड़ी पश्चात् तक भी मानते हैं.
प्रदोष काल का महत्व
प्रदोष का भगवान शिव के साथ अन्योन्याश्रित संबंध है. इस दौरान शिव जी प्रसन्न होकर कैलाश पर नृत्य करते हैं और समस्त देवी-देवता उनकी आराधना करते हैं. इस समय शिव साधना करने वालों को अमोघ फल प्राप्त होता है. रावण प्रदोष काल में शिव को प्रसन्न कर, सिद्धियां प्राप्त करता था.
आज शुक्र प्रदोष व्रत का मुहूर्त
वैशाख शुक्ल त्रयोदशी तिथि शुरू – 9 मई 2025, दोपहर 2.56
वैशाख शुक्ल त्रयोदशी तिथि समाप्त – 10 मई 2025, शाम 5.29
- पूजा मुहूर्त – रात 7.01 – रात 9.08
प्रदोष व्रत क्यों किया जाता है ?
यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए फलदायक होता है जो गृहस्थ जीवन में संतुलन, स्वास्थ्य, समृद्धि और मानसिक शांति की कामना रखते हैं. सप्ताह के दिन अनुसार प्रदोष व्रत का अपना महत्व होता है. उदाहरण के लिए, सोमवार का प्रदोष व्रत स्वास्थ्य के लिए, मंगलवार का प्रदोष व्रत रोगों से मुक्ति के लिए, और शुक्रवार का प्रदोष व्रत सौभाग्य और समृद्धि के लिए माना जाता है.
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