
शास्त्रों के अनुसार, जो लोग एकादशी के दिन चावल का सेवन करते हैं वो लोग नरकगामी कहलाए जाते है. इस दिन चावल को खाना मांस खाने के बराबर माना जाता है.

एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में महर्षि मेधा ने एक यज्ञ में आए भिखारी का तिरस्कार कर दिया, इससे मां दुर्गा क्रोधित हो गईं. माता के क्रोध से बचने और प्रायश्चित के लिए महर्षि मेधा ने अपना शरीर त्याग दिया और शरीर के अंश धरती में समा गए.

महर्षि के इस प्रायश्चित से प्रसन्न होकर माता दुर्गा ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि उनके अंग अन्न के रूप में धरती से उगेंगे. कहा जाता है कि एकादशी के दिन महर्षि के पृथ्वी में दबे अंश चावल और जौ के रूप में उत्पन्न हुए.

धार्मिक मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना महर्षि मेधा के मांस खाने के बराबर है. जो ऐसा करता है उसे अगला जन्म कुयोनि में मिलता है.

धार्मिक मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना महर्षि मेधा के मांस खाने के बराबर है. जो ऐसा करता है उसे अगला जन्म कुयोनि में मिलता है.

इस दिन सामर्थ्य के अनुसार अन्न, वस्त्र, जल, जूता, आसन, पंखा, छतरी और फल इत्यादि का दान करना चाहिए.
Published at : 08 May 2025 10:51 AM (IST)
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