Shani in Kundli: ज्योतिष शास्त्र में शनि देव महाराज को कर्मफलदाता देवता कहा जाता है. सभी नौ ग्रहों में शनि देव सबसे धीमी गति से चलने वाले ग्रह हैं. शनि को एक राशि से दूसरी राशि में जानें में लगभग ढाई साल का समय लग जाता है वहीं पूरी 12 राशियों के चक्र को पूरा करने में 30 वर्ष का समय लगता है. कर्मों के प्रतिनिधि शनि देव महाराज मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं.
कुंडली में शनि की स्थिति कब शुभ फल प्रदान करती है इसको जानना और समझना महत्वपूर्ण होता है. कुंडली में जब शनि शुभ स्थानों पर होते हैं, तो यह व्यक्ति को जीवन स्थिरता, सफलता और समाज में सम्मान भी प्रदान करते हैं और शान-शौकत प्रदान करते हैं.
कुंडली के चौथे भाव में शनि
कुंडली के चौथे भाव को घर और परिवार का भाव कहा जाता है. शनि के इस प्रभाव से व्यक्ति को अचल संपत्ति और वाहन का सुख मिल सकता है, लेकिन यह घर से दूर जाने पर भी सफलता दिला सकता है.
कुंडली के सप्ताम भाव में शनि
कुंडली का सप्तम भाव शादी, विवाह, प्रेम विवाह आदि से जुड़ा होता है. इन सब बातों की जानकारी कुंडली के सप्ताम भाव से मिलती है.शनि इस भाव में हैं तो व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है.साथ ही बिजनेस में लाभ प्राप्त होता है. जीवन में संपूर्ण सुख और समृद्धि आती है.
कुंडली के दशम भाव में शनि
अगर शनि कुंडली के दशम भाव में हैं तो आपको जीवन में मान-सम्मान मिलेगा. आपको प्रतिष्ठा और सम्मान पग-पग में मिलता रहेगा. किसी बड़े पद पर आपकी नियुक्ति हो सकती है. करियर और जॉब के क्षेत्र में आप सफलता हासिल करते हैं. आपका कॉन्फिडेंस लेवल उच्चय क्षेत्री का हो जाता है.
कुंडली के ग्यारहवें भाव में शनि
जब शनि ग्यारहवें भाव में होते हैं तो लक्ष्यों की प्राप्ति आसानी से हो जाती है.आय में वृद्धि और आर्थिक स्थिति में मजबूती आती है. इस दौरान आपकी समझदारी आपके हर काम में नजर आती है और आप सफलता के सीढ़ियां चढ़ते हैं.
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