DNA: पूरी दुनिया में साइबर हमले तेजी से बढ़ रहे हैं. लेकिन अब एक और खतरा सामने आया है. पहले सिर्फ मोबाइल, लैपटॉप या कंप्यूटर जैसे डिवाइसों को ही हैक किया जाता था लेकिन अब इंसानी डीएनए भी हैक हो सकते हैं. जी हां, दरअसल, वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक गंभीर चेतावनी जारी की है कि अब साइबर हमलों का निशाना इंसानी डीएनए डाटा भी बन सकता है. डीएनए की जांच में इस्तेमाल होने वाली अत्याधुनिक तकनीक नेक्स्ट-जेनरेशन सीक्वेंसिंग (NGS), जो कैंसर की पहचान, रोगों के इलाज, संक्रमण की निगरानी और पर्सनलाइज्ड मेडिसिन में अहम भूमिका निभा रही है, अब साइबर अपराधियों के लिए खतरे का एक नया द्वार खोल रही है.
सोध में हुआ खुलासा
जानकारी के मुताबिक, IEEE एक्सेस नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध में बताया गया है कि अगर NGS तकनीक को पूरी तरह सुरक्षित नहीं किया गया तो यह पर्सनल जानकारी के उल्लंघन, जैविक खतरे और डेटा चोरी जैसी गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकती है. यूनिवर्सिटी ऑफ पोर्ट्समाउथ की कंप्यूटिंग विभाग की डॉ. नसरीन अंजुम के नेतृत्व में यह पहला ऐसा विस्तृत अध्ययन है जिसमें पूरी NGS प्रोसेस के हर स्तर पर साइबर-बायोसिक्योरिटी की खामियों का मूल्यांकन किया गया है.
क्या होता है NGS प्रोसेस
जानकारी के अनुसार, NGS प्रोसेस जटिल और कई तकनीकी चरणों में बंटा होता है जिसमें सैंपल तैयार करने से लेकर डाटा विश्लेषण तक कई हाई-टेक उपकरणों और सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल होता है. ये सभी स्टेप्स एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं और यही पर साइबर खतरों की संभावना पैदा होती है. चूंकि कई डीएनए डाटाबेस ऑनलाइन खुले रूप में उपलब्ध हैं, शोधकर्ताओं का मानना है कि इनका दुरुपयोग निगरानी, छेड़छाड़ या खतरनाक जैविक प्रयोगों के लिए किया जा सकता है. वैज्ञानिक का मानना है कि यह रिसर्च एक चेतावनी है, सिर्फ डाटा एन्क्रिप्शन से बात नहीं बनेगी बल्कि ऐसे खतरों के लिए पहले से तैयार रहना होगा जो आज अस्तित्व में नहीं हैं.
एडवांस हुए साइबर हमले
शोध में यह भी खुलासा हुआ कि साइबर हमले अब पारंपरिक तरीकों तक सीमित नहीं हैं. हैकर्स अब सिंथेटिक डीएनए के जरिए मैलवेयर बना सकते हैं, AI की मदद से जीन डाटा में फेरबदल कर सकते हैं और पुनः-पहचान तकनीकों से व्यक्ति की पहचान तक उजागर कर सकते हैं. ये सभी तरीके न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान की साख पर सवाल खड़ा करते हैं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा तक के लिए खतरा बन सकते हैं.
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