truth-The-Great-Mughal-Emperor-akbar-believed-in-hindu-jyotish | अकबर हिंदूओं के इस ज्ञान का था दिवाना, इतिहास के पन्नों से निकला एक चौंकाने वाला सच!

अकबर (Akbar) केवल एक विजेता या मुगल शासक नहीं, बल्कि भारतीय ज्ञान परंपरा का एक जिज्ञासु विद्यार्थी भी था. इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि उसने न सिर्फ संगीत और कला को संरक्षण दिया, बल्कि ‘हिंदू ज्योतिष’ (Hindu Astrology) के प्रति भी गहरा लगाव रखा.

कहते हैं, वह ग्रह-नक्षत्र देखकर ही युद्ध, विवाह या घोषणाओं का निर्णय लेता था. तो क्या सच में अकबर एक ऐसा बादशाह था जो वैदिक पंचांग देखकर राज चलाता था? आइए, इस ऐतिहासिक रहस्य को गहराई से जानते हैं.

अकबर: धार्मिक सहिष्णुता से ज्योतिष-समर्थन तक
1560 के दशक से अकबर ने ‘सूफी विचारधारा’ अपनाई और सभी धर्मों के ज्ञान को सम्मान देना शुरू किया. इसी क्रम में उसने न सिर्फ हिंदू धार्मिक रीति-रिवाजों को मान्यता दी, बल्कि ‘हिंदू ज्योतिष’ (Hindu Astrology) को भी अपने राजकीय निर्णयों का हिस्सा बनाया.

2. इबादतखाना: जहां धर्म नहीं, नक्षत्रों की चर्चा होती थी
फतेहपुर सीकरी में स्थापित इबादतखाना (Ibadatkhana) अकबर की अंतर-धार्मिक संवाद नीति का केंद्र था. लेकिन वहां सिर्फ धर्म नहीं, खगोल और ज्योतिष शास्त्र (Astronomy and Astrology) पर भी नियमित चर्चा होती थी. जहां पर हिंदू पंडित, मुस्लिम मौलवी, जैन मुनि और ईसाई विद्वान , सब ग्रहों की चाल पर अपनी-अपनी परंपराओं के अनुसार विचार रखते थे.

3. आइन-ए-अकबरी में अकबर का ‘ज्योतिष प्रेम’ (Astrology in Ain-i-Akbari)
अबुल फज़ल द्वारा रचित ‘आइन-ए-अकबरी’ में कई ऐसे विवरण मिलते हैं जो बताते हैं कि अकबर अपने दैनिक कार्यों में ज्योतिषीय समय और शुभ मुहूर्त (Auspicious Timing) की सलाह लेता था. यह केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं था, युद्ध की योजना, विवाह, भवन निर्माण, व्यापारिक घोषणाएं, सबके लिए ग्रहों की स्थिति का आंकलन किया जाता था.

4. ‘इलाही संवत’, अकबर की पंचांग क्रांति (Akbar’s Calendar Reform)
1584 में अकबर ने ‘इलाही संवत’ नामक एक नई तिथि प्रणाली की शुरुआत की. इसमें सौर और चंद्र गणना दोनों को संतुलित किया गया. यह कदम सिर्फ प्रशासनिक नहीं, बल्कि ज्योतिष शास्त्र को एक वैज्ञानिक रूप में प्रतिष्ठित करने का प्रयास था.

5. दरबारी ज्योतिषाचार्य और पंचांग विद्वानों की भूमिका
अकबर ने अपने दरबार में वाराणसी, उज्जैन, कांची और प्रयाग से विशेष ज्योतिषाचार्यों को आमंत्रित किया था. उनके द्वारा तैयार ‘राजकीय पंचांग’ हर साल दरबार में प्रस्तुत किया जाता था. उसके यहां पंडित पुरुषोत्तम और गणक भट्ट जैसे विद्वानों को न केवल आर्थिक संरक्षण मिला हुआ था, बल्कि उनकी राय को युद्ध और निर्णयों में निर्णायक माना जाता था.

6. विदेशी इतिहासकारों की कलम से, अकबर और ज्योतिष (Akbar and Foreign Historians)

  • फ्रांसीसी लेखक बर्नियर (Bernier) लिखते हैं- “अकबर अपने ज्योतिषियों की राय के बिना दरबार में पग भी नहीं रखता था.”
  • इतालवी यात्री मनुची (Manucci) लिखते हैं, “उसका दरबार किसी वेधशाला से कम नहीं लगता था.”

7. क्या अकबर ‘राजयोग’ में जन्मा सम्राट था?
कुछ भारतीय स्रोतों में उल्लेख मिलता है कि अकबर की कुंडली में गुरु और शनि का शुभ दृष्टि संबंध (Benefic Jupiter-Saturn Aspect) था. यह योग उसे असाधारण नेतृत्व, न्यायप्रियता और अध्यात्म की ओर झुकाव देता है, जो उसके जीवन में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है.

अकबर (Akbar) का शासन काल को केवल तलवार की चमक और कूटनीति के लिए ही नहीं था, बल्कि वह एक ऐसा युग था जब ‘हिंदू ज्योतिष’ (Hindu Astrology) ने मुगल शासन की नीतियों को भी दिशा दी और आंतरिक तौर पर भी प्रभावित किया.

यह इतिहास का एक अनकहा अध्याय है, जो बताता है, ज्योतिष केवल विश्वास नहीं, सत्ता की रणनीति का भी हिस्सा रहा है. इतिहास में जो भी महान हुआ है उसने इस तरह के ज्ञान को अवश्य ही प्रश्रय प्रदान किया है. अकबर भी इनमे से एक था.

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