
क्यों हुई धर्मेंद्र के आंखों की सर्जरी? – धर्मेंद्र ने मीडिया से बातचीत में कहा, “अभी भी मुझमें बहुत दम है, अभी भी जान रखता हूं। मेरी आंख का ग्राफ्ट हुआ है। लव यू माय ऑडियंस, लव यू फैन्स, मैं स्ट्रॉन्ग हूं।” बता दें कि मीडिया से बातचीत में उन्होंने बताया कि उनकी आंख में तकलीफ थी, जिसके कारण उन्हें कॉर्नियल ट्रांसप्लांटेशन (आंख का ग्राफ्ट) करवाना पड़ा।

क्यों की जाती है कॉर्नियल ट्रांसप्लांट? – कॉर्नियल ट्रांसप्लांट (What is Corneal Transplant) को केरेटोप्लास्टी भी कहा जाता है, यह एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें मरीज की डैमेज या फिर रोगग्रस्त कॉर्निया को एक स्वस्थ डोनर की कॉर्निया से बदला जाता है। यह प्रक्रिया उन लोगों में की जाती है, जिनकी कॉर्निया धुंधली, क्षतिग्रस्त या संक्रमित हो गई होती है और इसकी वजह से उनकी दृष्टि प्रभावित हो रही हो।

कॉर्निया क्या है? – कॉर्निया आंख का सबसे बाहरी दिखने वाला हिस्सा होता है, जो रोशनी को आंखों के अंदर प्रवेश करने और रेटिना तक पहुंचने में मदद करता है। अगर कॉर्निया किसी कारण से डैमेज हो जाए, तो रोशनी का सही ढंग से फोकस नहीं हो पाता और व्यक्ति को देखने में परेशानी होती है।

कैसे होती है कॉर्नियल ट्रांसप्लांट सर्जरी? – आंखों की इस सर्जरी के लिए मरीज को सबसे पहले लोकल या जनरल एनेस्थीसिया दिया जाता है। इसके बाद डॉक्टर मरीज के डैमेज कॉर्निया को निकालते हैं और डोनर की स्वस्थ कॉर्निया को सटीक रूप से लगाते हैं। इसके बाद इसे टांकों से सील किया जाता है, जो समय के साथ घुल जाते हैं या डॉक्टर हटा देते हैं। इस सर्जरी में लगभग 1-2 घंटे लगते हैं और मरीज को जल्द ही घर भेज दिया जाता है।

कॉर्नियल ट्रांसप्लांट कितने तरह के होते हैं? – कॉर्नियल ट्रांसप्लांट तीन तरह के होते हैं, जिसमें पूर्ण कॉर्नियल ट्रांसप्लांट (Penetrating Keratoplasty – PKP), इसमें पूरी कॉर्निया को बदला जाता है। दूसरा आंशिक कॉर्नियल ट्रांसप्लांट (Lamellar Keratoplasty – LK), इसमें सिर्फ क्षतिग्रस्त परत को हटाकर नई परत लगाई जाती है। तीसरा, डेस्मेट स्ट्रिपिंग एंडोथेलियल केरेटोप्लास्टी (DMEK), इसमें सिर्फ कॉर्निया की अंदरूनी परत को बदला जाता है, जो फुच्स डिस्ट्रोफी जैसी बीमारियों में उपयोगी होता है।

कॉर्नियल ट्रांसप्लांट सर्जरी के बाद कैसे होती है देखभाल? – सर्जरी के बाद पूरी तरह से ठीक होने मरीजों को लगभग में 3 से-6 महीने का समय लग सकता है। वहीं, कभी-कभी 1 साल तक का समय लग सकता है। इस दौरान मरीजों को डॉक्टर द्वारा दिए गए ड्रॉप्स को समय-समय पर देना होता है, जिससे सूजन और इन्फेक्शन का खतरा कम हो सके। साथ ही तेज रोशनी और धूल से भी आंखों को सुरक्षित रखना होता है।

क्या हैं कॉर्नियल ट्रांसप्लांट के फायदे? कॉर्नियल ट्रांसप्लांट कराने से मरीजों की आंखों की रोशनी बेहतर होती है। इससे जीवन की गुणवत्ता बेहतर होती है। साथ ही मरीजों को होने वाली दर्द और असुविधाएं कम होती हैं।
Published at : 01 Apr 2025 06:14 PM (IST)
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