बॉलीवुड फैन्स का रुझान पिछले कुछ वर्षों से साउथ सिनेमा की ओर ज्यादा बढ़ गया है, जिसे ध्यान में रखते हुए हिंदी सिनेमा के मेकर्स ने साउथ की फिल्मों का हिंदी रीमेक बनाना शुरू कर दिया. इनमें से कबीर सिंह, गजनी, सिंघम जैसी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर राज किया तो वहीं, साउथ की फिल्म ‘थेरी’ के हिंदी रीमेक बेबी जॉन को दर्शकों का प्यार नहीं मिल सका. ऐसे में साउथ हिट्स के हिंदी रीमेक का बॉलीवुड पर क्या प्रभाव पड़ता है आइए जानते हैं.
बॉलीवुड फिल्मों के फैन्स भी अब साउथ की फिल्मों के आदी हो चुके हैं. हो भी क्यों न? बॉलीवुड में पिछले कई सालों से साउथ की फिल्में धड़ल्ले से रीमेक की जा रही हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या बॉलीवुड के पास अच्छी स्क्रिप्ट या कंटेंट की कमी हो गई है या दर्शकों का बॉलीवुड से मोहभंग हो गया है? बॉलीवुड की फिल्मों को साउथ टच देने की जरूरत आखिर क्यों पड़ रही है? कहां से आया यह ट्रेंड और क्या यह बॉलीवुड के अस्तित्व पर खतरा है? इस विषय पर हमने फिल्म क्रिटक्स विनोद अनुपम से बात की, आइए जानते हैं उनका क्या कहना है.
क्या साउथ फिल्म रिमेक्स एक ट्रेंड है?

विनोद अनुपम का कहना है कि रीमेक तो पहले से होता रहा है लेकिन इसकी लोप्रियता की शुरुआत आमिर खान की गजनी (2008) और सलमान खान की फिल्म ‘वांटेड’ (2009) से हुई. ये फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रहीं, जिसकी वजह से हिंदी सिनेमा में बड़ा बदलाव आया कि यहां साउथ की फिल्में रीमेक होने लगी. इसी के बाद भूल भुलैया, दृश्यम, सिंघम और कबीर सिंह जैसी फिल्में आईं और बॉक्स ऑफिस पर कमाल कर गईं. लेकिन फिर कुछ वर्षों बाद दर्शकों ने इस बात को महसूस किया कि जब साउथ की ही कहानियां देखनी है तो वह साउथ के ही वातावरण में क्यों न देखें? वहां की कहानियों को हम यहां की पृष्टभूमि में क्यों देखें, जिसके बाद धीरे-धीरे रीमेक की लोकप्रियता कुछ कम होने लगीं और नए कॉन्सेप्ट की शुरुआत हुई, जो है ‘पैन इंडियन फिल्में’.
साउथ रीमेक नहीं ‘पैन इंडियन फिल्में’
विनोद अनुपम ने आगे कहा, साउथ रीमेक का ट्रेंड कुछ सालों तक रहा, लेकिन अब हाल के कुछ वर्षों में जब साउथ इंडस्ट्री ने यह देखा कि उनकी फिल्में हिंदी में रीमेक होकर हिट हो रही हैं तो उसने ‘पैन इंडियन’ वाला कॉसेप्ट शुरू किया, जिसमें बॉलीवुड के स्टार्स को लेकर अपनी ही फिल्मों को हिंदी में डब करने की शुरुआत की. जिसके बाद बाहुबली, कांतारा, पुष्पा जैसी फिल्में आईं.
क्या यह बॉलीवुड के अस्तित्व पर खतरा है?
विनोद अनुपम का मानना है कि हिंदी सिनेमा का जो रीमेक वाला मामला है उसके साथ मुश्किल यह है कि ‘ये सबकुछ पर खर्च करती है, कहानियों पर खर्च नहीं करती है.’ इसके लिए स्क्रिप्ट राइटर अभी भी हास्यपद ही हैं.
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बॉलीवुड के पास अब क्रिएटिविटी खत्म हो गई है?
विनोद अनुपम ने कहा, ‘बिलकुल, अब करण जौहर ‘बाहुबली’ रिलीज कर रहे हैं तो जितने भी यहां प्रोडक्शन हाउसेज हैं वह सभी साउथ फिल्मों के साथ जुड़े हुए हैं. जाहिर है कि बॉलीवुड इंडस्ट्री अपनी कहानी नहीं ढूंढ पा रही है. हालांकि, जब भी हिंदी सिनेमा अपनी कहानी लेकर आई है जैसे छावा, स्त्री तब वह चली हैं.
क्या कॉपी पेस्ट होते हैं कंटेंट?
विनोद अनुपम का कहना है कि हिंदी सिनेमा अभी भी अपनी कहानियां ढूंढ़ने के लिए सचेत नहीं हुई है और जब तक ये नहीं होगा तब तक हिंदी सिनेमा के लिए समस्या बने रहेगी और ये कॉपी-पेस्ट वाला सिलसिला चलता रहेगा. जिस तरह पिछले साल रिलीज हुई वरुण धवन की फिल्म ‘बेबी जॉन’ हो गई, जो साउथ सुपरस्टार विजय की सुपरहिट फिल्म ‘थेरी’ का हिंदी रीमेक है. यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हुई क्योंकि दर्शकों को इसमें कुछ नई और हटकर चीज देखने को नहीं मिली, बस स्टार कास्ट की फेर बदल थी और फिल्म तैयार हो गई.
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