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Shabari Jayanti 2025: हिंदू धर्म से जुड़ी कई पौराणिक कथा कहानियों में भगवान और भक्त के बीच अटूट प्रेम, भक्ति, समर्पण और श्रद्धा भाव देखने को मिलती है. यही समर्पण भाव और श्रद्धा के प्रतीक का पर्व है ‘शबरी जयंती’, जिसे फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है. इस साल शबरी जयंती आज गुरुवार 20 फरवरी 2025 को है. 

रामायण में कई पात्र थे, जिनमें शबरी प्रभावशाली पात्रों में एक थी. श्रीराम के प्रति शबरी की अटूट भक्ति और श्रद्धा थी और इसी कारण उसे मोक्ष की प्राप्ति भी हुई. मान्यता है कि जिस दिन भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे, उस दिन फाल्गुन कृष्ण की सप्तमी तिथि थी. इसलिए इस दिन को शबरी जयंती के रूप में मनाया जाता है. वहीं जिस स्थान पर राम ने बेर खाए थे, उसे शबरीधाम के नाम से जाना जाता है जोकि दक्षिण-पश्चिम गुजरात के डांग जिले के आहवा से लगभग 33 किलोमीटर और सातपुतारा से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव के पास है. आइए जानते हैं आखिर भगवान राम ने क्यों खाए शबरी के झूठे बेर.

कौन थी शबरी 

शबरी का असली नाम श्रमणा था जोकि भील समुदाय से थी. उसका विवाह तय हो था. शबरी बहुत ही निर्मल और कोमल हृदय की थी. भील समुदाय में विवाह के दौरान पशुओं की बलि देने की परंपरा थी. इसलिए विवाह से पूर्व उसके पिता भेड़-बकरियों को बलि के लिए ले आए. शबरी यह देखकर दुखी हो गई और विवाह से पूर्व ही घर से भाग गई, जिससे कि पशु बलि से बच जाए.

भागकर वह एक जंगल पहुंच गई. यहां ऋषि मुनि तपस्या करते थे. शबरी ऋषियों की सेवा करना चाहती थी, लेकिन उसे पता था कि अगर वह अपनी जाति बता देगी तो उसे यह अवसर नहीं मिलेगा. इसलिए उसने ऋषियों को अपनी जाति नहीं बताई. वह ऋषियों की सेवा करने लगी. शबरी की निष्ठा और सेवा से ऋषि प्रसन्न हो गए. लेकिन जब ऋषियों को पता चल गया कि शबरी अछूत आदिवासी है तो उन्होंने शबरी से किनारा कर लिया. तब मातंग ऋषि ने शबरी को अपनी पुत्री की तरह अपनाया और अपने अंतिम समय पर उसे कहा कि, एक दिन भगवान राम आएंगे और तुम्हें इस संसार से मुक्त करेंगे. इतना कहकर मातंग ऋषि ने प्राण त्याग दिए.

राम ने क्यों खाए शबरी के जूठे बेर

ऋषि के केहनुसार शबरी रोज भगवान राम का इंतजार करने लगी. वह रोजना रास्ते को साफ करती. भगवान के लिए बेर तोड़कर लाती. बेर को चखती कि वह मीठे हैं या नहीं. मीठे बेर को पात्र में रखती. इस तरह से वर्षों बीत गए. लेकिन शबरी रोजाना यही काम करती रही.

आखिर एक दिन राम शबरी से मिलने पहुंच गए. तब तक शबरी वृद्ध हो चुकी थी. लेकिन राम को देख उसमें ऊर्जा और उत्साह आ गया.  उसने भगवान के चरण धोए और उन्हें बिठाया. शबरी भगवान के लिए बेर लेकर आई और चखचख कर उन्हें मीठे बेर खिलाने लगी और भगवान ने बड़ी प्रसन्नता से मीठे बेर खाए. भगवान राम से शबरी ने देह त्याग की इच्छा जताई और उनके आशीर्वाद से शबरी ने अपना देह त्याग दिया. आज के समय में ऊंच-नीच, छूत-अधूत जैसी सामाजिक स्थिति के बीच भगवान राम और शबरी की कहानी भक्ति, प्रेम, धैर्य और समर्पण के महत्व को दर्शाती है.

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